जदरांगल में सीयू मुजरिम

By: Nov 2nd, 2023 12:05 am

अब मसला केंद्रीय विश्वविद्यालय को खंडित करने का नहीं रहा, बल्कि इसके जदरांगल परिसर को खुर्द-बुर्द करने का है और यह हो चुका है। जिन्हें विश्वास था कि जदरांगल परिसर की सियासत में केवल भाजपा दोषी रही, उन्हें आंखें खोलकर देख लेना चाहिए कि कांग्रेस सरकार भी इसे हमीरपुर संसदीय क्षेत्र को वरदान बनाने पर उतारू है। अंतत: केवल शांता कुमार ने ही जुबान खोली है, जबकि कांगड़ा से तमाम कांग्रेसी विधायक तो मीठी गोलियां चाट रहे हैं। आश्चर्य यह कि कांगड़ा के कोटे में एकमात्र मंत्री चौधरी चंद्र कुमार भी मुंह में दही जमा के बैठे हैं, जबकि कभी उनकी व सुधीर शर्मा की बदौलत धर्मशाला परिसर का प्रस्ताव बचा था। संस्थान बर्बाद कैसे हो सकते हैं, इसका सबसे बड़ा उदाहरण केंद्रीय विश्वविद्यालय के खंडित अध्याय है। इस नासूर में पहले धूमल और फिर जयराम सरकारें रहीं और अब सुक्खू सरकार के लिए भी यह प्राथमिक उद्देश्य नहीं, वरना कब के तीस करोड़ जमा करवाकर काम शुरू हो चुका होता। भले ही सारा विश्वविद्यालय देहरा में बसा दिया जाए, इससे ऐसे संस्थान के महत्त्व में कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन गंदी सियासत की परछाइयों में रह कर उच्च शिक्षा की कई मंजिलें ध्वस्त हो चुकी हैं। अगर ऐसा नहीं है तो तमाम वे नेता जो धर्मशाला परिसर से खेलते रहे, वे जीत का एहसास कर सकते हैं और जो हारे, वे पीठ पर राजनीतिक चाबुक का प्रहार देख सकते हैं। आश्चर्य यह कि जिस क्रिकेट की हवाएं अनुराग ठाकुर को धर्मशाला में रोशनी दिखाती हैं, वह सांसद हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में केंद्रीय विश्वविद्यालय को बटोरता रहा।

कुछ इसी तरह का इतिहास कांगड़ा के सांसद किशन कपूर का भी रहा, जिन्होंने बतौर विधायक सर्वप्रथम धर्मशाला में सीयू के खिलाफ अपना रवैया रचा था। हिमाचल में एम्स, आईआईएम, मेडिकल कालेज और खास तौर पर हमीरपुर के मेडिकल कालेज की इमारतें बिना किसी हुज्जत के चोटियां गिनती रहीं, लेकिन परीक्षाएं धर्मशाला में सीयू की रहीं। धूमल सरकार ने पहले इसकी प्रस्तावित जगह की मिट्टी पलीद की, फिर जदरांगल की संभावना में उनके सिपहसालार रविंद्र रवि ने अपने बयानों से इस स्थान को अपमानित किया। हैरानी यह कि जदरांगल की जमीन को मुजरिम बनाते हुए कभी केंद्रीय वन मंत्रालय के डंडे बरसाए और कभी कोलकाता के भूगर्भीय सर्वेक्षण विभाग के जबड़ों में इसे फंसाया। किसी तरह स्वीकृतियां मिलीं, तो अब सुक्खू सरकार ने जमीन की पैमाइश घटाकर भी तीस करोड़ के भुगतान पर ताले लगा रखे हैं। एक ओर जदरांगल परिसर के प्रति सरकार की उपेक्षा से आहत पूर्व मुख्यमंत्री एवं केंद्रीय मंत्री रहे शांता कुमार आहत हैं और दूसरी ओर देहरा परिसर के निर्माण में चारों घंटे काम की रफ्तार में हर फाइल क्लीयर है। इस सबके बीच केंद्रीय विश्वविद्यालय ने जो इतिहास इकट्ठा किया है, उसमें हिमाचल की प्रतिष्ठा को ही दाग लग रहे हैं।

नियुक्तियों से लेकर अध्ययन की परिपाटी तक यह संस्थान एक खास स्वीकृतियों का सृजन कर चुका है, जहां विचारों की पृष्ठभूमि में एकांगी सोच का दायरा बढ़ रहा है। विश्वविद्यालय के सामने हिमाचल की अर्थव्यवस्था, ट्राइबल लाइफ तथा प्राकृतिक आपदाओं पर अध्ययन व शोध के बजाय प्राथमिक विषय यह है कि जम्मू-कश्मीर की हवाओं का रुख किधर है। अभी यह घोषणा हो चुकी है कि धर्मशाला केंद्रीय विश्वविद्यालय यह पता लगाएगा कि धारा 370 हटने व जम्मू-कश्मीर के बंटने के बाद वहां क्या अंतर आ रहा है, इसके ऊपर धर्मशाला सीयू शोध करेगा। धर्मशाला केंद्रीय विश्वविद्यालय की जम्मू-कश्मीर की चिंता विभिन्न संगोष्ठियों में भी झलकती है, जबकि जम्मू व कश्मीर में दो अलहदा-अलहदा केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं, तथा एक अन्य संस्थान की लद्दाख के लिए भी पैरवी होती रही है। बहरहाल ताले में बंद धर्मशाला परिसर के साथ होती रही अनवरत राजनीति में अब सुक्खू सरकार का नाम भी जुड़ रहा है। शिक्षा में ऐसे अभिप्राय का असर अंतत: छात्र समुदाय को ही अनिश्चितता में धकेलता है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App