विरासत से नाहन के सवाल

By: Nov 6th, 2023 12:02 am

हिमाचल की सियासत ने इतिहास की नई संरचना के स्वार्थ में पौराणिक भूमिका भुला दी है। आज का हिमाचल कहीं अलग खड़ा होने के लिए तर्क बदल रहा है, तो हम भूल रहे हैं कि ये सदियां हमने कैसे गुजारीं। इतिहास अपने शैशव काल से पुरातन सभ्यता के दस्तावेज लिए अशोक काल से आधुनिक परिवेश के तरानों में जो देखना चाहता है, उससे कहीं अपरिचित काल में हिमाचल की हुकूमतों ने पर्वतीय रियासतों को विभिन्न काल खंडों से निकाल कर जोड़ा है। शासक सिरमौर, मंडी, कांगड़ा, चंबा, रामपुर बुशहर या कई क्षेत्रों को परिभाषित, परिमार्जित और परिष्कृत करते रहे, लेकिन आज की भागदौड़ ने ऐतिहासिक व धरोहर मूल्य ही गंवा दिए। कुछ टुकड़े आज भी नाहन, चंबा, सुजानपुर, रामपुर बुशहर या पुराना कांगड़ा के अवशेषों में सफर करते हैं या ब्रिटिश हुकूमत की निशानियों में शिमला, धर्मशाला, डलहौजी व कसौली जैसे शहरों का भविष्य देखते हैं।

यहां मंदिर हो, गुरुद्वारा हो या पीर-फकीर की म•ाार, इतिहास के दीपक एक समान जलते हैं, मगर राज्य की प्राथमिकताएं और दस्तूर इनके स्वरूप में खलल डालते हंै। कभी बुल्ले शाह ने ‘जान मैं कौन’ की रचना में ‘नां मैं रहंदा विच नादौन’ तक पहुंचने की रुहानियत में वक्त को रास्ता दिखाया या ‘आए नादौन जाए कौन’ तक कह डाला, लेकिन क्या आज यह शहर वक्त की इन्हीं चौपाइयों में जिंदा है। राजनीति के तमगे उतरते गए, ज्यों-ज्यों नेताओं का सफर परवान चढ़ा। जीतने के लिए तो नादौन महज एक विधानसभा सीट रही, लेकिन जिस शहर ने बुल्ले शाह को जीता, वह मुकाम आज कहां है। क्या आधुनिक इमारतों के शोर में ब्यास नदी के किनारे पुरानी हवाएं बदल गईं या मंजर को चुरा कर ही प्रगति का हिसाब होता है। इसी तरह कभी सिरमौर जिला के मुख्यालय ‘नाहन शहर है नगीना, आए इक दिन लग जाए महीना’ कहा गया था, लेकिन क्या नाहन का एक दिन अब महीने से लंबा हो पाया या महीना अगर एक दिन में सिमट गया, तो कौन दोषी है इस विरासत का जो आज भी सदियों के पन्नों पर अपनी मौजूदगी से सवाल कर रही है। कभी तालाबों का शहर रहे नाहन के विकास में अब न जल की आपूर्ति पूरी है और न ही जल निकासी के लिए कोई योजना कारगर सिद्ध हो रही। लार्ड लिटन का दिल्ली गेट और 1875 में महाराज शमशेर प्रकाश द्वारा स्थापित नाहन फाउंडरी का उद्देश्य इस शहर की मिट्टी में कहीं खो चुका है।

राजाओं की 42 पीढिय़ां जहां से गुजर गईं और शमशेर प्रकाश जैसे दूरदर्शी शासक द्वारा शहरी परियोजना का प्रारूप लिए यह नगर अपनी हर डगर पर ठोकर खा रहा है। न तो शहरी विकास की योजनाओं को यह खबर है कि यहां नगरपालिका का गठन उसी समय हो गया था, जब कोलकाता जैसे शहर अपनी शहरी व्यवस्था को इसी तरह सजा रहे थे। पर्यटन विकास के दावों के बीच नाहन की पौराणिकता और विरासत की भूमिका का शृंगार करते, तो सैलानियों का ठहराव आर्थिकी में कुछ नया जोड़ देता। बेशक विकास के शिलालेख चमकाती सियासत ने मेडिकल कालेज के बोर्ड हासिल कर लिए, लेकिन शहर की संकरी गलियों को भय है कि कहीं यह संस्थान भी गुम न हो जाए। इस शहर को विस्तार चाहिए और यह नाहन विकास परियोजना के तहत बाहरी दायरे में हो, तो इसकी पौराणिकता-ऐतिहासिकता बची रहेगी, वरना यह शहर यूं ही अपनी परिक्रमा में प्रगति के चिन्ह गंवा देगा। नाहन शहर की सीमा से बाहर लघु सचिवालय बनाकर अधिकांश कार्यालय शिफ्ट करने होंगे, वरना इतिहास के कब्रिस्तान में हम अपने भविष्य का दावा यूं ही करते रहेंगे। शहर के भीतर जिस किसी परिस्थिति या सियासत ने मेडिकल कालेज को दुर्ग बनाया, वह नाहन की छवि के लिए सबसे घातक कदम है। पुराने अस्पताल या चिकित्सा विभाग की इमारतों पर चिन कर मेडिकल कालेज नहीं बनाया जा सकता, यह मजमून आधी-अधूरी निर्माणाधीन इमारत के खंडहर बता रहे हैं। नाहन को बचाने और नाहन को संवारने के दो पहलुओं के बीच इस शहर को एक नए नाहन के विकास की जरूरत है, जो चंद किलोमीटर की दूरी पर सांस ले सकता है।


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