सभी के लिए आवास

समझना होगा कि कच्चे घरों में रहने वाले और आवासविहीन लोगों का जीवन अत्यंत कष्टमयी होता है। उन्हें अपना शौचालय, पेयजल और कुल मिलाकर सम्मानित जीवन नहीं नसीब होता। पक्का घर और उसके साथ शौचालय और पेयजल, जिसकी व्यवस्था भी सरकार द्वारा साथ-साथ की जा रही है, देश में गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाले लोगों के लिए सुखद अनुभूति है…

प्राचीन काल में भारत में आवासविहीन लोगों का कोई जिक्र नहीं मिलता है। एक ऐसा देश जो धनाढ्य था, जहां उद्योग और कृषि उन्नत अवस्था में थे और विश्व की एक-तिहाई से ज्यादा जीडीपी भारत में पैदा होती थी, गरीबी अथवा बेघरपन कल्पना से परे था। अपवाद के रूप में कभी-कभी अकाल जैसी स्थितियों की चर्चा इतिहास में मिलती है, लेकिन देश में सबसे भीषण अकाल ब्रिटिश शासन के दौरान ही देखने को मिलता है। आजादी से पूर्व लगभग 150 वर्ष के ब्रिटिश शासन काल में देश में गरीबी बढ़ी, इस पर सभी इतिहासकार एक हैं। एक देश जहां सभी लोग अपनी छत के नीचे रहते थे, ब्रिटिश शासन के दौरान कृषि और उद्योगों के पतन के साथ बढ़ती गरीबी के चलते बड़ी संख्या में लोग बेघर होते चले गए। 1947 में देश के विभाजन ने इस समस्या को और अधिक बढ़ा दिया। आजादी के बाद हर जनगणना में बेघर लोगों का बड़ा आंकड़ा दिखाई देता है। लेकिन वे सब लोग जो अपने घरों में अपनी छत के नीचे रहते रहे हैं, उनमें से भी एक बड़ा हिस्सा कच्चे और अत्यंत जीर्ण घरों में निवास करता रहा है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के 65वें चक्र के अनुसार सम्पूर्ण देश में 12.6 प्रतिशत गृहस्थ पूर्णतया कच्चे घरों में रहते थे। ग्रामीण क्षेत्र में यह आंकड़ा 17 प्रतिशत का था और शहरों में 2.1 प्रतिशत का। इसके अलावा 21.3 प्रतिशत लोग आधे-अधूरे पक्के घरों में रहते थे।

इसके अलावा 2011 की जनगणना के अनुसार 77.7 लाख लोग बेघर थे। गरीबी के चलते कच्चे और अधूरे पक्के मकानों में आवास करते लोगों के बारे में यह अपेक्षा भी करना बेमानी होगा कि उनके घरों में पर्याप्त पेयजल और शौचालय इत्यादि की भी व्यवस्था होगी। सामान्यत: गांवों में पक्के घरों में निवास करने वाले लोगों के पास भी उचित पेयजल अथवा शौचालय इत्यादि की व्यवस्था होना जरूरी नहीं। हालांकि एनएसएसओ के आवास संबंधी सर्वेक्षणों में लगातार कच्चे घरों की तदाद में लगातार कमी आई है और उसके स्थान पर पक्के घरों का अनुपात ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बढ़ा है। इस संबंध में देश में वास्तविक प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि का योगदान अधिक रहा है। लेकिन देखा जाए तो हालांकि पूर्व में सरकारों द्वारा शहरी और ग्रामीण आवास में सुधार हेतु हमेशा कुछ न कुछ खर्च होता रहा है। तमाम प्रकार की आवास परियोजनाओं का भी जिक्र मिलता है। इन सब योजनाओं और परियोजनाओं को या तो रोजगार सृजन कार्यक्रमों के साथ अथवा आसान शर्तों और कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराते हुए आवास की व्यवस्था की जाती रही। लोगों के स्वयं के प्रयास से अथवा सरकारी मदद से उधार लेकर अथवा सरकार द्वारा सस्ते दामों में भूमि आवंटन इत्यादि के माध्यम से आवास में विकास होता रहा है। देश में ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्र में पक्के घरों के निर्माण हेतु केन्द्र और राज्य सरकारों के सम्मिलित प्रयास से 25 जून 2015 में प्रारंभ प्रधानमंत्री आवास योजना एक बड़ा कदम माना जा रहा है। स्लम बस्तियों समेत आर्थिक दृष्टि से विपन्न, निम्न आय वर्ग एवं मध्यम आय वर्ग, सभी को शामिल करते हुए हर पात्र गृहस्थ को वर्ष 2022 तक एक पक्का मकान उपलब्ध कराने के लक्ष्य के साथ प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना और प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना प्रारंभ की गई थी।

