भारत का भविष्य

By: Nov 4th, 2023 12:20 am

ओशो

पहली बात है परलोक के संबंध में अति चिंतन ने भारत को अधार्मिक होने में सहायता दी, धार्मिक होने में जरा भी नहीं। सोचा शायद हमने यही था कि परलोक का यह भय लोगों को धार्मिक बना देगा। सोचा शायद हमने यही था कि परलोक की चिंता लोगों को अधार्मिक नहीं होने देगी। लेकिन हुआ उलटा, हुआ यह कि परलोक इतना दूर मालूम पड़ा कि वह हमारा कोई कंसर्न ही नहीं है, हमारा उससे कोई संबंध, नाता नहीं है। हमारा नाता है इस जीवन से। और इस जीवन को कैसे जीया जाए, इस जीवन की कला क्या है, वह सिखाने वाला हमें कोई भी न था। धर्म हमें सिखाता था, जीवन कैसे छोड़ा जाए। जीवन कैसे जीया जाए, यह बताने वाला धर्म न था। धर्म बताता था, जीवन कैसे छोड़ा जाए, जीवन कैसे त्यागा जाए, जीवन से कैसे भागा जाए। इसके सारे नियम शुरू से लेकर आखिर तक हमने सारे नियम इसके खोज लिए कि जीवन को छोडऩे की पद्धति क्या है। लेकिन जीवन को जीने की पद्धति क्या है, उसके संबंध में धर्म मौन है। परिणाम स्वाभाविक था।

जीवन को छोडऩे वाली कौम कैसे धार्मिक हो सकती है? जीना तो है जीवन को। कितने लोग भागेंगे और जो भाग कर भी जाएंगे, वे जाते कहां हैं? संन्यासी भाग कर, साधु भाग कर जाता कहां है? भागता कहां है, सिर्फ धोखा पैदा होता है भागने का। सिर्फ श्रम से भाग जाता है, समाज से भाग जाता है, लेकिन समाज के ऊपर पूरे समय निर्भर रहता है। समाज से रोटी पाता है, इज्जत पाता है। समाज से कपड़े पाता है, समाज के बीच जीता है, समाज पर निर्भर होता है। सिर्फ एक फर्क हो जाता है। वह फर्क यह है कि वह विशुद्ध रूप से शोषक हो जाता है, श्रमिक नहीं रह जाता। वह कोई श्रम नहीं करता, सिर्फ शोषण करता है। कितने लोग संन्यासी हो सकते हैं? अगर पूरा समाज भागने वाला समाज हो जाए, तो पचास वर्ष में उस देश में एक भी जीवित प्राणी नहीं बचेगा। पचास वर्षों में सारे लोग समाप्त हो जाएंगे। लेकिन पचास वर्ष भी लंबा समय है। अगर सारे लोग संन्यासी हो जाएं, तो पंद्रह दिन भी बचना बहुत मुश्किल है।

क्योंकि किसका शोषण करेंगे? किसके आधार पर जीएंगे? भागने वाला धर्म, कभी भी जिंदगी को बदलने वाला धर्म नहीं हो सकता। थोड़े से लोग भागेंगे। और जो भाग जाएंगे, वे उन पर निर्भर रहेंगे, जो भागे नहीं हैं। अब यह बड़े चमत्कार की बात है कि संन्यासी गृहस्थ पर निर्भर है और गृहस्थ को नीचा समझता है अपने से। जिस पर निर्भर है, उसको नीचा समझता है, उसको चौबीस घंटे गालियां देता है। उसके पाप का बखान करता है। उसके नरक जाने की योजना बनाता है। और निर्भर उस पर है। और अगर ये गृहस्थ सब नरक जाएंगे, तो इनकी रोटी खाने वाले, इनके कपड़े पहनने वाले संन्यासी इनके पीछे नरक नहीं जाएंगे, तो और कहां जा सकते हैं? कहीं जाने का कोई उपाय नहीं हो सकता। लेकिन भागने की एक दृष्टि जब हमने स्पष्ट कर ली कि जो भागता है, वह धार्मिक है, तो जो जीता है, वह तो अधार्मिक है, उसको धार्मिक ढंग से जीने का सोचने का कोई सवाल न रहा। वह तो अधार्मिक है, क्योंकि जीता है। भागता जो है, वह धार्मिक है। तो जीने वाले को धार्मिक होने का कोई विधान, कोई विधि, कोई टेक्नीक, कोई शिल्प हम नहीं खोज पाए। सारी दुनिया में ऐसे लोग थे, जो मानते थे कि मनुष्य केवल शरीर है। शरीर के अतरिक्त कोई आत्मा नहीं। धर्म ने ठीक दूसरी अति दूसरी एकस्ट्रीम पकड़ ली और कहा कि आदमी सिर्फ आत्मा है, शरीर तो माया है, शरीर तो झूठ है। यह दोनों ही बातें झूठ हैं न आदमी केवल शरीर है न आदमी केवल आत्मा है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App