हिमाचली हिंदी कहानी : विकास यात्रा : किस्त-22

By: Sep 10th, 2023 12:04 am

कहानी के प्रभाव क्षेत्र में उभरा हिमाचली सृजन, अब अपनी प्रासंगिकता और पुरुषार्थ के साथ परिवेश का प्रतिनिधित्व भी कर रहा है। गद्य साहित्य के गंतव्य को छूते संदर्भों में हिमाचल के घटनाक्रम, जीवन शैली, सामाजिक विडंबनाओं, चीखते पहाड़ों का दर्द, विस्थापन की पीड़ा और आर्थिक अपराधों को समेटती कहानी की कथावस्तु, चरित्र चित्रण, भाषा शैली व उद्देश्यों की समीक्षा करती यह शृंखला। कहानी का यह संसार कल्पना-परिकल्पना और यथार्थ की मिट्टी को विविध सांचों में कितना ढाल पाया। कहानी की यात्रा के मार्मिक, भावनात्मक और कलात्मक पहलुओं पर एक विस्तृत दृष्टि डाल रहे हैं वरिष्ठ समीक्षक एवं मर्मज्ञ साहित्यकार डा. हेमराज कौशिक, आरंभिक विवेचन के साथ किस्त-22

हिमाचल का कहानी संसार

विमर्श के बिंदु

1. हिमाचल की कहानी यात्रा
2. कहानीकारों का विश्लेषण
3. कहानी की जगह, जिरह और परिवेश
4. राष्ट्रीय स्तर पर हिमाचली कहानी की गूंज
5. हिमाचल के आलोचना पक्ष में कहानी
6. हिमाचल के कहानीकारों का बौद्धिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक व राजनीतिक पक्ष

लेखक का परिचय

नाम : डॉ. हेमराज कौशिक, जन्म : 9 दिसम्बर 1949 को जिला सोलन के अंतर्गत अर्की तहसील के बातल गांव में। पिता का नाम : श्री जयानंद कौशिक, माता का नाम : श्रीमती चिन्तामणि कौशिक, शिक्षा : एमए, एमएड, एम. फिल, पीएचडी (हिन्दी), व्यवसाय : हिमाचल प्रदेश शिक्षा विभाग में सैंतीस वर्षों तक हिन्दी प्राध्यापक का कार्य करते हुए प्रधानाचार्य के रूप में सेवानिवृत्त। कुल प्रकाशित पुस्तकें : 17, मुख्य पुस्तकें : अमृतलाल नागर के उपन्यास, मूल्य और हिंदी उपन्यास, कथा की दुनिया : एक प्रत्यवलोकन, साहित्य सेवी राजनेता शांता कुमार, साहित्य के आस्वाद, क्रांतिकारी साहित्यकार यशपाल और कथा समय की गतिशीलता। पुरस्कार एवं सम्मान : 1. वर्ष 1991 के लिए राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से भारत के राष्ट्रपति द्वारा अलंकृत, 2. हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा राष्ट्रभाषा हिन्दी की सतत उत्कृष्ट एवं समर्पित सेवा के लिए सरस्वती सम्मान से 1998 में राष्ट्रभाषा सम्मेलन में अलंकृत, 3. आथर्ज गिल्ड ऑफ हिमाचल (पंजी.) द्वारा साहित्य सृजन में योगदान के लिए 2011 का लेखक सम्मान, भुट्टी वीवर्ज कोआप्रेटिव सोसाइटी लिमिटिड द्वारा वर्ष 2018 के वेदराम राष्ट्रीय पुरस्कार से अलंकृत, कला, भाषा, संस्कृति और समाज के लिए समर्पित संस्था नवल प्रयास द्वारा धर्म प्रकाश साहित्य रतन सम्मान 2018 से अलंकृत, मानव कल्याण समिति अर्की, जिला सोलन, हिमाचल प्रदेश द्वारा साहित्य के लिए अनन्य योगदान के लिए सम्मान, प्रगतिशील साहित्यिक पत्रिका इरावती के द्वितीय इरावती 2018 के सम्मान से अलंकृत, पल्लव काव्य मंच, रामपुर, उत्तर प्रदेश का वर्ष 2019 के लिए ‘डॉ. रामविलास शर्मा’ राष्ट्रीय सम्मान, दिव्य हिमाचल के प्रतिष्ठित सम्मान ‘हिमाचल एक्सीलेंस अवार्ड’ ‘सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार’ सम्मान 2019-2020 के लिए अलंकृत और हिमाचल प्रदेश सिरमौर कला संगम द्वारा डॉ. परमार पुरस्कार।

