विपक्षी एकता के प्रयासों को धक्का

विपक्षी पार्टियों के लिए यह ‘प्रथम ग्रासे मक्षिका’ वाला प्रसंग है। बाकी पार्टियों में भी हो-हल्ला होने लगा है। सबसे ज्यादा हलचल तो नीतीश बाबू की जेडीयू में है। पटना वाले खेला में नीतीश बाबू ही लालू यादव जी के बेटे तेजस्वी यादव के साथ मिल कर उत्साह से लबरेज थे। बिहार विधानसभा में कुल 243 सीटें हैं। इनमें से भाजपा और लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल के पास 80-80 विधायक हैं। नीतीश कुमार की जेडीयू के पास 45 और सोनिया कांग्रेस के पास 19 विधायक हैं। इसे नीतीश कुमार की राजनीतिक दक्षता ही कहना पड़ेगा कि वे 45 के बावजूद मुख्यमंत्री बने हुए हैं। शायद इसी के कारण नीतीश बाबू को लगा होगा कि राजनीति तो उनकी हथेली पर नाचती है। इसी के कारण उन्होंने शरद पवार के साथ मिल कर एक ऊंची उड़ान भरने की योजना बना ली होगी। शरद पवार के राजनीतिक पंख तो अब आकर उनके भतीजे ने काटे, लेकिन नीतीश कुमार तो कटे पंखों के साथ ही सुपरमैन की वर्दी पहन कर लम्बी उड़ान की तैयारियां कर रहे थे। लेकिन उनके छत्ते की मधुमक्खियों को लगने लगा कि हमारी यह रानी मक्खी खुद भी गिरेगी और हमें भी कहीं का नहीं छोड़ेगी…

पटना में लिखी गई विपक्षी एकता की इबारत की अभी स्याही भी सूखी नहीं थी कि एकता के केन्द्र में योजना पूर्वक बिठाए गए, राजनीति के चतुर खिलाड़ी 83 वर्षीय शरद पवार के घर में स्याही की दवात ही टूट गई और सारी स्याही इबारत के पन्नों पर बिखर गई। अब पटना की इबारत साफ-साफ पढ़ी नहीं जा रही। शरद पवार ने कई दशक पहले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, जिसे अंग्रेजी में एनसीपी कहा गया, बनाई थी। तब उनका मानना था कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अब राष्ट्रीय नहीं रह गई है क्योंकि उसने अपनी रस्सी सोनिया गान्धी के हाथों में दे दी है जो विदेशी मूल की हैं। कांग्रेस राष्ट्रीय रहे, इसलिए उन्होंने अपनी राष्ट्रवादी कांग्रेस बना ली। देश में तो नहीं, लेकिन अपने प्रदेश की राजनीति में उन्होंने जरूर अपनी पार्टी के लिए जगह बना ली और सोनिया गान्धी कांग्रेस को कुछ हलकों तक सीमित कर दिया। लेकिन पिछले विधानसभा चुनावों में उन्होंने महाराष्ट्र में सत्ता के लिए सोनिया जी की कांग्रेस के साथ मिल कर महाराष्ट्र विकास अगाड़ी बना ली और उसमें शिव सेना को भी शामिल कर लिया। लेकिन बढ़ती उम्र के कारण वे अपनी पार्टी अपने परिवार वालों के हवाले कर शायद सुख की नींद लेना चाहते थे। सुख की नींद का मतलब यह नहीं कि राजनीति छोडऩे की योजना बना रहे थे। बस इतना ही कि महाराष्ट्र में पार्टी अपने उत्तराधिकारी को सौंप कर स्वयं दिल्ली की राजनीति में हाथ आजमा लें। छोटी-बड़ी विपक्षी पार्टियां यदि मिल जाएं तो हो सकता है भारतीय जनता पार्टी को बहुमत न मिले और जोड़-तोड़ की राजनीति में शरद पवार के हाथ भी कोई मोटी चीज लग जाए। इसलिए वह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश बाबू को आगे करके अपने मोहरे चलने लगे।

