दफ्तर में वसंत!

By: Oct 6th, 2023 12:05 am

वे अपने पीले दांत दिखाते हुये आये थे मेरे पास। एक पल हंसते रहने के बाद बोले-‘शर्मा फाइल से नजर हटाओ तो एक बात कहूं?’ मैंने फाइल में नजर गड़ाये हुये ही कहा-‘हां कहो, क्या बात है?’ वे धीरे से फुसफुसाकर बोले-‘सुनो कल वसंत पंचमी है। दफ्तर में भी आयेगा वसंत।’ मैंने फाइल से नजरें हटाई, चेहरे पर हाथ फेरा और बोला हैरत से-‘दफ्तर में भी आयेगा वसंत! क्या कह रहे हो यार, इससे पहले क्यों नहीं आया यह मुआ वसंत?’ वे बोले-‘शर्मा वसंत हर वर्ष आता है, लेकिन तुम कोई ध्यान ही नहीं देते। इसमें बेचारा वसंत क्या करे?’ वे अभी तक अपने पीले दांतों से हंस रहे थे। मैं बोला-‘हर साल आता है वसंत, तुमने कभी बताया तो नहीं। मैं भी देख लेता गोपाल बाबू उसे। सच कहूं मैंने वसंत को कभी नहीं देखा। सुना जरूर है कि वसंत में फूल खिल जाते हैं और पलाश दहकने लगता है। सुना तो यह भी है कि वसंत में पतझड़ भाग खड़ा होता है और पेड़ों में नयी कोंपलें आ जाती हैं। लेकिन वसंत दफ्तर में भी आयेगा, यह पहली बार सुना है।’ गोपाल बाबू बोले-‘तुमने सही सुना है शर्मा, प्रकृति वसंत में सोलह श्रृंगार करती है। फूल भी खिलते हैं। इस बार वसंत दफ्तर में आयेगा-मेरा मतलब वसंत जी आ रहे हैं, वे कल ज्वाइन करेंगे।’ ‘मेरी समझ में तुम्हारी एक भी बात नहीं आ रही। जरा खोलकर समझाओ वसंत जी कल ज्वाइन कैसे करेंगे?’ मैं बोला। गोपाल बाबू अपनी मुस्कान को जारी रखते हुए बोले-‘वे एक नम्बर के क्रप्ट हैं, मेरा मतलब वसंत जी से है। यदि उन्होंने कल ज्वाइन कर लिया है तो पूरा दफ्तर वसंत की खुशबू से भर उठेगा। सारे दिन फाइलों से सिरफोड़ी करने की जरूरत नहीं रहेगी शर्मा, वे मक्कार भी हैं। तुम्हारे चश्मे के नम्बर अब नहीं बढ़ेंगे। इसी चश्मे से हो जायेगा रिटायरमैंट।

पांच वर्ष में हम इतना कमा लेंगे कि गरीबी से निजात मिल जायेगी।’ ‘मेरी धडक़नों को क्यों तेज करने पर तुले हो गोपाल बाबू। मुझसे वसंत जी की सारी अन्तर्कथा जरा खोलकर समझाओ। मैं वसंत को अपनी झोली में भर लेना चाहता हूं।’ मैंने कहा तो गोपाल बाबू ने अपनी मुस्कान को और अधिक सघन किया और बोले-‘यह खुशखबरी मैं तुम्हें यों ही नहीं दूंगा, पहले चाय-समोसे का आर्डर तो देवो।’ मैंने चपरासी से जब चाय-समोसा लाने को कहा तो वे अपनी बदबूदार सांसें मेरे मुंह में भरकर बोले-‘वसंत जी हमारे नये अफसर हैं। सुना है कल वसंत पंचमी को यहां ज्वाइन करेंगे। भ्रष्टाचार के मामले में तीन बार सस्पैंड रह चुके हैं, लेकिन हर बार बेदाग निकल आये। उन्होंने ज्वाइन कर लिया तो पूरे दफ्तर के पौ बारह हैं। मेरा मतलब वसंत ही वसंत। दोनों हाथों से लूटो। पूरा दफ्तर वसंतमय हो जायेगा।’ मैं खुशी से नाच उठा और बोला-‘गोपाल बाबू तुम्हारे मुंह में घी शक्कर। यह खडूस ईमानदारी का पुतला वर्मा कब जा रहा है?’ गोपाल बाबू मेरे कंधे थपथपाते हुये बोले-‘घबराओ मत शर्मा, आज आफ्टरनून में रिलीव हो जायेगा और कल आ जायेगा दफ्तर में वसंत।

कल मनाओ जी भरकर वसंत पंचमी। क्रप्ट अफसर बड़े भाग्य से मिलता है। हमारे बच्चों के भाग्य में लिखा था यह वसंत। अपनी पूरी झोली भर लेना इस वसंत के राज में शर्मा।’ मैंने कहा-‘लो खाओ समोसे और पीवो गर्मागर्म चाय। अब उड़ायेंगे गुलछर्रें गोपाल बाबू। वर्षों में आया है यह वसंत। वह कविता तो सुनी होगी कि वीरों का कैसा हो वसंत? इस बार वसंत दफ्तर में खुद चलकर आया है। ये दिन बहार के हैं, इन्हें यों ही नहीं जाने देना। हम सब मिलकर भ्रष्टाचार का नंगा नाच करेंगे, तो क्या वसंत नहीं खिल उठेगा हमारे जीवन में भी।’ गोपाल बाबू समोसे की जुगाली करते हुये और चाय सुडक़ते हुये बोले-‘शर्मा दफ्तर में आया है वसंत, लूट लो इसको। मेरा मतलब दफ्तर का ऐसा ही होता है वसंत।’

पूरन सरमा

स्वतंत्र लेखक


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