डा. हेमराज कौशिक
अतिथि संपादक
मो.-9418010646

-(पिछले अंक का शेष भाग)
संपादक ने भूमिका में स्पष्ट किया है, ‘प्रस्तुत संग्रह में नए व पुराने दोनों तरह के कथाकार हैं। मोटे तौर पर नये वे हैं जिन्होंने अभी शुरुआत की है और लंबा रास्ता तय करना है जिनमें संभावनाएं हैं, दूसरे जो यह समझते हैं कि उन्होंने सफर तय किया है। वे कहां तक पहुंचे हैं, कहीं पहुंचे भी हैं या नहीं, कि वहीं है अपनी ही धुरी के इर्द-गिर्द घूम रहे हैं या कि पीछे छूट गए हैं। उम्र कम-अधिक होने से कहानीकार नया या पुराना नहीं होता। सवाल लेखन की उम्र का है और उम्र के साथ आयी परिपक्वता का है।’ सुदर्शन वशिष्ठ ने ‘दो उंगलियां’ और ‘दुश्चक्र’ (1985) शीर्षक संग्रह में पंद्रह कहानीकारों की कहानियों का संपादन किया है, यथा बर्फ का आदमी (क्षमा कौल) दो उंगलियां (सरोज दुबे), बर्फ की पंखुडिय़ां (सैन्नी अशेष), बीज प्रक्रिया (डॉ. इंदु बाली), शरीफ आदमी (महाराज कृष्ण काव), आप में से कोई भी (जसवंत सिंह बिरदी), ककून (डॉ. सुशील कुमार फुल्ल), चिडिय़ाघर (राधेश्याम), खच्चर (केशव), इति कथा अथ कथा (महेश कटारे), नंगा आदमी (योगेश्वर शर्मा), हथेलियों के बाहर (प्रभु नाथ आजमी), पढ़ाई जारी है (नरेंद्र निर्मोही), दुश्चक्र (चंद्र मोहन प्रधान) व पिंजरा (सुदर्शन वशिष्ठ)। ‘काले हाथ और लपटें’ शीर्षक से सुदर्शन वशिष्ठ ने एक अन्य कहानी संग्रह संपादित किया है जिसमें उन्होंने बारह कहानियां संपादित की हैं। इस संकलन में छह कथाकार हिमाचल के और छह प्रदेश के बाहर के हैं। संदर्भित संग्रह में काले हाथ ;(क्षमा कौल), खबर (धीरेंद्र अस्थाना), बुखारी (नरेंद्र निर्मोही), गटर (केशव), बंटवारा (नरेंद्र मौर्य), प्रेत मुक्ति (संजीव), वार्ड नंबर सात का प्रत्याशी (योगेश्वर शर्मा), कितने चक्कर (बद्रीसिंह भाटिया), अधिकार वंचित (डॉ. शीतांशु भारद्वाज), बाहर का आदमी (डॉ. सुशील कुमार फुल्ल), लपटें (नवारुण वर्मा) और दंश (सुदर्शन वशिष्ठ) कहानियों को संगृहीत किया है। आहटें (1983) शीर्षक से केशव ने हिमाचल के समकालीन कथाकारों की ग्यारह कहानियों का संपादन किया है। इस संग्रह में सुंदर लोहिया से लेकर राजेश शर्मा तक पृथक-पृथक पीढिय़ों के कथाकारों की कहानियों को संगृहीत किया है। इस संग्रह के माध्यम से विभिन्न पीढिय़ों की संवेदना भूमि के वैविध्य को अनुभव किया जा सकता है।