प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) : 25 जून 2015 को प्रारंभ इस योजना में विभिन्न प्रकार की श्रेणियों में घरों की कमी की समस्या से निपटने के लिए योजना बनाई है। इस योजना के अनुसार वर्ष 2022 तक आर्थिक रूप से विपन्न/निम्न आय वर्ग, स्लम निवासी एवं मध्यम आय वर्ग के श्रेणी के सभी लोगों को पक्के घर की व्यवस्था करने का लक्ष्य रखा गया। लक्ष्य तो यह था कि जब देश अपनी आजादी के 75 साल पूर्ण कर रहा होगा तो सभी के पास एक पक्का घर होगा। इस योजना में घरों की कमी के बारे में राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों में घरों की कमी के बारे में आकलन लगाया जाना तय किया गया। राज्य स्तर पर नोडल एजेंसियों, शहरी स्थानीय निकायों, केन्द्रीय नोडल एजेंसियों और प्राथमिक ऋण दाता संस्थाओं को इसमें मुख्य हितधारक के रूप में रखा गया। सभी प्रकार के शहरी क्षेत्र जिसमें सरकारी कस्बे, अधिघोषित योजना क्षेत्र, विकास प्राधिकरण, विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण, औद्योगिक विकास प्राधिकरण समेत सभी प्रकार के क्षेत्रों को इसमें शामिल किया गया। यह तय किया गया कि जो घर बनाए जाएंगे, उनमें शौचालय, जल आपूर्ति, बिजली और रसोई की मौलिक सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए। महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य से नए बने घर या तो महिला के नाम होंगे अथवा संयुक्त नाम से। प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना की बात कहें तो 1.23 करोड़ घरों के निर्माण के लिए स्वीकृति दी जा चुकी है, 1.1 करोड़ घरों की शुरुआत होने के बाद 71 लाख घर बन चुके हैं। 2.03 लाख करोड़ रुपए की केन्द्रीय सहायता के वचन के साथ 1.41 लाख करोड़ रुपए की सहायता राशि दी जा चुकी है। इन घरों के निर्माण में कुल 8.31 लाख करोड़ रुपए का निवेश हो चुका है। प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना की बात करें तो भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय का लक्ष्य 2.94 करोड़ घरों के निर्माण का था, जबकि 3.17 करोड़ लोगों ने इस हेतु पंजीयन कराया जिसमें से 2.85 करोड़ घरों के निर्माण की स्वीकृति दी गई, जिसमें से 2.16 करोड़ घर अभी तक बन चुके हैं और इस संबंध में केन्द्र सरकार द्वारा 2.86 लाख करोड़ रुपए दिए जा चुके हैं।

क्या है प्रधानमंत्री आवास योजना : जून 2015 में शुरू की गई इस योजना में केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा 60:40 प्रतिशत अनुपात में राशि दी जाने का प्रावधान रखा गया। जबकि उत्तर-पूर्व और पर्वतीय इलाकों में यह प्रतिशत 90:10 का रखा गया। जहां तक सहायता का प्रश्न है मैदानी इलाकों में हर एक घर के निर्माण के लिए पहले 70 हजार रुपए दिए जाते थे, अब उसे बढ़ाकर 1.20 लाख रुपए दिए जाते हैं और पर्वतीय क्षेत्रों में यह राशि 75 हजार रुपए से बढ़ाकर 1.30 लाख रुपए कर दिए गए हैं। इस योजना का लाभ सही लाभार्थियों तक पहुंचे, इसके लिए तीन स्तर पर सत्यापन किया जाता है। पहला सामाजिक, आर्थिक, जाति, जनगणना-2011, दूसरे ग्राम सभा और तीसरे जीओ टैगिंग। जीओ टैगिंग से मतलब है कि उपग्रह से प्राप्त भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) के उपयोग से घर निर्माण के स्थान का सटीक नक्शा। इस प्रकार से घर निर्माण के लिए सरकार द्वारा दी गई राशि सही लाभार्थियों तक पहुंच पाती है। हालांकि प्रधानमंत्री आवास योजना काफी महत्वाकांक्षी योजना है और इसमें अच्छी प्रगति भी हुई है, लेकिन यह भी सही है कि यह योजना अभी अपने लक्ष्य से पीछे चल रही है।

सबके लिए आवास का मतलब : समझना होगा कि कच्चे घरों में रहने वाले और आवासविहीन लोगों का जीवन अत्यंत कष्टमयी होता है। उन्हें अपना शौचालय, पेयजल और कुल मिलाकर सम्मानित जीवन नहीं नसीब होता। पक्का घर और उसके साथ शौचालय और पेयजल, जिसकी व्यवस्था भी सरकार द्वारा साथ-साथ की जा रही है, देश में गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाले लोगों के लिए वास्तव में एक सुखद अनुभूति है। यह दुनिया की कतार में भारत को एक ऐसा देश बनाने, जिसमें सबके पास अपना घर हो, भारत को एक सम्मानित स्थान दिलाने में बड़ी भूमिका का निर्वहन कर सकता है। मुफ्त में बिजली, पानी और अन्य प्रकार की मुफ्तखोरी से यह योजना कहीं बेहतर कही जा सकती है। इस पर योजनाबद्ध ढंग से काम होना चाहिए।

डा. अश्वनी महाजन

कालेज प्रोफेसर


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