सुरंग निर्माण चुनौतियों के बीच जिंदगानी

By: Nov 30th, 2023 12:06 am

सुरंग दुर्घटना के रूप में सामने आई इस आपदा को लेकर उत्तराखंड और इसके नागरिकों ने बहुत कुछ सीखा है। यह अनुभव दुनिया के काम भी आएगा। निर्माण कार्यों को लेकर हमारी कार्य योजना बनाने में इस अनुभव का लाभ मिलेगा। स्पष्ट है कि ऐसे में इन सुरंगों के निर्माण कार्य से जुड़े लोगों की जान की हिफाजत के लिए पहले से ही तय सभी सुरक्षा मानकों का अनुपालन सख्ती से होना चाहिए…

इन दिनों भारत के पांच राज्यों में चल रहे चुनावी अभियान के बीच जिस खबर ने आम जनता और विश्व का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर रखा था, वह उत्तराखंड के ब्रह्मखाल-यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर पहाड़ों का सीना चीरकर सिलक्यारा और डंडालगांव के बीच लगभग पांच किलोमीटर लंबी सुरंग का निर्माण कार्य और सुरंग हादसे की घटना की थी जिसमें निर्माणाधीन टनल का एक हिस्सा ढहने के चलते पिछले 12 नवंबर से 41 मजदूरों की बहुमूल्य जिंदगियां दांव पर लगी हुई थीं। आखिरकार मंगलवार देर शाम को वह मंगल खबर आ ही गई जिसका पूरा राष्ट्र एवं सुरंग में फंसे श्रमिकों के परिवारजन बेसब्री से इंतजार कर रहे थे कि सभी 41 श्रमिकों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया है। इस दुर्घटना के तुरंत बाद केंद्र सरकार के आग्रह पर अंतरराष्ट्रीय सुरंग विशेषज्ञ आर्नोल्ड डिक्स भी सिलक्यारा पहुंच गए थे और उन्होंने मौके पर मौजूद अधिकारियों के साथ चर्चा करके आगामी रणनीति तैयार की थी कि किस प्रकार से सुरंग में फंसे श्रमिकों को सुरक्षित बाहर निकाला जा सके। अन्य एजेंसियों के अधिकारी और इंजीनियर भी अपने-अपने हिसाब से बचाव अभियान में जुटे रहे। सिलक्यारा सुरंग में चल रहे बचाव अभियान में पिछले सोमवार को एक महत्त्वपूर्ण कामयाबी तब मिली थी जब बचाव कर्मियों ने सुरंग के अवरुद्ध हिस्से में ड्रिलिंग कर मलबे के आरपार 53 मीटर लंबी छह इंच व्यास की पाइपलाइन डाल दी थी जिसके जरिये सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों तक पर्याप्त मात्रा में खाद्य सामग्री, संचार उपकरण तथा अन्य जरूरी वस्तुएं पहुंचाना संभव हो पाया। दूसरी ‘लाइफ लाइन’ कही जा रही इस पाइपलाइन के जरिए जब श्रमिकों तक ताजी रोटी और सब्जी भेजी गई तो पिछले 9 दिनों से ड्राईफ्रूट और बिस्कुटों पर निर्भर श्रमिकों को राहत मिली। एक वक्त सिलक्यारा सुरंग के भीतर राह बनाने की जुगत में लगी ऑगर मशीन के फिर से अटक जाने के कारण श्रमिकों के लंबे समय तक फंसने की आशंका बढ़ गई थी और जब अंतरराष्ट्रीय सुरंग विशेषज्ञ आर्नोल्ड डिक्स से इस संबंध में समय सीमा बताने के लिए कहा गया तो उनका कहना था कि श्रमिक क्रिसमस तक घर आ पाएंगे। लेकिन विशेषज्ञों के अनुमानों के विपरीत रैट माइनर्स ने असंभव से लग रहे कार्य को महज दो दिनों के अथक परिश्रम से सार्थक बनाकर सुरंग के दूसरे छोर में फंसे श्रमिकों तक पहुंच बनाकर उन्हें सुरक्षित बाहर निकाल लिया।