नवें दशक में अवतरित होने वाले नए कहानीकारों की कहानियां ‘पीलिया’ (योगेश्वर शर्मा), ‘भेडि़ए’ (अरुण भारती), ‘इन्दु तुम’ (महाराज कृष्ण काव) और ‘सौदा’ (राजेश शर्मा) संगृहीत हैं। तुलसी रमण ने नवें दशक में ‘पहाड़ से समुद्र तक’ (1984) और ‘बर्फ की कोख’ (1986) दो कहानी संग्रहों का संपादन किया है। इन दोनों संपादित कहानी संग्रहों की पृथक पृथक भूमिका है। ‘पहाड़ से समुद्र तक’ में तुलसी रमण ने हिंदी कहानी के क्षेत्र में हिमाचल से बाहर के चर्चित कथाकारों के साथ हिमाचल के हिंदी कथाकारों को सम्मिलित किया है। अपने संपादकीय में संपादक रमण ने यह स्पष्ट किया है, ‘लेखन के परिवेश और अलग होने और परिस्थितियां भी एक जैसी न होने के बावजूद मूलभूत समस्याओं और दृष्टिकोणों में निकटता के साथ संवेदनागत समानता पाई जाती है।’ ‘बर्फ की कोख में’ में हिमाचल प्रदेश के दस कहानीकारों की बीस कहानियां सम्मिलित हैं। ‘साहित्य निकाय’ शीर्षक से संपादक संतराम शर्मा ने बाईस कहानियों का संपादन किया है। संदर्भित संग्रह में कहानियां हैं : प्रकृति (डॉ. शांति भिक्षु शास्त्री), जंगल (केशव नारायण), रेखा (शंकर लाल शर्मा), जिजीविषा (सुशील कुमार फुल्ल), कमल कीड़े (किशोरीलाल वैद्य), खाली मेहराव (विजय सहगल), मासूम ईष्र्या (संतराम शर्मा), एक मुंशी का सपना (राजगोपाल शर्मा), सोया हुआ क्षितिज (सागर पालमपुरी), गगन (अश्वनी अवस्थी), पिघलती दूरियां (जिया सिद्दीकी), वर्षा आ गई अचानक (कर्नल विष्णु शर्मा), पटवार बाय (महाराज कृष्ण काव), अपनेपन का आभास (जगदीश शर्मा शीतल), हाथी थान (सुदर्शन वशिष्ठ), समझौता (सुरेंद्र कौर), सिसकियां (अशोक सरीन), बर्फ और बर्फ (यशवीर धर्माणी), चोरी और सीनाजोरी (रतन सिंह हिमेश), परिणति (सत्य प्रसाद पांडेय), अंधेरे में चलते हुए (शांता सिन्हा), वृक्ष और लता (इंदु रश्मि कपूर) संगृहीत हैं।

प्रस्तुत संग्रह की भूमिका में किशोरी लाल वैद्य ने स्पष्ट किया है, ‘जो साहित्यकार जन्म से पहाड़ी हैं और जिसकी अपनी समूची सोच में पहाड़ों को अनायास स्थान मिला है, जिसने उसके सुख-दुख को मुखरित किया है, उसकी धडक़नों को वाणी दी है और उसकी सृजनशीलता और ऊर्जा को पहचाना है, उसके लिए एक कथा मंच की उपादेयता निस्संदिग्ध है, लेकिन इस कथा मंच की सार्थकता किसी गुटबंदी व खेमेबाजी से अलग-थलग रहने में ही है। इस संकलन का आयोजन सोलन साहित्य एवं कला परिषद द्वारा किया गया था। इस परिषद का संस्थापन श्री महाराज कृष्ण काव ने 1973 में किया था जब वे सोलन के जिलाधीश के रूप में कार्य कर रहे थे। ‘साहित्य निकाय’ संग्रह के संपादक संतराम शर्मा ने प्रारंभ में ‘हिंदी साहित्य पर एक उड़ती नजऱ व टिप्पणी’ शीर्षक के अंतर्गत हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं का परिदृश्य स्पष्ट करते हुए हिमाचल प्रदेश में रचित साहित्य पर अपनी सारगर्भित टिप्पणी की है। साहित्य में मौलिकता के प्रश्न को उठाया है।

