दस का जादू

By: Jun 1st, 2023 12:08 am

हमें अपने जीवन में ऐसे बहुत से लोगों से पाला पड़ता है जो मामूली सी बात पर भी झगडऩा शुरू कर देते हैं। कभी स्थितियां विकट होती हैं और हमें समझ नहीं आता कि क्या करें या कभी हमारे पास कई ऐसे विकल्प होते हैं जिनमें से सबसे लाभदायक विकल्प चुनना आसान नहीं होता, और इन सबसे कठिन वह स्थिति है जब हम संभावित विकल्पों के बारे में नहीं सोच पाते और परेशान हो जाते हैं। दस-दस-दस की प्रक्रिया ऐसी स्थितियों में हमारी सहायता कर सकती है और हम ज्यादा से ज्यादा विकल्पों के बारे में सोच कर उनके लाभ और हानियों का विश्लेषण करते चलते हैं और फिर अपने लिए सर्वाधिक उपयोगी विकल्प का चुनाव करने का प्रयत्न करते हैं। कभी हमें काम और परिवार के बीच संतुलन के लिए सर्वश्रेष्ठ विकल्प चुनना होता है, कभी करिअर के लिए समझौते करने होते हैं…

बहुत से काम ऐसे होते हैं जो हम करना चाहते हैं या जिन्हें करना जरूरी होता है, लेकिन फिर भी हम उन्हें कर नहीं पाते। हम हर रोज उस काम को करने का मन बनाते हैं लेकिन करते नहीं हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं। काम कठिन हो या हमारी पसंद का न हो तो हमारा दिमाग उसे न करने के नए-नए बहाने ढूंढ लेता है और हमें पता भी नहीं चलता कि ये गड़बड़ हमारे अपने दिमाग के कारण है। कभी आलस्य के कारण, अनुशासित न होने के कारण, काम खत्म करने की जल्दी न होने के कारण भी हम अक्सर काम को टालते चलते हैं और वो भी तब, जबकि काम होना हमारे लिए महत्वपूर्ण अथवा लाभदायक हो सकता है। जब कोई काम हमारे लिए महत्वपूर्ण अथवा लाभदायक होने के बावजूद टलता चला आ रहा हो तो टालने की इस प्रवृत्ति से बचने के लिए एक बहुत सीधा-सादा सरल-सा उपाय अपनाया जा सकता है। अपने स्मार्ट फोन पर दस मिनट का अलार्म लगाइये और उस काम को शुरू कर दीजिए जिसे आप निपटाना चाहते हैं।

चूंकि दस मिनट का समय इतना कम है कि हमें बोरियत नहीं होती और हमारा दिमाग काम से बचने के बहाने ढूंढना बंद कर देता है, तो होता यह है कि काम शुरू हो जाता है, और जो काम शुरू हो चुका हो, उसे निपटाना भी आसान हो जाता है। यह सचमुच एक जादुई फार्मूला है और मैं अपने पूरे पेशेवर करिअर में इस फार्मूले का लाभ लेता आया हूं। एक समय निश्चित कीजिए और उस समय के लिए दस मिनट का अलार्म लगा लीजिए। उस निश्चित समय पर हमेशा सिर्फ वही काम कीजिए जिसे आप टालते आ रहे हों। हर रोज ऐसा ही करने से मानो आपके जीवन में क्रांति-सी आ जाएगी। आपने व्यायाम करना हो, बाजार से कुछ लाना हो, कुछ लिखना हो, कोई कठिन या नापसंद काम निपटाना हो, बस दस मिनट का ये जादुई फार्मूला अपनाइये और टालते जाने की अपनी आदत से हमेशा के लिए छुटकारा पा लीजिए। है न आसान? ऐसे ही जब कभी आपको फैसला लेने में दिक्कत आए, यह उलझन हो कि फैसला सही है या गलत, या यह उलझन हो कि फैसला लें भी या नहीं तो प्रसिद्ध काउंसलर सूजी वेल्च की ‘दस मिनट, दस महीने, दस साल’ तकनीक का उपयोग कीजिए। सूजी वेल्च ने बहुत साधारण ढंग से जीवन की एक बड़ी समस्या का हल सुझाया है। यह तरीका इतना अनूठा और कारगर है कि इसने कई जिंदगियां बदल दी हैं। मैनेजमेंट के विद्यार्थी के रूप में मुझे यह पढ़ाया गया है कि सही निर्णय लेने का एक ही ढंग है, और वह है कि निर्णय लिए जाएं, असफलता के डर से डर कर खाली न बैठा जाए बल्कि काम किया जाए। यह एक अच्छी सलाह है क्योंकि डर के मारे काम ही न करना किसी समस्या का हल नहीं है। एक अत्यंत सफल उद्योगपति से जब पूछा गया कि वे हर बार सही निर्णय कैसे ले लेते हैं तो उन्होंने कहा कि इसमें उनका ‘अनुभव’ सहायक होता है और जब उनसे अगला सवाल किया गया कि अनुभव कैसे प्राप्त किया जाए तो उनका उत्तर था ‘गलत निर्णय लेकर’। इससे हमें दो बातें सीखने को मिलती हैं। पहली, हमें असफलता के भय से सोचते ही नहीं रहना चाहिए और नि_ले नहीं बैठना चाहिए, और दूसरी, यदि निर्णय गलत हो जाए तो उससे सीख लेनी चाहिए और आगे बढ़ जाना चाहिए।