सिलक्यारा की दुर्घटना के बीच भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने हिमाचल में नेशनल हाईवे को फोरलेन में बदलने के बीच बन रही टनल में कंपनियों को सुरंगों के भीतर पहले से ही सुरक्षा उपायों को लागू करने के आदेश जारी किए थे। इसके लिए टनल निर्माण वाली जगहों का औचक निरीक्षण भी नियमित रूप से किया जाएगा। इस दौरान बुनियादी ढांचे के साथ ही निर्माण की जानकारी भी जुटाई जाएगी। गौरतलब है कि हिमाचल में बारिश की तबाही से सडक़ों को बचाने के लिए एनएच के अधिकतर हिस्से में ज्यादा से ज्यादा सुरंगें बनाने का फैसला लिया गया है और इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए नए प्रारूप तैयार किए जा रहे हैं। सिलक्यारा सुरंग और चार धाम जैसी परियोजनाओं के लिए आम तौर पर पर्यावरण पर प्रभाव का आकलन (ईआईए) करने की आवश्यकता होती है। सूचना के मुताबिक इस परियोजना के लिए ऐसा कोई आकलन नहीं किया गया। पर्यावरण पर प्रभाव का आकलन करने संबंधी जरूरतों को दरकिनार करते हुए इस परियोजना को 100 किलोमीटर से छोटे कई खंडों में विभाजित किया गया था। अब इस दुर्घटना से सबक लेते हुए हिमाचल में प्रस्तावित सभी टनल्स के बाहर ड्रिलिंग मशीनें रखने के निर्देश दिए गए हैं ताकि कोई हादसा होता है तो बिना समय गंवाए ड्रिलिंग शुरू हो सके। इसके साथ ही सुरंग निर्माण से पहले मिट्टी के सैंपल की भी जांच होगी ताकि हादसे की संभावना को टनल में दाखिल होने से पहले ही खत्म किया जा सके। उत्तरकाशी में सिलक्यारा सुरंग हादसे के बाद राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने हिमाचल प्रदेश में निर्माणाधीन सुरंगों का सुरक्षा ऑडिट करवाने का निर्णय लिया है। इसके तहत सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण चंडीगढ़-मनाली फोरलेन के तहत निर्माणाधीन सुरंगें भी शामिल रहेंगी। देशभर में करीब 29 सुरंगों को इसके लिए चुना गया है। इनमें 12 सुरंगें हिमाचल प्रदेश में हैं। इन सुरंगों की कुल लंबाई 79 किलोमीटर है। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) और डीएमआरसी यानी दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरशन के विशेषज्ञ सभी सुरंगों की जांच करेंगे।

निरीक्षण के बाद सात दिनों में रिपोर्ट तैयार की जाएगी। एनएचएआई के क्षेत्रीय अधिकारी भी निर्माणाधीन सुरंग का निरीक्षण कर प्रपत्र में निरीक्षण नोट व फाइंडिंग लिखेंगे। वहीं परियोजना निदेशक, एनएचएआई वरुण चारी ने निर्देश दिए हैं कि भविष्य में ऑक्सीजन और खाद्य पदार्थ पहुंचाने के लिए सुरंगों में पाईप लगाने ही होंगे। 41 श्रमिकों के सुरक्षित बाहर निकलने के बाद विख्यात पर्यावरणविद एवं पद्मभूषण डा. अनिल प्रकाश जोशी का मानना है कि भारत में विशेषतया हिमालयी एवं पर्वतीय क्षेत्रों में निर्माणाधीन सुरंगों के निर्माण की समीक्षा होनी चाहिए। विशेष रूप से निर्माण कार्यों में सुरक्षा मानकों की अनदेखी नहीं होनी चाहिए। सुरंग दुर्घटना के रूप में सामने आई इस आपदा को लेकर उत्तराखंड और इसके नागरिकों ने बहुत कुछ सीखा है। यह अनुभव दुनिया के काम भी आएगा। निर्माण कार्यों को लेकर हमारी कार्य योजना बनाने में इस अनुभव का लाभ मिलेगा। स्पष्ट है कि ऐसे में इन सुरंगों के निर्माण कार्य से जुड़े इंजीनियरों और श्रमिकों की जान की हिफाजत के लिए पहले से ही तय सभी सुरक्षा मानकों का अनुपालन सख्ती से होना चाहिए ताकि विकास की राह को सुगम बनाने वाले जांबाजों की पुख्ता हिफाजत की जा सके।

अनुज आचार्य

स्वतंत्र लेखक


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App