नवें दशक में श्रीनिवास जोशी के तीन कहानी संग्रह ‘कथांतर’ (1985), ‘पांच सपने’ (1986) और ‘दस्तक’ (1988) प्रकाशित हैं। ‘कथांतर’ में संपादक ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान तथा दिल्ली के तत्कालीन चुने कथाकारों की कहानियों को संगृहीत किया है। इसमें हिमाचल प्रदेश के तीन कहानीकारों की कहानियां- मुक्का (महाराज कृष्ण काव), सही उपयोग (अरुण भारती) और नंगा आदमी (योगेश्वर शर्मा) सम्मिलित हैं। ‘पांच सपने’ (1986) में पांच कथाकारों की कहानियां संग्रहीत हैं। श्रीनिवास जोशी का इस संपादित संग्रह को निकालने की जरूरत के संबंध में मंतव्य है, ‘मुझे यह बात चुभती थी कि आठवें दशक के कथाकारों को कहानी और उपन्यास के लिए जो जमीन मिल रही है वह ऊसर या बंजर है। उन्होंने अपनी कहानी और उपन्यास के फावड़े से उस ऊसर और बंजर भूमि को मंच पर लाया। उनकी मेहनत का नतीजा यह निकला कि कुछ फसलें फल देने लगीं। मैं पांच उपन्यासकारों या कहानीकारों की पांच कहानियों का गुलदस्ता तब पेश कर पाया। यही मेरी उपलब्धि है।’ इस संकलन में केशव की ‘अलाव’ कहानी सम्मिलित है। श्रीनिवास जोशी का तीसरा संपादित संकलन ‘दस्तक’ शीर्षक से प्रकाशित है। प्रस्तुत संपादित संग्रह निकालने का उद्देश्य भाषा और संस्कृति विभाग द्वारा नए साहित्यकारों को प्रोत्साहित करना रहा है। इसमें लगभग सभी कहानीकार नये हैं। इस संग्रह में सभी कहानियां भाषा विभाग द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता की उपज है। इस प्रतियोगिता में महिला कथाकारों ने भी बढ़ चढक़र हिस्सा लिया था।

परिणामस्वरूप ग्यारह कहानीकारों में से चार महिला कथाकारों की कहानियां इस संपादित संग्रह में समाविष्ट हैं। संपादक ने ‘दस्तक’ (1988) शीर्षक से ग्यारह कहानियों का संपादन इस क्रम में किया है : अपनी जिंदगी (उषा आनंद), समागम (दिलीप सिंह वर्मा), लाल होता दरख्त (संतराम हरनोट), सारे जहां से अच्छा (हेमलता कपूर), आदर्शों के खंडहर (स्नेह लता), पानो चाची (जोगिन्द्र कुमार चौहान), चांद के घेरे में (डॉ. श्रीराम शर्मा), द्रोही (आत्माराम शर्मा), समाधान (देवना ठाकुर), नर बलि (भोज प्रकाश शर्मा), लंबाई पंद्रह मिनट की (पीसीके प्रेम) संगृहीत हैं। संदर्भित संग्रह के संपादक श्रीनिवास जोशी का कहना है, ‘हिमाचल प्रदेश के भाषा एवं संस्कृति विभाग द्वारा प्रकाशित हिमाचल प्रदेश के नए कहानीकारों को प्रोत्साहित करने एवं प्रकाशन की सुविधा प्रदान करके उनकी रचनात्मक क्षमता को उभार कर सामने लाना निहित है। इस योजना के तहत जिला स्तर पर आयोजित कहानी प्रतियोगिता में प्रथम आने वाली कहानियों को संदर्भित संग्रह में सम्मिलित किया गया है।’ कहानियों की संवेदना भूमि की दृष्टि से ‘समागम’ नर नारी संबंधों पर केंद्रित है और ‘अपनी जिंदगी’ नारी की सामाजिक स्थिति को निरूपित करती है।

