शौर्य व पराक्रम की दास्तान बसंतर युद्ध.

पश्चिमी मोर्चे पर भयंकर जंग में सेना की ‘नौ पंजाब’ बटालियन ने अमृतसर के नजदीक ‘रानियां’ क्षेत्र में पाकिस्तान की 18वीं फ्रंटियर फोर्स व पाक टैंकों के एक बड़े हमले को पांच दिसंबर 1971 के दिन सरहद के उस पार ही ध्वस्त कर दिया था। युद्ध में विशिष्ट वीरता के लिए मेडल दिए गए…

बेशक भारत-पाक सेनाओं के दरम्यान सन् 1971 की शदीद जंग पूर्वी पाकिस्तान के महाज पर लड़ी जा रही थी, मगर पाकिस्तान के हुक्मरानों ने जम्मू-कश्मीर को हथियाने की हसरत कभी नहीं छोड़ी और भारतीय सैन्य पराक्रम के आगे पाक जरनैलों के ख्वाबों की यह ताबीर एक मुद्दत से मुकम्मल नहीं हुई और न ही होगी। तीन दिसंबर 1971 को पाक वायुसेना ने भारतीय हवाई अड्डों पर हमले करके युद्ध का आगाज कर दिया था। पाक सेना का मंसूबा यह था कि भारत के पश्चिमी क्षेत्रों व जम्मू-कश्मीर पर हमला करके युद्ध का दायरा बढ़ाया जाए, ताकि आलमी सतह पर भारत की तत्कालीन हुकूमत पर कश्मीर मसले के समझौते के लिए दबाव बनाया जा सके। इस मंसूबे का जिक्र पाकिस्तान के साबिक मे. ज. ‘फजल मुकीम खान’ ने अपनी किताब ‘पाकिस्तान क्राइसिस इन लीडरशिप’ में किया था। पाकिस्तानी सिपाहसालार ले. ज. ‘इरशाद अहमद खान’ की कयादत में पाक सेना की ‘प्रथम कोर’ सियालकोट से बसंतर के रास्ते जम्मू-कश्मीर पर हमला करने की तैयारी कर रही थी। मगर इससे पहले कि पाक फौज पंजाब सीमा पर कोई हिमाकत करती, भारतीय सेना ने चार दिसबंर 1971 को पाकिस्तान के ‘शकरगढ़’ सेक्टर में हमला करके पाक जरनैलों की पूरी तजवीज को नेस्तनाबूद कर दिया था।

पश्चिमी मोर्चे पर लड़े गए उस युद्ध को ‘बसंतर युद्ध’ के नाम से जाना जाता है। सेना की ‘18 राजपूताना राइफल’ ने आठ दिसंबर 1971 को शकरगढ़ में हमला करके पाक सेना की पेशकदमी को ध्वस्त कर दिया था। उस हमले में मेजर ‘राजेंद्र सिंह राजावत’ ‘वीर चक्र’ ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। बसंतर नदी के किनारे 15 दिसंबर 1971 को जरपाल कस्बे पर कब्जा करने में सेना की ‘तीन ग्रेनेडियर्स’ बटालियन ने अहम किरदार निभाया था। युद्ध में तीन ग्रेनेडियर्स की एक कंपनी का नेतृत्व मेजर ‘होशियार सिंह’ कर रहे थे। भीषण गोलीबारी के बीच जख्मी होने के बावजूद मे. होशियार सिंह ने अपने जवानों के साथ मिलकर पाक सेना की ‘35वीं फ्रंटियर फोर्स’ के एक बड़े हमले को नकारा करने में अदम्य साहस का परिचय दिया था। बसंतर युद्ध में शत्रु की लाशें बिछाकर तीन ग्रेनेडियर्स के 33 सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए थे। जंग में उच्चकोटी के सैन्य नेतृत्व के लिए मेजर होशियार सिंह को सर्वोच्च सैन्य पदक ‘परमवीर चक्र’ से अलंकृत किया गया था। सन् 1971 की जंग के एकमात्र जीवित ‘परमवीर चक्र’ विजेता मे. होशियार सिंह ही थे। शकरगढ़ के उसी युद्ध में पाक सेना ने अमेरिका से खैरात में मिले पैटन टैंकों से भारतीय पोजिशन पर हमला किया था। पाक टैंकों का सामना करने के लिए कर्नल ‘हनुत सिंह राठौर’ की कमान में सेना की टैंक रेजिमेंट ‘पूना हार्स’ बसंतर के रण में मुस्तैद थी।