अक्सर हम जब निर्णय लेते हैं तो हमें मालूम नहीं होता कि निर्णय सही है या गलत, और उसका हम पर तथा हमारे आसपास की दुनिया पर क्या असर होगा। अक्सर हम अपने दिल, दिमाग, अनुभव और जोखिम लेने के साहस पर निर्भर करते हुए कोई निर्णय लेते हैं। ऐसे निर्णय सही अथवा गलत होने की संभावना बराबर-बराबर की होती है, यानी निर्णय के सही या गलत होने की कोई तार्किक या वैज्ञानिक प्रक्रिया के अभाव में हम निर्णय तो लेते हैं, पर यह नहीं जानते कि असल में वह निर्णय कितना सटीक है। हम सिर्फ आशा करते हैं कि वह निर्णय सही होगा और प्रार्थना करते हैं कि निर्णय सचमुच सही ही हो। जब भी हम कोई निर्णय लेना चाहें तो हमें यह सोचना चाहिए कि हमारे निर्णय का अगले दस मिनट में क्या असर होगा, फिर सोचना चाहिए कि उसका अगले दस महीनों में क्या असर होगा और फिर यह कि हमारे निर्णय का अगले दस सालों में क्या असर होगा। दस मिनट का महत्व इस रूप में है कि हमें हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारे किसी भी निर्णय पर हमसे जुड़े लोगों की फौरी प्रतिक्रिया क्या होगी, उसका हमारे आसपास के लोगों पर क्या प्रभाव पड़ेगा और खुद हमारे जीवन पर उसका क्या असर होगा, दस माह का मतलब है कि हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि निकट भविष्य में हमारे निर्णय का असर क्या होगा, और दस साल की महत्ता इस रूप में है कि अंतत: हमें यह भी सोचना चाहिए कि दूरस्थ भविष्य में उसका क्या प्रभाव रहेगा। यदि हम अपने हर निर्णय को इस प्रक्रिया से सही और गलत की कसौटी पर कसना शुरू कर दें तो निर्णय ज्यादा तर्कसंगत और सटीक हो जाएगा और उनसे ज्यादा से ज्यादा भला हो सकेगा। आइए, अब इस प्रक्रिया के सहारे हम अपनी कुछ आदतों को परखें और देखें कि हम अपने निर्णय लेने की क्षमता को कैसे सुधार सकते हैं।

हमें अपने जीवन में ऐसे बहुत से लोगों से पाला पड़ता है जो मामूली सी बात पर भी झगडऩा शुरू कर देते हैं। कभी स्थितियां विकट होती हैं और हमें समझ नहीं आता कि क्या करें या कभी हमारे पास कई ऐसे विकल्प होते हैं जिनमें से सबसे लाभदायक विकल्प चुनना आसान नहीं होता, और इन सबसे कठिन वह स्थिति है जब हम संभावित विकल्पों के बारे में नहीं सोच पाते और परेशान हो जाते हैं। दस-दस-दस की प्रक्रिया ऐसी स्थितियों में हमारी सहायता कर सकती है और हम ज्यादा से ज्यादा विकल्पों के बारे में सोच कर उनके लाभ और हानियों का विश्लेषण करते चलते हैं और फिर अपने लिए सर्वाधिक उपयोगी विकल्प का चुनाव करने का प्रयत्न करते हैं। कभी हमें काम और परिवार के बीच संतुलन के लिए सर्वश्रेष्ठ विकल्प चुनना होता है, कभी करिअर के लिए समझौते करने होते हैं तो देखना होता है कि हम किस हद तक लचीले हों और कहां मना कर दें, कभी किसी मित्र और धर्मपत्नी अथवा प्रेयसी की मांगों का संतुलन तो कभी धन और शौक के बीच का चुनाव करना हमारे लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। ऐसी स्थिति में यदि हम दस-दस-दस की प्रक्रिया न अपनाएं तो सब कुछ राम भरोसे होता है, जबकि दस-दस-दस की प्रक्रिया अपनाकर हम अपने निर्णय को कदरन सुरक्षित और सटीक बना सकते हैं। ‘दस मिनट, दस महीने, दस साल’ की निर्णय प्रक्रिया अपनाकर हम ऐसे निर्णय ले सकते हैं जो अब भी हमारा हित करें और दूरगामी भविष्य में भी हमारे लिए लाभदायक हों।

पी. के. खुराना

राजनीतिक रणनीतिकार

ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com


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