‘लाल होता दरख्त’ और ‘आदर्शों के खंडहर’ में दहेज की विभीषिका से उत्पन्न स्थितियों की परिणिति को सामने लाया है। ‘सारे जहां से अच्छा’ सांप्रदायिकता की अमानवीयता को चित्रित करती है। ‘लम्बाई पंद्रह मिनट की’ विघटित होते हुए मूल्यों पर केंद्रित है। ‘सूत्र गाथा और धंधा’ (1987) शीर्षक कहानी संग्रह का संपादन कौशल्या एवं सह संपादन बद्रीसिंह भाटिया ने किया है। प्रस्तुत संग्रह की भूमिका अर्पणा साहित्यिक मंच शिमला के अध्यक्ष की है जिसमें उन्होंने संपादित संग्रह निकालने के संस्था के संकल्प और उद्देश्य को स्पष्ट किया है। इस संबंध में उनका कहना है, ‘अर्पणा साहित्यिक मंच के संविधान के अंश के अंतर्गत प्रस्तुत संपादित संग्रह पाठकों के सामने आया है। इसमें न तो लेखक के स्थापत्य की ओर, न ही उसके वर्चस्व को देखा गया है। सीधे से इसमें लेखकों की रचनाओं को एक विषय के अंतर्गत सम्मिलित किया है।’ संदर्भित संग्रह में हिमाचल प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के बाहर के नौ कथाकारों की कहानियां समाविष्ट हैं ) ऋण का धंधा (सुदर्शन वशिष्ठ), मुआवजा (अंजना रंजन दाग), खच्चर (केशव), सूत्र गाथा (मनीष राय), दृश्य अदृश्य (नरेंद्र निर्मोही), बिजूका (संतोष वर्मा), धंधा (बद्री सिंह भाटिया), चि_ी (राजकुमार), निजी सेना (जयनंदन) संग्रहीत हैं।

डॉ. ओमप्रकाश सारस्वत का ‘हिमाचल की श्रेष्ठ कहानियां’ (1988) शीर्षक से संपादित कहानी संग्रह प्रकाशित है। प्रस्तुत कहानी संग्रह में कहानीकारों की उन्नीस कहानियां : बाबूजी (केएस राणा परदेसी), ग्राईं (विनोद हिमाचली), महत्वाकांक्षा (विनोद हिमाचली), मैं ससुराल नहीं जाऊंगी (कुलदीप चंदेल दीपक), बरगद का ठूंठ (राजकुमार कमल), उपेक्षा का जहर (उषा मेहता दीपा), दरिंदे (भगवान देव चैतन्य), बिच्छू (डॉ. प्रत्यूष गुलेरी), अकर्मण्यता (डॉ. राममूर्ति वासुदेव प्रशांत), चुड़ैलों का नाच (ओंकार सिंह पठानिया), वापसी (कुमारी स्वर्ण कांता शर्मा), टूटी हुई मुस्कान (राकेश रॉकी), चौराहे से वापसी (सीआरबी ललित), टूटते हुए (निर्मल फुल्ल), एक शहीद और (रमेश शर्मा अरुण), मातादीन अब नहीं (विजय सहगल), कठपुतली (दीपा त्यागी), नायक (महेश चंद्र सक्सेना), मलाई चोर (हिमेश) सम्मिलित हैं।
संपादक डॉ. ओम प्रकाश सारस्वत ने ‘परिचय’ शीर्षक भूमिका के अंतर्गत सारगर्भित रूप में संग्रह में संपादित कहानियों की संवेदना भूमि को स्पष्ट किया है। उनका कहना है, ‘संकलन में उन्नीस कहानियां हैं। सभी कहानीकारों ने हिमाचल प्रदेश के विभिन्न अंचलों का वर्णन अपनी कहानियों में बहुत कलात्मक ढंग से किया है। रचनाकारों ने गिरि, श्रृंगों, उत्तुंग श्रेणियों, द्रुम विद्रुम, नदियों, झरनों एवं शीला खण्डों, देवस्थानों का वर्णन करते समय उसे कथांचल के रूप, रंग, गंध और स्वर विशेष को तथा जीवन की अनुभूतियों एवं सच्चाइयों को परखने में जिस कला कौशल का परिचय देकर अभिव्यक्ति की सार्थकता तथा गरिमा को स्थापित किया है, वही वर्तमान संदर्भ का अभीष्ट है। अनेकों पारिवारिक, सामाजिक एवं राजनैतिक प्रवंचनाओं वैषम्य के भीतर से कथाकारों के अनुभवों और संवेदनाओं के नए स्वरों को उद्घाटित किया है।’                                                                                                                                 -(शेष भाग अगले अंक में)

