दो ट्रिलियन निर्यात की बड़ी छलांग

देश में मैन्युफैक्चरिंग को बल देना होगा, लागतों को कम करना होगा और वर्तमान में इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण की गति को बरकरार रखना होगा। गौरतलब है कि वर्ष 2013-14 में भारत की अर्थव्यवस्था मात्र 2 खरब डॉलर से भी कम थी, जो अभी तक बढक़र 3.5 खरब डॉलर से ज्यादा हो चुकी है। वर्ष 2030 में हम 7 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बन चुके होंगे…

मार्च 31, 2023 को घोषित विदेश व्यापार नीति के अनुसार वर्ष 2030 तक 2000 अरब डालर के निर्यात का लक्ष्य रखा गया है जिसमें वस्तुओं और सेवाओं दोनों के निर्यात शामिल हैं। देश में अभी तक निर्यातों के ढुलमुल प्रदर्शन के चलते, कई विशेषज्ञ इस बड़े लक्ष्य के बारे में शंका व्यक्त कर रहे हैं। लेकिन साथ ही साथ देश में विशेषज्ञों का एक बड़ा वर्ग इस लक्ष्य को असाध्य नहीं मान रहा। बल्कि कुछ लोगों का तो यह भी मानना है कि देश इससे कहीं ज्यादा प्राप्त कर सकता है। दोनों पक्षों के क्या तर्क हैं, इसे समझना होगा। आज से दस साल पहले 2012-13 में भारत के वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात मात्र 452.3 अरब डालर के ही थे। 2012-13 के बाद हमारे आयात तो द्रुत गति से बढ़ते गए, लेकिन निर्यातों के बढऩे की गति धीमी रही। 2021-22 में हमारे वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात हालांकि 683.7 अरब डालर तक पहुंच गए थे, लेकिन आयात 766 अरब डालर पहुंच गए। लेकिन हालांकि आयात इस वर्ष 882 अरब डालर तक पहुंच सकते हैं, लेकिन वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल का कहना है कि निर्यात भी पिछले वर्ष 683.7 अरब डालर की तुलना में, इस वर्ष 767.0 अरब डालर रह सकते हैं। यह सही है कि पिछले 10 वर्षों में वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात बहुत तेजी से नहीं बढ़े। लेकिन पिछले साल वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात 11.3 प्रतिशत की दर से बढ़ गए। यानी कुछ समय पहले जो 2030 में निर्यातों का 1000 अरब डालर का लक्ष्य भी अभेद्य लग रहा था, 2023 में 2000 अरब डालर का लक्ष्य प्राप्त करने हेतु देश को निर्यातों के बढऩे की गति को मात्र 14.81 प्रतिशत ही रखना होगा, जो कि पिछले वर्ष में निर्यातों की ग्रोथ से बहुत ज्यादा नहीं है।

अर्थव्यवस्था की स्थिति

आज जब भारत समेत दुनिया के सभी मुल्क बढ़ती महंगाई से त्रस्त हैं, भारत में महंगाई की दर शेष दुनिया से अभी भी कम है। भारत लगातार दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना हुआ है। बढ़ती ग्रोथ का असर जीएसटी की प्राप्तियों में दिखाई दे रहा है। हालांकि जीएसटी प्राप्तियों में बड़ा हिस्सा आयात शुल्कों का है, लेकिन मध्यवर्ती वस्तुओं के आयातों पर मूल्य संवद्र्धन भी जीएसटी में वृद्धि का कारण बन रहा है। यानी ग्रोथ हो या महंगाई पर अंकुश, सभी देश की बढ़ती निर्यात संभावनाओं की ओर इंगित कर रहे हैं।

कैसे बढ़ सकते हैं निर्यात?

