‘गुदड़ी के लाल’ पदकवीर

By: Oct 3rd, 2023 12:05 am

खेलों में ‘गुदड़ी के लाल’ भी देश के नायक, योद्धा होते हैं। वे भी देश और उसकी प्रतिष्ठा के लिए खेलते हैं। वे ज्यादातर सामान्य परिवारों से आते हैं, लिहाजा देश की मिट्टी और जिंदगी की मुश्किलों से उठकर वे ‘चैम्पियन’ और ‘पदकवीर’ बनते हैं। देश उनका भी आभारी है और झुककर साधुवाद देता है। हांगझाउ, चीन में जारी एशियाई गेम्स, 2022 में भारत के कई ‘गुदड़ी के लाल’ उभर कर चमके हैं, जिनके हुनरमंद खेलों ने एक ही दिन में 3 स्वर्ण पदक समेत 15 पदकों से भारत की झोली भर दी है। हम बीते रविवार, 1 अक्तूबर, की खेल-स्पर्धाओं की ही बात कर रहे हैं। सबसे पहले अविनाश साबले का चेहरा आंखों के सामने तैरता है। उन्होंने 3000 मीटर की ‘लंबी बाधा दौड़’ को सिर्फ 8 मिनट 19.50 सेकंड में पूरा कर इतिहास रच दिया। वह इस खेल के प्रथम स्वर्ण पदक विजेता पुरुष खिलाड़ी हैं। कभी 2010 में सुधा सिंह ने ग्वांग्झू एशियाई खेलों में महिलाओं की इसी स्पर्धा का स्वर्ण पदक हासिल किया था। इनके अलावा, इस खेल में अभी तक भारत की उपलब्धियां ‘शून्य’ रही हैं। साबले ने 2015 में ‘बाधा दौड़’ का खेल शुरू किया और सिर्फ 8 सालों के अंतराल में ही आज वह ‘राष्ट्रमंडल खेलों’ और ‘एशियाई गेम्स’ के चैम्पियन खिलाड़ी हैं। वह विश्व स्तरीय धावक भी बन गए हैं। बीते साल ही राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीत कर साबले ने बड़े देशों को स्तब्ध कर दिया था। अब एशियाई खेलों में दो जापानी खिलाडिय़ों को पछाड़ कर साबले विजेता बने हैं। देश को ऐसे गौरव और हुनर पर नाज है।

अब साबले को पेरिस ओलंपिक, 2024 का भी टिकट मिल चुका है। साबले के बाद उन निशानेबाजों की प्रतिभा और उनके सार्थक, कड़े परिश्रम को भी सलाम करना चाहते हैं, जिन्होंने 7 स्वर्ण, 9 रजत और 6 कांस्य, यानी कुल 22 पदक जीत कर एशियाई कीर्तिमान स्थापित किया है। रविवार को भारतीय तिकड़ी-पृथ्वीराज, जोरावर, चेनाई-ने ‘पीले तमगे’ पर निशाना साधा था। निशानेबाजी में देश की बेटियां भी शामिल हैं, जिन्होंने गले में ‘स्वर्ण पदक’ पहने। हम उनकी चर्चा कर चुके हैं। साबले की ही तरह मुरली श्रीशंकर ने ‘लंबी कूद’ में 8.19 मीटर की छलांग लगा कर भारत के लिए ‘चांदी’ कूटी। वह भी साबले की ही तरह ‘गुदड़ी के लाल’ हैं और बड़ी गरीब पारिवारिक पृष्ठभूमि से आते हैं। ऐसे खिलाड़ी वाकई देश के ‘योद्धाई राजनयिक’ हैं। बेशक तेजिंदरपाल सिंह तूर ‘गोला फेंक’ खेल के एशियाई और रिकॉर्डधारी चैम्पियन हैं। इस बार खेल में पिछड़ते हुए उन्होंने न केवल इस स्पर्धा का ‘स्वर्ण पदक’ जीता, बल्कि 20.36 मीटर दूर गोला फेंक कर सभी प्रतिद्वंद्वियों को भी चौंका दिया। इसी तरह के खेल ‘चक्का फेंक’ में 40 वर्षीय सीमा पूनिया ने लगातार तीसरे पदक के तौर पर कांस्य पदक जीत कर घोषित कर दिया कि फिलहाल वह भारत को पराजित नहीं होने देंगी। महिलाओं में हरमिलन बैंस ने 1500 मीटर दौड़, ज्योति याराजी ने 100 मीटर बाधा दौड़ और अजय कुमार सरोज ने पुरुषों की 1500 मीटर दौड़ में ‘रजत पदक’ पहने। हालांकि ज्योति के संदर्भ में चीन ने कुछ गड़बड़ी करने की नाकाम कोशिश की, लेकिन न्याय ने भारत के हिस्से पदक दर्ज किया। कांस्य का रंग बदल कर रजत कर दिया गया।

ये सभी खिलाड़ी भारत के लिए ‘गुदड़ी के लाल’ हैं, लिहाजा अद्भुत और अनोखे हैं। इन्होंने देश की आन, बान, शान को ज्यादा बुलंदियां दी हैं। एशियाई खेलों में ही गोल्फर अदिति अशोक का जिक्र बेहद जरूरी है। इन खेलों में रजत पदक जीतने वाली अदिति प्रथम एवं इकलौती भारतीय गोल्फर हैं। उन्होंने 21 लंबे सालों के बाद गोल्फ की व्यक्तिगत स्पर्धा में भारत को कोई पदक जिताया है। करीब 37 लंबे सालों के बाद भारत ने बैडमिंटन पुरुष टीम का रजत पदक भी जीता है। एशिया में ही चीन, जापान, कोरिया, मलेशिया सरीखे देशों की छाया और ताकतवर खेल में भारत का बैडमिंटन खेल कभी उबर ही नहीं पाया। आज एचएस प्रणय, लक्ष्य सेन, किदांबी श्रीकांत, चिराग-सात्विक विश्व के वरीयता प्राप्त खिलाड़ी हैं। ‘गुदड़ी के लाल’ वाली सूची में कुछ और नाम छूट सकते हैं, क्योंकि जगह सीमित है। ये लाल प्रेरित करते हैं।


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