गीता रहस्य

By: Nov 4th, 2023 12:20 am

स्वामी रामस्वरूप

यही निराकार, सर्वव्यापक परमेश्वर सब जगत को बसाए हुए है और जब वेद मंत्रों से यज्ञ आदि में इनकी पूजा करते हैं, योगाभ्यास आदि से इसकी उपासना करते हैं, तब परमेश्वर प्रसन्न होकर हमारे सभी दु:खों का नाश करके हमारी सब ओर से रक्षा करता हुआ मोक्ष का सुख तक दे देता है…

गतांक से आगे…

परमात्मा को (न ऊध्वर्म) न ऊपर से (न तिर्यञचम) न नीचे से (न मध्य) न मध्य में से (परि+ जग्रभत) ग्रहण कर सकता है। ‘ऊध्वर्म का अर्थ है आदि ‘तिर्यञचम’ का भाव है अंत। भाव यह है कि परमेश्वर अनादि और सर्वत्र पूर्ण ब्रह्म है जो वेदाध्ययन, यज्ञ, धर्माचरण, विद्धानों के संग और योगाभ्यास से जाना जाता है। उसी पूर्ण परमात्मा में हम मनुष्य, पशु-पक्षी, कीट-पतंग अर्थात संपूर्ण जगत वास करता है। असंख्य आंख और सिर आदि का भाव है परमात्मा पूर्ण है, सर्वव्यापक है। अत: हम प्राणियों के सिर, आंख, पांव आदि परमेश्वर के ही हैं और परमेश्वर में ही है। परमेश्वर तो निराकार है परंतु हमारे ही नेत्र, सिर आदि परमेश्वर में ही होने के कारण इस मंत्र में परमेश्वर के नेत्र, सिर आदि कहे हैं। इसी परमेश्वर की पूजा करने हम मनुष्य शीरर धारण करके पृथ्वी पर आए हैं। यही निराकार, सर्वव्यापक परमेश्वर सब जगत को बसाए हुए है और जब वेद मंत्रों से यज्ञ आदि में इनकी पूजा करते हैं।

योगाभ्यास आदि से इसकी उपासना करते हैं, तब परमेश्वर प्रसन्न होकर हमारे सभी दु:खों का नाश करके हमारी सब ओर से रक्षा करता हुआ मोक्ष का सुख तक दे देता है। हम इस परमेश्वर को त्याग कर अन्य की पूजा न करें, ऐसा ईश्वरीय वाणी, जो वेद है, वह कहता है। अनादिकाल से यही निराकार परमेश्वर योगेश्वर श्रीकृष्ण महाराज, श्रीराम आदि अनेक ऋषि-मुनि, योगियों के हृदय में वेदानुसार उपासना द्वारा प्रकट होता आया है और आज भी यही नियम है और भविष्य में सदा यही नियम रहेगा क्योंकि ऋग्वेद मंत्र 3/56/2 में कहा कि परमात्मा के नियम कभी बदलते नहीं। -क्रमश:


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