पुस्तक समीक्षा : भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर ज्ञानवर्धक पुस्तक

भारत की आजादी के लिए अनेक वीरों एवं वीरांगनाओं ने तन, मन और धन से सक्रिय योगदान दिया है। सैंकड़ों वर्षों से भारत गुलामी की जंजीरों में जकड़ा रहा है। हर आक्रांता ने अपने निर्मम एवं बर्बर व्यवहार से निरंतर भारतीयों को प्रताडि़त किया था और हर आदमी उन आक्रांताओं को भारत से खदेड़ देना चाहता था। मुगलों के अत्याचार भी कम नहीं थे और ईस्ट इडिया कम्पनी व्यापार के उद्देश्य से यहां आई थी, परंतु धीरे-धीरे भारत के भूभाग पर कब्जा करती चली गई और अठारहवीं शती में तो ब्रिटिश सरकार ने कानून पास करके इसे सीधे इंग्लैंड सरकार के नियंत्रण में ले लिया। आलोच्य पुस्तक ‘प्रथम स्वतंत्रता संग्राम’ में विद्वान लेखक ने पूरी पृष्ठभूमि को रेखांकित करते हुए बड़े ही रोचक परंतु बड़े ही प्रामाणिक ढंग से 1857 की प्रथम क्रांति के इतिहास को प्रस्तुत किया है। कतिपय इतिहासकारों ने तो सन् 1857 की क्रांति को मात्र सिपाही विद्रोह या गदर कहकर मंगल पांडेय और उसके अन्य साथियों के बलिदान को नकारने का काम किया है। जगदीश शर्मा ने अपनी इस पुस्तक में इसका खंडन करते हुए स्पष्ट किया है कि वीर सावरकर पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इस क्रांति को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की संज्ञा से विभूषित किया था।

सत्रह अध्यायों में बंटी इस पुस्तक में क्रमवार स्वातंत्र्य क्रांति की पृष्ठभूमि से लेकर भारत के स्वतंत्रता प्राप्त करने की कहानी सारगर्भित ढंग से प्रस्तुत की गई है। केवल मेरठ में हुई क्रांति की ही बात नहीं, बल्कि भारत में कहां-कहां स्वतंत्रता की आग भडक़ती गई, उसका उल्लेख बहुत से नए तथ्यों को हमारे सामने उजागर करता है। सन् 1857 के पूर्व घटित आंदोलनों का जिक्र भारतीयों के सामूहिक प्रयासों को समझने में मदद करता है। कोई बावन विद्रोहों या आंदोलनों का उल्लेख किया गया है, यथा 1763-1800 का संन्यासी विद्रोह, 1783 का तमिल आंदोलन, 1794 का विजयानगर विद्रोह, 1853 में रावलपिंडी में नादिरखां का विद्रोह आदि। प्रथम संग्राम के कर्णधार कौन थे, इस पर भी विस्तृत तथ्यात्मक सामग्री दी गई है। नाना साहिब पेशवा की भूमिका, बहादुर शाह जफर का योगदान, वीर कुंवर सिंह, वाजिद अली खां, अमर सिंह तथा प्रथम शहीद मंगल पांडे का मार्मिक वर्णन पाठक को रुलाता भी है और गौरवान्वित भी करता है। वीरांगनाओं में रानी चेनम्मा, मैना कुमारी, रानी ईश्वरी देवी, महारानी तपस्विनी का उल्लेख भी है। नई पीढ़ी के लिए यह पुस्तक स्वतंत्रता संग्राम पर एन्साइक्लोपीडिया का काम करेगी। देशभारती प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित इस पुस्तक का मूल्य 495 रुपए है।

