महाविद्यालयों में खेल विंग कब?

By: Oct 6th, 2023 12:05 am

हिमाचल प्रदेश के दूरदराज शिक्षा संस्थानों में उपलब्ध खेल सुविधा के अनुसार खेल विंग खुलने चाहिए। कालेज स्तर पर अधिक से अधिक खेल विंग अगर खुलते हैं तो यहां की खेलों को अवश्य ही पंख लग सकते हैं…

विश्व के अधिकांश पदक विजेता खिलाड़ी महाविद्यालय स्तर से ही निकल कर आगे आते रहे हैं। जिन जिन देशों ने खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है वहां के शिक्षा संस्थानों के पास अच्छी खेल प्रशिक्षण सुविधाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर का खेल ढांचा व प्रशिक्षक उपलब्ध रहते हैं। हिमाचल में महाविद्यालय स्तर पर खेल सुविधाओं का टोटा है। पंजाब की तरह यहां अभी तक महाविद्यालय स्तर पर खेल विंग विद्यार्थी खिलाडिय़ों के लिए उपलब्ध नहीं है। पंजाब अपने विभिन्न विश्वविद्यालयों के विभिन्न महाविद्यालयों व विश्वविद्यालय परिसरों में खेल सुविधा के अनुसार खेल विंग चलवा कर अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय खेलों की प्रतिष्ठित मौलाना अब्दुल कलाम ट्राफी पर कब्जा करता रहा है तथा खेल विंगों के माध्यम से ही उसने खेलों में श्रेष्ठतम स्थान प्राप्त किया हुआ है। प्रतिभा व सुविधा के अनुसार हिमाचल प्रदेश के विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों में भी सरकार खेल विंग खोलती है तो भविष्य में हिमाचल के और अधिक खिलाड़ी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकते हैं। हिमाचल प्रदेश के कई महाविद्यालयों के पास अंतरराष्ट्रीय स्तर का खेल ढांचा तैयार खड़ा यूं ही बेकार हो रहा है।

हिमाचल प्रदेश के महाविद्यालयों में भी खेल विंग हो, इस कॉलम के माध्यम से पिछले दो दशकों से इस पर बहुत बार लिखा जा चुका है, मगर तत्कालीन सरकारों का रवैया उदासीन ही रहा है। खेल विंगों के लिए सरकार को न तो खेल ढांचा खड़ा करना पड़ता है और न ही नया छात्रावास बनाना पड़ता है। केवल खेल विशेष का प्रशिक्षक और खिलाडिय़ों के लिए खुराक व रहने का प्रबंध करना होता है जो आसानी से बहुत कम धन राशि खर्च करके हो सकता है। राजकीय महाविद्यालय हमीरपुर, धर्मशाला, बिलासपुर व सरस्वती नगर में एथलेटिक्स के विंग आसानी से चल सकते हैं क्योंकि यहां तीन जगह सिंथेटिक ट्रैक हैं और चौथी जगह सरस्वती नगर में बन रहा है। हमीरपुर व धर्मशाला में साई विभिन्न खेलों में एक्सीलेंस सैंटर चला रही है, मगर यहां पर राष्ट्रीय पदक विजेताओं को ही प्रवेश मिलेगा। अच्छा होगा हिमाचल सरकार अपने प्रदेश से राष्ट्रीय पदक विजेता तैयार कर इन सैंटरों में भेजे। भारतीय खेल प्राधिकरण के शिलारू केन्द्र में भी दो सौ मीटर का सिंथेटिक ट्रैक बिछ गया है। वहां के नजदीकी विद्यालयों में एथलेटिक्स की नर्सरियां स्थापित हो सकती हैं। ऊना तथा मंडी में तैराकी के लिए तरणताल उपलब्ध हैं। शिलारू व ऊना में हॉकी की एस्ट्रोटर्फ बिछी हुई है। हिमाचल प्रदेश में विभिन्न खेलों का स्तर राज्य में खेल छात्रावासों के खुलने के बाद काफी सुधरा है। विद्यालय स्तर पर खेल छात्रावासों को आज से तीन दशक पहले शुरू कर दिया गया था। पपरोला के बास्केटबॉल खेल छात्रावास ने एक समय तक अच्छे परिणाम दिए हैं।