कर्नल हनुत सिंह व ले. ‘अरुण खेत्रपाल’ के नेतृत्व में पूना हार्स ने जोरदार पलटवार करके पाकिस्तान की 13वीं लांसर्स के टैंकों को कब्रिस्तान में तब्दील कर दिया था। अरुण खेत्रपाल ने अपने टैंक से अकेले ही शत्रु के चार टैंकों को नष्ट करके रणभूमि में शहादत को गले लगा लिया था। युद्ध में उच्चकोटि की शूरवीरता के लिए ले. अरुण खेत्रपाल को ‘परमवीर चक्र’ (मरणोपरांत) से नवाजा गया था तथा ‘फक्र-ए-हिंद’ कर्नल हनुत सिंह राठौर को ‘महावीर चक्र’ से सरफराज किया गया था। देश के लिए लड़े गए युद्धों में यदि वीरभूमि हिमाचल के रणबांकुरों का जिक्र न किया जाए, तो सेना के शौर्य की तारीख अधूरी रहेगी। शकरगढ़ सेक्टर के उसी बसंतर युद्ध में पाकिस्तान के 27 टैंकों को खाक में मिलाने वाली भारतीय सेना की टैंक रेजिमेंट ‘चार हार्स’ के कमान अधिकारी हिमाचली शूरवीर कर्नल ‘राजमोहन वोहरा’ थे। सेना की चार हार्स ने पाकिस्तान के टैंकों, मिसाइलों व बारूदी सुरंगों को बर्बाद करके चमरोला, लगवाल व ठाकुरद्वारा जैसे इलाकों पर कब्जा जमाया था। शकरगढ़ में भारतीय टैंकों का हमला इतना भयानक था कि पाकिस्तान की ‘आठवीं टैंक ब्रिगेड’ लगभग पूरी तरह समाप्त हो गई थी। बसंतर युद्ध में प्रेरक सैन्य नेतृत्व के लिए सेना ने कर्नल राज मोहन वोहरा को ‘महावीर चक्र’ से नवाजा था। सेना की ‘प्रथम डोगरा’ यूनिट ने पांच दिसंबर 1971 को अंतरराष्ट्रीय सरहद की बंदिश को तोडक़र बसंतर की जंग में पाक सेना पर जोरदार हमला करके शकरगढ़ के शाहबाजपुर व खैरल आदि क्षेत्रों पर कब्जा जमाया था। जंग में पच्चीस डोगरा सैनिक शहीद हो गए थे। युद्ध में अदम्य साहस के लिए प्रथम डोगरा के ले. ‘एसके जसवाल’ को ‘वीर चक्र’ (मरणोपरांत) से नवाजा गया था। शकरगढ़ के नजदीक ‘चक अमरू’ नामक रेलवे स्टेशन पर सेना की ‘22 पंजाब’ बटालियन ने हमला करके पाक फौज की पेशकदमी को वहीं नेस्तनाबूद कर दिया था।

चक अमरू पर हमले में अहम किरदार अदा करके शहीद हुए ‘22 पंजाब’ के मेजर ‘गुरदेव सिंह जसवाल’ को ‘वीर चक्र’ (मरणोपरांत) से अलंकृत किया गया था। पश्चिमी मोर्चे पर भयंकर जंग में सेना की ‘नौ पंजाब’ बटालियन ने अमृतसर के नजदीक ‘रानियां’ क्षेत्र में पाकिस्तान की 18वीं फ्रंटियर फोर्स व पाक टैंकों के एक बड़े हमले को पांच दिसंबर 1971 के दिन सरहद के उस पार ही ध्वस्त कर दिया था। युद्ध में विशिष्ट वीरता के लिए नौ पंजाब के ले. ‘जोगिंद्र सिंह जसवाल’ को ‘वीर चक्र’ तथा मेजर ‘वासुदेव सिंह मनकोटिया’ को ‘महावीर चक्र’ से सरफराज किया गया था। बसंतर की जंग में भारतीय सेना के आक्रामक अंदाज से खौफजदा होकर पाक सेना बिना किसी शर्त के युद्धविराम का प्रस्ताव भेज चुकी थी। भारतीय सेना सियालकोट को फतह करने के करीब पहुंच चुकी थी। उसी दौरान 16 दिसंबर 1971 को पूर्वी पाकिस्तान के मोर्चे पर पाक फौज ने भारतीय सेना के समक्ष हथियार डालकर आत्मसमर्पण कर दिया। भारतीय रणबांकुरों ने पाकिस्तान को तकसीम करके पूर्वी पाक को नए राष्ट्र बांग्लादेश में तब्दील करके वहां बांग्ला निजाम कायम कर दिया था, मगर भारतीय सेना ने पश्चिमी मोर्चे पर शकरगढ़ में हमले को अंजाम देकर पाकिस्तान के कश्मीर हथियाने वाले मंसूबे को भी ध्वस्त कर दिया था। बसंतर जंग के शूरवीरों को देश नमन करता है।

प्रताप सिंह पटियाल

स्वतंत्र लेखक


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