सरकार प्रदेश में नई खेल नीति लागू करे

By: Oct 27th, 2023 12:07 am

राष्ट्रीय पदक विजेताओं के लिए वजीफे की बात हो। जो खेल छात्रावास के बाहर हों, उन्हें भी खेल छात्रावास के अंतर्गत दैनिक खुराक भत्ता व अन्य सुविधाओं के ऊपर खर्च होने वाली राशि के बराबर वजीफा देने की वकालत हो। जिन अवार्डी खिलाडिय़ों व प्रशिक्षकों के पास कोई नौकरी नहीं है, उन्हें साठ साल आयु के बाद पेंशन का प्रावधान हो…

इस माह चीन में आयोजित हुई एशियन खेलों में हिमाचल प्रदेश के खिलाडिय़ों ने विभिन्न खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया और पदक भी जीते हैं। हिमाचल सरकार दशकों पूर्व निर्धारित की गई नगद ईनामी राशि अपने विजेता खिलाडिय़ों को देने की बात कर रही है। जब अरबों लोगों के बीच स्वयं को इन खिलाडिय़ों ने सर्वश्रेष्ठ साबित कर दिया है तो इन्हें नयी बनी खेल नीति के अनुसार नकद ईनाम व नौकरी राज्य सरकार को जल्दी देनी चाहिए। हिमाचल प्रदेश में पिछली बीजेपी सरकार में नयी खेल नीति का होहल्ला अपने पूरे कार्यकाल में मचाये रखा। पहले तो खेल नीति पर काफी चर्चा पर चर्चा होती रही, मगर बाद में कार्यकाल के मध्य बने खेल मंत्री राकेश पठानिया के प्रयासों से हिमाचल प्रदेश सरकार की खेल नीति को कागजों में नया स्वरूप मिल ही गया। इस नीति में स्तरीय ढांचे की बात तथा प्रशिक्षण कार्यक्रम को खिलाड़ी के अनुरूप करने की कोशिश की है जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कड़ी प्रतिस्पर्धा देकर खिलाड़ी प्रदेश व देश को पदक जीतकर तिरंगे को सबसे ऊपर उठा कर जन गण मन की धुन पूरे विश्व को सुना सकंे।

हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन हुक्मरानों ने खेल विभाग को कभी खेल प्राधिकरण तो कभी खेल संस्थान बनाने की वकालत की है, मगर हिमाचल प्रदेश में खेलों की हकीकत सबके सामने है। नयी खेल नीति में राज्य खेल संस्थान का भी जिक्र है। पिछली भाजपा सरकार नयी खेल नीति तो बना गई, मगर उसे धरातल पर उतारने से पहले ही सत्ता से बेदखल हो गई। अब नयी बनी कांग्रेस सरकार से हिमाचल के खेल प्रेमियों को काफी आशा है। क्या कांग्रेस सरकार हिमाचल में खेल प्राधिकरण बना कर खेलों का व्यापक स्तर पर कायकल्प करेगी? हिमाचल प्रदेश में कई खेलों के लिए विश्व स्तरीय खेल ढांचा तो बन कर तैयार हो चुका है, मगर प्रशिक्षकों व अन्य सुविधाओं के अभाव में वहां पर उस तरह का प्रशिक्षण कार्यक्रम आरम्भ नहीं हो पाया है। हिमाचल प्रदेश में अभी तक भी खेल संस्कृति का अभाव साफ देखा जा सकता है। धूमल सरकार में बनी खेल नीति में हिमाचल के खिलाडिय़ों को सरकारी नौकरी में तीन प्रतिशत आरक्षण बहुत बड़ी सौगात है। अब दो दशक बाद विभिन्न पहलुओं के ऊपर नयी खेल नीति में सुधार किया गया है, मगर देखते हैं इसका जब जमीनी हकीकत से सामना होगा तो वास्तव में सरकारी तंत्र कितना सही कार्यनिष्पादित करवा पाता है। खेलों में अधिक से अधिक लोगों की भागीदारी सुनिश्चित हो, इससे जब हजारों विद्यार्थी फिटनेस कार्यक्रम से गुजरेंगे तो उनमें कुछ अच्छे खिलाड़ी भी मिलेंगे। खेल नीति में हिमाचली खिलाडिय़ों से राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक विजेता प्रदर्शन के लिए राज्य में अधिक से अधिक खेल अकादमियां व शिक्षा संस्थानों में खेल विंग, स्थान की सुविधा व प्रतिभा को देखते हुये सरकारी व खेल संघों के माध्यम से खोलने को कहा गया है तथा भविष्य में विभिन्न बड़ी कंपनियों से सीआरएस के माध्यम से राज्य में खेल ढांचे को सुदृढ़ करने की मंशा भी है।