यह भी सही है कि दुनिया में चल रही मंदी और महंगाई के कारण घटती क्रय शक्ति के चलते निर्यातों में वृद्धि करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। उसके बावजूद भारत के सेवाओं और वस्तुओं के निर्यातों में हो रही वृद्धि विशेष महत्व रखती है। देखना होगा कि भारत के निर्यातों में कहां ज्यादा वृद्धि हो रही है। खाद्य पदार्थों के निर्यात में वृद्धि का कुल निर्यातों में विशेष योगदान है। 2021-22 में 50 अरब डालर से अधिक खाद्य निर्यात किए गए। 2022-23 के आंकड़े आना अभी बाकी हैं, लेकिन अभी भी खाद्य निर्यातों में कुल निर्यातों में खासा योगदान बना हुआ है। निर्यातों में वृद्धि में प्रतिरक्षा निर्यातों का बड़ा योगदान दिखाई दे रहा है। गौरतलब है कि अभी तक भारत प्रतिरक्षा के क्षेत्र में आयातों पर ही अधिक निर्भर रहा है। लेकिन प्रतिरक्षा उद्योग में हुई प्रगति और विशेष तौर पर निजी क्षेत्र के प्रतिरक्षा उद्योग में बढ़ते योगदान के चलते देश न केवल प्रतिरक्षा में उपकरणों में आत्मनिर्भर हुआ है, बल्कि इस उद्योग का निर्यातों में भी योगदान बढ़ा है। एक ओर जहां देश अपनी प्रतिरक्षा जरूरतों का 70 प्रतिशत आयातों से प्राप्त करता था, अब मात्र 32 प्रतिशत उपकरणों के लिए ही आयातों पर निर्भर करता है और 68 प्रतिशत प्रतिरक्षा खरीद भारत से हो रही है। पिछले 6 वर्षों में प्रतिरक्षा निर्यातों में 10 गुणा से ज्यादा वृद्धि, भविष्य में इस क्षेत्र के निर्यातों की संभावना को इंगित करती है। गौरतलब है कि 2016-17 में प्रतिरक्षा निर्यात मात्र 1521 करोड़ रुपए के थे, जो 2022-23 में बढक़र 15920 करोड़ रुपए तक पहुंच चुके हैं। कहा जा सकता है कि भारत का प्रतिरक्षा उद्योग एक ओर विदेशी मुद्रा बचा रहा है और दूसरी ओर विदेशी मुद्रा कमा भी रहा है। बढ़ते विदेशी आर्डरों से प्रतिरक्षा उद्योग में काफी स्पंदन दिखाई दे रहा है। सेवा क्षेत्र में भारत का परचम पिछले 30 वर्षों से लहरा ही रहा है, लेकिन वर्तमान काल में उसका महत्व और बढ़ गया है। 5 वर्षों में ही हमारे सेवाओं के निर्यात 2016-17 में 164.2 अरब डालर से बढ़ते हुए 2021-22 तक 254.5 अरब डालर तक पहुंच गए थे। वर्ष 2022-23 के पहले 11 महीनों में ये निर्यात 296.9 अरब डालर तक पहुंच चुके हैं और अनुमान है कि 2022-23 के पूर्ण वर्ष के लिए यह आंकड़ा 325 अरब डालर पार कर सकता है। खास बात यह है कि इन निर्यातों में आधे से ज्यादा हिस्सा सॉफ्टवेयर निर्यातों का है। इसके अलावा देश बड़ी मात्रा में बीपीओ, एलपीओ समेत कई प्रकार की व्यावसायिक सेवाओं का भी निर्यात कर रहा है। देश की सॉफ्टवेयर में प्रगति ने चीन समेत अन्य मुल्कों को भी पीछे छोड़ दिया है।

रुपए में व्यापार से भी बदल सकती है तस्वीर

दुनिया के कई मुल्क भारत से आयात करना चाहते भी थे तो भी वे पूर्व में डॉलरों के अभाव के चलते आयात नहीं कर पाते थे। लेकिन हाल ही में भारत सरकार ने एक पहल की और भारतीय रिजर्व बैंक ने एक परिपत्र के माध्यम से आयात और निर्यात के लिए अंतरराष्ट्रीय भुगतान निपटारों को रुपयों में करने की अनुमति प्रदान कर दी। इसके बाद दिसंबर में पहली बार रूस के साथ व्यापार का भुगतान रुपयों में करने की शुरुआत हो चुकी है। अभी तक भारत सरकार के प्रयासों से इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, जर्मनी, मलेशिया, इजराइल, रूस और युनाईटेड अरब अमीरात समेत 19 देशों के बैंकों को ‘स्पेशल वोस्त्रो रूपी एकाउंट’ खोलकर रुपयों में भुगतान निपटारे करने की अनुमति प्रदान की जा चुकी है। ऐसा माना जा रहा है कि रुपयों में भुगतान होने के कारण जहां पहले आयात के लिए डॉलर, पाउंड, येन इत्यादि का उपयोग होता था, वे भुगतान रुपयों में होने लगेंगे। इन 19 मुल्कों के साथ अभी भी काफी बड़ी मात्रा में आयात और निर्यात होता है, रुपयों में भुगतान के चलते इन मुल्कों के पास भारतीय रुपए का स्टॉक बढ़ेगा और वे भारत से ज्यादा सामान आयात कर सकेंगे।

बेहतर होती प्रतिस्पर्धा शक्ति

पूर्व में भारतीय साजो-सामान दुनिया के दूसरे मुल्कों की तुलना में महंगा माना जाता था, उसका कारण था हमारी इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी। पिछले कुछ समय से देश में बिजली की अब कोई कमी दिखाई नहीं देती। उद्योगों को निरंतर बिजली मिल रही है। सौर ऊर्जा इत्यादि के कारण बिजली की लागत में भी कुछ कमी देखने को मिल रही है। सडक़ों के जाल बिछने के कारण अब आवाजाही आसान हो गई है। बेहतर डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर भी भारत की प्रतिस्पर्धा को बेहतर बना रहा है। ऐसे में जब अभी तक भारत 767 अरब डालर के निर्यात का लक्ष्य हासिल कर चुका है, अगले 7 वर्षों में निर्यात को 2000 अरब डालर तक ले जाना कोई अभेद्य लक्ष्य नहीं लगता। लेकिन देश को इसके लिए निरंतर प्रयास करने होंगे। देश में मैन्युफैक्चरिंग को बल देना होगा, लागतों को कम करना होगा और वर्तमान में इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण की गति को बरकरार रखना होगा। गौरतलब है कि वर्ष 2013-14 में भारत की अर्थव्यवस्था मात्र 2 खरब डॉलर से भी कम थी, जो अभी तक बढक़र 3.5 खरब डॉलर से ज्यादा हो चुकी है। वर्ष 2030 में जब हम 7 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बन चुके होंगे, 2 खरब डॉलर के निर्यात का लक्ष्य कोई बहुत बड़ा लक्ष्य नहीं है।

डा. अश्वनी महाजन

कालेज प्रोफेसर


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