यह सिर्फ मैच नहीं

By: Oct 25th, 2023 12:05 am

क्योंकि यह हिमाचल के धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम में हुआ, इसलिए प्रकृति के विहंगम दृश्यों का समावेश वल्र्ड मैचों की शृंखला का शृंगार बढ़ा गया। खास तौर पर जब बादलों की एक टोली स्टेडियम में आई और मैच की निगाहों में वो फलसफा बन गए जो जानते नहीं थे कि यहां तो कृत्रिम प्रकाश में भी खलल पड़ जाएगा। एक अच्छी क्रिकेट रविवार की दोपहरी में उगी और शाम से रात आते-आते पर्यटन की नजरों में समा गई। बेशक अच्छी क्रिकेट ने मन, भारतीय टीम ने दिल जीता, लेकिन दर्शक दीर्घा का वीआईपी अंदाज सियासी वीरता के नगमों में तल्लीन रहा। कितना सौहार्द है इस पैमाने में, न होंठ तेरे बुझे, न मेरे जले। उस हंसी की बिसात का कोई टिकट नहीं और न ही कहीं से पकड़े जाने का गिला। पकड़े तो स्टेडियम से बाहर दर्शक गए, क्योंकि नकली टिकट बिक रहे थे। ब्लैकमेल भी इसी स्टेडियम के इसी मैच की निशानी दे गया। सब कुछ घर जैसा था, सिर्फ प्रदेश में कुछ अलग था क्योंकि वहां स्टेडियम के बादलों से भिन्न जिन बादलों ने घर उजाड़े थे, उसकी शिकन कहां क्रिकेट के मनोरंजन में खलल डाल सकती होगी। यहां तो ताली भी वीआईपी अंदाज में बजनी थी, तो खूब बजी। एक हाथ भाजपा तो दूसरा कांग्रेस का बजा। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर वहां क्रिकेट के मसीहा थे, वैसे वह आजकल हमीरपुर से कांगड़ा तक की सडक़ों पर छाए हैं और क्रिकेट के प्रशंसकों का स्वागत करते नहीं थक रहे, लेकिन स्टेडियम में जो आए, उन्हीं के बुलावे पर आए, वरना इस शहर को तो बस मिला यातायात प्लान, मीलों के घुमाव और जाम में ठहराव।

बेशक कुछ होटल भर गए, लेकिन स्टेडियम में वही खुशनसीब थे जिन्हें पास के साथ मुफ्त भोजन का ईनाम मिला, वरना स्टैंड में बिकते पानी की कीमत सुनकर तो पसीना दर्शकों को भी खूब आया होगा। वहां कितने क्रिकेट प्रेमी और कितने सियासी सैलानी रहे होंगे, यह तुलनात्मक अध्ययन की बिसात तय करेगी। यह दीगर है कि जहां कैमरों की निगरानी में खुशामदीद कहा जा रहा था, वहीं खेलों का हिमाचली नायक नदारद था। बेहतर होता उस हुजूम में एक अदद निमंत्रण एशियन गेम्स से लौटे हिमाचली खिलाडिय़ों का चेहरा भी दिखा देता। वाकई कबड्डी के अंतरराष्ट्रीय मैदानों से उस दिन बहुत बड़ा था क्रिकेट का स्टेडियम। कितने छोटे हैं बिलासपुर की स्नेहलता के प्रयास, जिसने अपने खेतों में प्रशिक्षण देते हुए हैंडबाल की ऐसी नर्सरी उगा दी जो देश के लिए अंतरराष्ट्रीय तमगे ले आती है।

धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम की रौनक के ठीक नीचे भारतीय खेल प्राधिकरण का स्टेडियम और समीपवर्ती कालेज की घास भी रही होगी, जिसकी जमीन पर उपर्युक्त स्टेडियम बना है। वे पंख भी उड़ान भरना भूल गए जो इंद्रूनाग, बीड़-बिलिंग व नरवाना साइट से पैराग्लाइडिंग के इतिहास को आकाश में ले जाना चाहते थे। बहुत पहले जब क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण राजनीतिक आंखों की किरकिरी बना था, तब अचानक कांग्रेस सरकार ने ताले जड़े थे। क्या वे मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू के स्टेडियम प्रवेश से पूरी तरह टूट गए। क्या खेलों में इसी तरह का सौहार्द धर्मशाला में हाई अल्टीच्यूट स्पोट्र्स सेंटर को भी नसीब होगा। वहां खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के साथ क्रिकेट मुस्कराई, लेकिन ठीक इसी स्टेडियम के बगल में कोई धर्मशाला खेल एक्सीलेंस सेंटर के तहत राष्ट्रीय खेल छात्रावास के लिए आए 26 करोड़ के बजट को निगल चुका था। यह छात्रावास निचले सकोह में प्रस्तावित था, लेकिन दुनिया तो अब सिर्फ क्रिकेट देखती है और समझती है कि हमने कितना जश्न पैदा किया, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर केवल एक एथलीट के कारण भी देश का राष्ट्रगान बज उठता है। कभी तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने धर्मशाला को खेल नगरी या राजधानी कहा था। बहरहाल, क्रिकेट ने तो इसे पहचान ही लिया।


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