गीता रहस्य
स्वामी रामस्वरूप
योगी और परमेश्वर में अभेद अवस्था होती है, उसमें योगी ही स्वयं को परमेश्वर घोषित करके, परमेश्वर की ओर से स्वयं को परमेश्वर कहता है, यह सब वेदों एवं योग शास्त्र आदि में प्रमाणित है। योगी में अणिमा, महिमा, गरिमा आदि आठ सिद्धियां होती है…
गतांक से आगे…
शोक 11/17 में अर्जुन श्री कृष्ण महाराज से कह रहा है कि आपको किरीट अर्थात मुकुट को धारण किए हुए, गदा वाले और चक्रवाले तथा सब ओर से प्रकाशमान तेज का समूह, जलती हुई अग्रि और सूर्य के समान प्रकाशयुक्त को कठिनाई से देखने योग्य प्रत्यक्ष प्रमाण का विषय न होने वाले अर्थात भौतिक इंद्रियों से न जानने योग्य सब ओर से देखता हूं।
भावार्थ- श्री कृष्ण महाराज ने अपने पंच भौतिक शरीर में प्रकट उस निराकार परमेश्वर में पिछले अध्याय 10 में बहुत कुछ दर्शाया है। श्री कृष्ण ब्रह्मलीन अवस्था में थे जिस अवस्था में, पहले भी कहा जा चुका है कि योगी और परमेश्वर में अभेद अवस्था होती है, उसमें योगी ही स्वयं को परमेश्वर घोषित करके, परमेश्वर की ओर से स्वयं को परमेश्वर कहता है, यह सब वेदों एवं योग शास्त्र आदि में प्रमाणित है। योगी में अणिमा, महिमा, गरिमा आदि आठ सिद्धियां होती हैं जिनका वर्णन पहले किया जा चुका है। ऐसी सिद्धियों का प्रयोग करके भी योगी अधिकारी शिष्य को अपने अंदर सब कुछ दिखा सकता है जो कि योगेश्वर श्री कृष्ण महाराज ने अर्जुन को दिखाया था।
संजय श्लोक 11/14 में कह ही रहा है कि ऐसे अनुपम रूप को देखकर अर्जुन आश्चर्ययुक्त हुआ और उसके रोम-रोम खुशी से खड़े हो गए। वह सिर से प्रणाम करके और हाथ जोड़ते हुए श्रीकृष्ण महाराज से बोल रहा है। श£ोक 11/14 में भी अर्जुन हाथ जोड़े कह रहा है कि मैं आपको (किरीटिन्म) मुकुट युक्त (गदिनं) गदायुक्त और (चक्रिणम) चक्रयुक्त देखता हूं। सब ओर से आप (दीप्तिमंतम) प्रकाशमान (तेजोरशिम) तेज का पुंज,(दीप्तानलार्कद्युतिम) प्रज्जवलित अग्रि एवं सूर्य के समान ज्योति वाले दिखाई दे रहे हो। -क्रमश:
Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also, Download our Android App