-डा. सुशील कुमार फुल्ल

मनोरंजक कहानियों का लेखा-जोखा ‘प्याली भर जुगुप्सा’

अपने जीवन के 47 वसंत देख चुकी हिंदी प्रवक्ता दीप्ति सारस्वत ‘प्रतिमा’ का प्रथम कहानी संग्रह करीब पच्चीस वर्षों में लिखी कहानियों का लेखा-जोखा है। इससे पहले सोचती हूं (2018), चलती फिरती खिडक़ी (2019), धुंधली धूप (2020) व प्रेम एक स्लेटी आसमान (2022) नामक चार प्रकाशित कविता संग्रह पाठकों द्वारा काफी सराहे जा चुके हैं। अपने पति डॉक्टर इन्द्र सूर्यान व सुपुत्र स्वप्निल सूर्यान बालमन को समर्पित समीक्षित कहानी संग्रह में 27 विभिन्न कथावस्तुओं, समसामायिक विषयों से भरपूर चित्ताकर्षक कहानी संग्रह की प्रस्तावना में कहानी संग्रह के प्रकाशन में श्री एसआर हरनोट, सुदर्शन वशिष्ठ, अमरदेव अंगिरस, मीनाक्षी एफ. पॉल, डॉ. हेमराज कौशिक, गुप्तेश्वर नाथ उपाध्याय, कुलराजीव पंत, हरदीप सभरवाल, देवाशीष आर्य, राजेश कुमार चौहान, विद्यानिधि, भारती कुठियाला, ओपी कायस्थ व नीलम के अमूल्य सहयोग के लिए आभार प्रकट किया है। इन कहानियों में प्रकृति चित्रण, आंचलिकता संग बालमन से लेकर वृृद्धावस्था तक की मानवीय सोच, विकट समस्याओं का उनका समाधान खोजने का भी संदेश देते हुए कलम चलाने का समुचित प्रयास किया है। किसी भी कहानी को ज्यादा खींचने का प्रयास नहीं किया है। कथानक के विस्तार द्वारा प्रत्येक कहानी के पात्रों को जीवंत करने का समुचित प्रयास किया है। पात्रों का भौगोलिक, सांस्कृतिक, भौतिक, मानसिक परिवेश पाठक को यह महसूस कराता है कि मानो यह उनकी ही आंचलिक पृष्ठभूमि से सम्बन्धित है। संवाद छोटे, सटीक, स्वाभाविक व उद्देश्यपूर्ण हैं कि मानो कहानीकार पृष्ठभूमि में पहुंचकर केवल पात्र ही पाठकों से मुखातिब हो रहे हों। कहानी संग्रह का शीर्षक इसी संग्रह में क्रम संख्या 17 पर प्रकाशित चर्चित कहानी ‘प्याली भर जुगुप्सा’ रखना बिल्कुल सटीक प्रतीत होता है।