हॉकी में माजरा स्कूली खेल छात्रावास की लड़कियों ने पिछले कई वर्षों से राष्ट्रीय स्कूली खेलों में हिमाचल प्रदेश को पदक तालिका में स्थान दिलाया है। यदि इन लड़कियों को एस्ट्रोटर्फ मिलता है तो बात कुछ और हो सकती है। स्कूल स्तर की राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिमाचल प्रदेश का प्रदर्शन सम्मानजनक खेल छात्रावासों के कारण रहता है। हिमाचल प्रदेश में स्कूली स्तर पर पपरोला में लडक़ों के लिए बास्केटबॉल, सुंदरनगर व नादौन में लडक़ों की हाकी, माजरा में लड़कियां के लिए हाकी में खेल छात्रावास चल रहे हैं। वालीबाल में स्कूली स्तर पर प्रशिक्षण का प्रबंध है। मतियाणा व रोहडू में लडक़ों को तथा कोटखाई में लड़कियों के लिए खेल छात्रावासों को वर्षों पहले से शुरू किया गया है। रोहडू में फुटबॉल का भी खेल छात्रावास है। इन छात्रावासों में अच्छे प्रशिक्षकों के साथ साथ खेल सुविधाओं में काफी सुधार की जरूरत है। हिमाचल प्रदेश में भारतीय खेल प्राधिकरण ने तीस वर्ष पहले बिलासपुर व धर्मशाला में खेल छात्रावासों की शुरुआत की है। दो छात्रावास राज्य सरकार ने ऊना तथा बिलासपुर में चला रखे हैं। इन खेल छात्रावासों में अधिकांश बारह से चौदह वर्ष के खिलाड़ी बालक व बालिकाओं को ही प्रवेश मिलता है। स्कूल से निकल कर जब खिलाड़ी महाविद्यालय में प्रवेश ले रहा होता है तो उस समय उसकी उम्र अठारह वर्ष हो चुकी होती है। इसलिए इन खेल छात्रावासों में दाखिल होने के अवसर न के बराबर होते हैं। इसलिए हिमाचल में खिलाड़ी विद्यार्थी को स्कूल के बाद महाविद्यालय स्तर पर खेल विंग मिलना जरूरी हो जाता है। हिमाचल प्रदेश में महाविद्यालय स्तर पर कोई भी प्रशिक्षण सुविधा उपलब्ध न होने के कारण स्कूली स्तर पर सामने आई खेल प्रतिभाओं को या तो हिमाचल प्रदेश से पलायन कर पड़ोसी राज्यों के खेल विंगों की शरण लेनी पड़ती है या फिर असमय ही खेल को अलविदा कह कर गुमनामी के अंधेरे में खो जाना होता है। निजी स्तर पर नब्बे के दशक से सुंदरनगर में मुक्केबाजी तथा हमीरपुर में जूडो व एथलेटिक्स पर प्रशिक्षण कार्यक्रम जो शुरू हुआ था उसी से मुक्केबाजी में परशुराम अवार्ड से सम्मानित पहले शिव चौधरी व अब आशीष चौधरी के लिए आधार मिला।

आज आशीष ओलंपिक खेल चुका है जो हिमाचल प्रदेश के लिए बहुत गौरव की बात है। हमीरपुर से जूडो में परशुराम अवार्डी नूतन, एथलेटिक्स प्रशिक्षण कार्यक्रम से परशुराम अवार्डी पुष्पा ठाकुर ने तेज गति की दौड़ों में व संजो ठाकुर ने भाला प्रक्षेपण में राष्ट्रीय स्तर पर हिमाचल प्रदेश को पहचान दिलाई है। मोरसिंघी में चले हैंडबाल प्रशिक्षण कार्यक्रम से कई महिला खिलाडिय़ों ने हिमाचल प्रदेश को कई बार पदकों से सजाते हुये अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व किया है। पूरे संसार में खिलाडिय़ों के लिए महाविद्यालय स्तर पर उच्च स्तरीय खेल सुविधाएं उपलब्ध हैं क्योंकि यही उम्र होती है जहां से खिलाड़ी को स्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रम की जरूरत होती है। महाविद्यालय प्रशासन को चाहिए कि वह अपने स्तर पर भी खेल आगे बढ़ाने के लिए प्रयास करे। हिमाचल प्रदेश के दूरदराज शिक्षा संस्थानों में उपलब्ध खेल सुविधा के अनुसार खेल विंग खुलने चाहिए। हिमाचल प्रदेश में महाविद्यालय स्तर पर अधिक से अधिक खेल विंग अगर खुलते हैं तो यहां की खेलों को अवश्य ही पंख लग सकते हैं।

भूपिंद्र सिंह

अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक

ईमेल: bhupindersinghhmr@gmail.com


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