मनरेगा से भी ग्रामीण क्षेत्रों में प्ले फील्ड की सुविधा जुटाने की बात कही गई है। हिमाचल प्रदेश में विभिन्न खेलों का स्तर राज्य में खेल छात्रावासों के खुलने के बाद भी अभी तक सुधरा नहीं है। यह अलग बात है कि कुछ जुनूनी प्रशिक्षकों के बल पर कभी-कभी अच्छे परिणाम देने वाला हिमाचल प्रदेश राष्ट्रीय स्तर पर कुछ एक खेलों को छोड़ कर अधिकांश बार पिछड़ा ही रहा है। हिमाचल हो या देश का कोई अन्य राज्य, उत्कृष्ट प्रदर्शन करवाने के लिए केवल प्रशिक्षक ही मुख्य किरदार दिखाई देता है। यही कारण है कि भारत का खेल मंत्रालय व कई राज्य भी अपने यहां हाई परफॉर्मेंस प्रशिक्षण केन्द्र खोलने पर जोर दे रहे हैंं तथा वहां पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करवाने वाले प्रशिक्षकों को अनुबंधित कर रहे हैं। खेलो इंडिया, गुजरात व पंजाब के उच्च खेल परिणाम दिलाने वाले प्रशिक्षण केन्द्रों की तरह ही हिमाचल प्रदेश में भी अधिक से अधिक इस तरह के हाई परफॉर्मेंस केंद्र व अकादमी खोलनी होगी। इन प्रशिक्षण केन्द्रों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक विजेता प्रदर्शन करवाने वाले अनुभवी प्रशिक्षकों को उत्कृष्ट प्रदर्शन करवाने की शर्तों पर पांच वर्षों के लिए अनुबंधित करना चाहिए, ताकि हिमाचल प्रदेश की संतानों को भी हिमाचल प्रदेश में रह कर ही वह प्रशिक्षण सुविधा मिल सके। केन्द्र व केरल सरकार की तर्ज पर प्रशिक्षकों को भी खिलाड़ी की तरह नगद ईनामी राशि व आवार्ड का प्रावधान किया गया है। आप हर विद्यार्थी को फिटनेस के लिए खेल मैदान में ले जाएंगे तो उनमें से जरूर कुछ अच्छे खिलाड़ी भी मिलेंगे। प्रतिभा खोज के बाद पढ़ाई के साथ-साथ प्रशिक्षण के लिए अच्छी खेल सुविधाएं मुहैया कराई जानी चाहिए। इसके लिए प्राधिकरण के माध्यम से हिमाचल प्रदेश के खिलाडिय़ों को वैज्ञानिक आधार पर लंबी अवधि के प्रशिक्षण शिविर लगें तथा प्रदेश के शारीरिक शिक्षकों व पूर्व राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय खिलाडिय़ों के लिए सेमिनार व कम अवधि के प्रशिक्षक बनने के कोर्सेज हों। साथ ही साथ यहां पर राष्ट्रीय प्रतियोगिता के पूर्व लगने वाले कोचिंग कैम्प भी अनिवार्य रूप से लगाए जाएं ताकि पहाड़ के लोगों को भी वही सुविधा उपलब्ध हो, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर के उत्कृष्ट प्रदर्शन किये जा सकें।

राष्ट्रीय पदक विजेताओं के लिए वजीफे की बात हो। जो खेल छात्रावास के बाहर हों, उन्हें भी खेल छात्रावास के अंतर्गत दैनिक खुराक भत्ता व अन्य सुविधाओं के ऊपर खर्च होने वाली राशि के बराबर वजीफा देने की वकालत हो। जिन अवार्डी खिलाडिय़ों व प्रशिक्षकों के पास कोई नौकरी नहीं है, उन्हें साठ साल आयु के बाद पेंशन का प्रावधान हो। केंद्र सरकार में भारतीय खेल प्राधिकरण उपरोक्त ऐसी सभी योजनाओं को लागू करवाता है। ऐसी ही व्यवस्था राज्य स्तर पर भी होनी चाहिए क्योंकि शिक्षा की तरह खेल भी समवर्ती सूची का विषय है।

भूपिंद्र सिंह

अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक

ईमेल: bhupindersinghhmr@gmail.com


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