आधुनिक वैज्ञानिक युग में शिक्षित समाज में भी मासिक धर्म जैसे प्राकृतिक ज्वलंत विषयों पर जानते हुए रूढि़वादी पीढ़ी दर पीढ़ी सोच के चक्रव्यूह में फंसी महिला आज भी मानसिक रूप से हीन भावना, कुंठा का शिकार होते हुए कितनी सहजता से अंधविश्वासी परम्परा को निभाती है। ऐसे गंभीर विषयों पर रचनाकार समय-समय पर पत्र-पत्रिकाओं में भी कलम चलाते रहते हैं तथा कुछ फिल्म/नाटक निर्देशक व एनजीओ भी इस पर संज्ञान लेकर समाज में जागरूकता फैलाने का समुचित प्रयास कर रहे हैं। उपरोक्त कहानी में कई दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में उन दिनों महिलाओं को घर के निचले हिस्से/जमीन पर स्लीपिंग बैग में सोने का भी वर्णन है। पुराने समय में तो पशुशाला जैसे कमरे में भी सोने और यहां तक कि मां द्वारा पर्स धोने की भी बात कही गई है। कहानी के अंत में ऐसी मान्यताओं के आज सामाजिक जागरूकता के कारण दिन-प्रतिदिन कमजोर पडऩे की भी आशा व्यक्त करके समाज को प्रेरणादायक संदेश देने का सफल प्रयास किया है। कहानी संग्रह का श्रीगणेश करती ‘गुलाबी फूल’ कहानी प्रकृति का चीरहरण करते मानव की मनसा के जानकार अडिग गिरिराज व अनजान अबोध कोमल गुलाबी फूल को पाने को लालायित युगल दंपति का मुस्कुराकर स्वागत करते पल का वर्णन करके मानव के गिरगिटी रंग को आईना दिखाने का मनोहारी चित्रण किया है। ‘लघुकथा’ में अधिकतर दुकानदारों द्वारा घटिया सामान ऊपर रखने की सामान्य नियमावली को दरकिनार करते हुए आलोक कुमार डेली नीड कार्नर के नियमों से विरोधाभास बताकर किसी को भी अंडरएस्टीमेट न आंकने की गहरी सीख दी है। ‘तन्हाई’ में अमीर व्यक्ति को सोशल मीडिया पर जीवन से दु:खी होकर इहलीला समाप्त करने को आतुर लाईव वीडियो शेयर करने से कुछ पल पहले आए विचारों के तीव्र परिवर्तन का अलौकिक चित्रण करके यह कड़वी सच्चाई दिखाने का सफल प्रयत्न किया है कि किसी के होने/न होने से दुनिया की भागमभाग दौड़ में तनिक भी अल्पविराम नहीं आता है। ‘बचपना’ में एक युवती नयना द्वारा बालमन की यादों में खो जाने पर जूते पर नाम लिखने व अपरिचित सहयात्री द्वारा उसे नाम से पुकारने पर पहले घमंड दिखाते हुए बाद में सच्चाई पता चलने पर चेहरा छुपाने की नौबत आने का रोचक वर्णन किया है। अप्रत्याशित, घोर निराशा युवा मन के हास्य व्यंग्य व नोंक झोंक को लेकर बनाई गई है। जहर कहानी में शील भंग करने की कोशिश करते शराबी को नदी में धक्का देकर गिराने वाली वीरांगना युवती के पक्ष में समाज के खड़े होने की कहानी है। चूहा-बिल्ली प्राचीन जमींदारी प्रथा व गरीब लाचार मजदूरों के शोषण से प्रेरित है। ‘तिनका-तिनका बिखरा नीड़’ कोरोना काल में ऑनलाइन कक्षाएं लगाने के बहाने एंड्रॉयड फोन से बच्चों के मन मस्तिष्क में पढ़ाई कम व अवांछित ज्ञान के अधिक प्रवेश की आशंका से प्रेरित प्रतीत होती है। ‘चुनाव’ व ‘सच-भ्रम’ मानवीय संवेदनाओं के विघटन व रिश्तों में शक के नजरिए को इंगित करती कहानियां हैं। किस्मत वाली, बिस्तर कहानियां गृहस्थ के दिवास्वप्नों के टूटने की पराकाष्ठा है। अस्मिता कहानी थर्ड जैंडर/विशेष आवश्यकताओं वाले मनुष्य की समस्याओं की ओर समाज का ध्यान आकृष्ट करती है। लववाइट दो बहनों मोना और रीना की कहानी है जो एक घर में रहते हुए भी विचारों/अभिरुचियों में कोसों दूर हैं। ‘लाडला’ में बच्चों की शरारतों, कुसंगतियों पर पर्दा डालने वाले अभिभावकों को भविष्य में कुसंगतियों का परिणाम भुगतने को तैयार रहने की नैतिक सीख है।

-रवि कुमार सांख्यान

कहानी संग्रह : प्याली भर जुगुप्सा
कहानीकार : दीप्ति सारस्वत ‘प्रतिमा’
प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर
कीमत : 150 रुपए


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