जहां तक उनकी पार्टी एनसीपी का सवाल था तो परिवार में उसके दो सशक्त उत्तराधिकारी थे। एक उनके भतीजे अजीत पवार और दूसरी उनकी पुत्री सुप्रिया सुले। कहा जाता है कि पार्टी को बनाने में शरद पवार के साथ उनके इस भतीजे ने ही लम्बे अरसे तक भागदौड़ की थी। लेकिन जब विधिवत उत्तराधिकारी नियुक्त करने की बात आई तो शरद पवार ने भतीजे को नहीं बल्कि पुत्री को ही अधिमान दिया। परिवार की राजनीतिक धन-सम्पत्ति परिवार में बांट कर शरद पवार तो पटना वाला खेल खेलने में मशगूल हो गए और इधर उनके भतीजे के धैर्य का अन्त हो गया। 288 सदस्यों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में शरद पवार की पार्टी के 53 सदस्य हैं। अजीत पवार उनमें से चालीस सदस्य ले उड़े और भाजपा के साथ मिल ही नहीं गए, बल्कि अपने आठ सहयोगियों सहित मंत्री भी बन गए। उसके बाद शरद पवार का साथ छोडऩे वालों की रुक-रुक कर खबरें आने लगीं। चाचा-भतीजा ने एक-दूसरे को पार्टी से निकाल देने का कार्यक्रम भी सफलतापूर्वक निपटा दिया। लेकिन दुर्भाग्य से अब शरद पवार के हिस्से उनकी अपनी ही पार्टी में, मेला उजड़ जाने के बाद इधर उधर बिखरी हुई कुछ पत्तलें ही बची हैं। अब जब वे विपक्षी पार्टियों की बेंगलूर में होने वाली अगली बैठक में जाएंगे तो उनकी इन पत्तलों का वहां कौन खरीददार मिलेगा? मिल भी गया तो औने पौने दाम में ही खरीदेगा। जो शरद पवार कभी सोनिया गान्धी और राहुल गान्धी को हौसला देते थे कि हम आपके साथ हैं, उनको राहुल गान्धी और सोनिया गान्धी का फोन आया कि उम्र की इस चौथ में धैर्य मत छोडऩा, हम आपके साथ हैं। उस सोनिया गान्धी का जो अभी भी हैं तो विदेशी मूल की हीं। शरद पवार ने ये दिन भी देखने थे? यदि पटना-पटना खेला न खेलते तो शायद कोई उनकी ओर ध्यान ही न देता और वे चुपचाप अपनी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की साफ सफाई करते रहते। लेकिन जब कोई मधुमक्खियों के छत्ते के नाटक में स्वयं के लिए ‘रानी मक्खी’ की भूमिका तय करेगा तो उसे इसके खतरों का भी पता होना चाहिए था। यह समझ से परे है कि इतने समझदार शरद पवार इतनी राजनीतिक नासमझी कैसे कर बैठे?

विपक्षी पार्टियों के लिए यह ‘प्रथम ग्रासे मक्षिका’ वाला प्रसंग है। बाकी पार्टियों में भी हो हल्ला होने लगा है। सबसे ज्यादा हलचल तो नीतीश बाबू की जेडीयू में है। पटना वाला खेला में नीतीश बाबू ही लालू यादव जी के बेटे तेजस्वी यादव के साथ मिल कर उत्साह से लबरेज थे। बिहार विधानसभा में कुल 243 सीटें हैं। इनमें से भाजपा और लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल के पास 80-80 विधायक हैं। नीतीश कुमार की जेडीयू के पास 45 और सोनिया कांग्रेस के पास 19 विधायक हैं। इसे नीतीश कुमार की राजनीतिक दक्षता ही कहना पड़ेगा कि वे 45 के बावजूद मुख्यमंत्री बने हुए हैं। शायद इसी के कारण नीतीश बाबू को लगा होगा कि राजनीति तो उनकी हथेली पर नाचती है। इसी के कारण उन्होंने शरद पवार के साथ मिल कर एक ऊंची उड़ान भरने की योजना बना ली होगी। शरद पवार के राजनीतिक पंख तो अब आकर उनके भतीजे ने काटे, लेकिन नीतीश कुमार तो कटे पंखों के साथ ही सुपरमैन की वर्दी पहन कर लम्बी उड़ान की तैयारियां कर रहे थे। लेकिन उनके छत्ते की मधुमक्खियों को लगने लगा कि हमारी यह रानी मक्खी खुद भी गिरेगी और हमें भी कहीं का नहीं छोड़ेगी। लालू की सन्तानें छत्ते का शहद निकालने के लिए बर्तन लेकर घूम रहे हैं। अब खबरें आ रही हैं कि नीतीश बाबू के छत्ते में भी हलचल मची हुई है। वैसे तो विपक्ष को भयभीत कर देने वाली खबरें कर्नाटक से भी आनी शुरू हो गई हैं। फिलहाल पश्चिमी बंगाल में स्थानीय निकाय चुनावों के परिणाम की प्रतीक्षा करनी होगी। ममता की रणनीति तभी पता चलेगी। इस तरह विपक्ष एकजुट होने के प्रयास जरूर करता है, लेकिन साथ ही वह टूटता जाता है। विपक्ष में एकता नजर नहीं आ रही है। इसका लाभ भाजपा तथा मोदी को ही मिलेगा। फिलहाल भाजपा लाभ की स्थिति में लगती है, हालांकि पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के परिणाम आने के बाद विभिन्न दलों की प्रतिक्रिया देखने योग्य होगी। कुछ इंतजार करना होगा।

कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

ईमेल:kuldeepagnihotri@gmail.com


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