शिक्षा सुधारों में व्यापकता एवं व्यावहारिकता जरूरी

आवश्यकता है कि शिक्षा संबंधी सुधार व्यावहारिक हों…

शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए शिक्षा तंत्र को समय-समय पर कड़े निर्णय लेने पड़ते हैं। जिस प्रकार लम्बे समय से ठहरा हुआ पानी अपनी स्वच्छता तथा गुणवत्ता को खोकर प्रदूषित हो जाता है, ठीक उसी प्रकार किसी भी क्षेत्र में गुणवत्ता के लिए व्यापक स्तर पर बुनियादी सुधार किए जाते हैं। यह बदलते समय के अनुरूप तथा नीति परिवर्तन के कारण अवश्य भी हो जाता है। राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा के मानकों तथा व्यावहारिकता में बहुत से परिवर्तन हो रहे हैं, इसलिए आवश्यक हो जाता है कि उस क्षेत्र विशेष में कार्यरत व्यक्तियों, नीतियों तथा रीतियों में भी परिवर्तन हो। यह भी आवश्यक है कि प्रस्तावित बदलाव वास्तविक, व्यावहारिक तथा शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करते हों। प्रदेश के शिक्षा क्षेत्र में इस समय व्यापक रूप से परिवर्तन हो रहे हैं। शिक्षा क्षेत्र में बड़े बदलावों को सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक विद्यालय तथा महाविद्यालय को ‘डिवेलपमेंट प्लान’ अनिवार्य किया गया है। ‘मुख्यमंत्री एक्सीलेंस स्कूल’ तथा ‘कालेज ऑफ एक्सीलेंस’ बनाए जा रहे हैं। प्राथमिक शिक्षा से उच्च शिक्षा में निदेशालय, सचिवालय तथा शिक्षा मंत्रालय स्तर पर नियमित बैठकें आयोजित कर गम्भीर चिन्तन हो रहा है जिसका उद्देश्य केवल शिक्षा तंत्र को चुस्त-दुरुस्त कर गुणवत्ता के लक्ष्य को प्राप्त करना है। प्रदेश में पिछले कई वर्षों से शिक्षक स्थानांतरण नीति के क्रियान्वयन के लिए अनेक फैसले लिए गए, परंतु विडम्बना है कि कोई भी स्थानांतरण नीति अन्तिम रूप से घोषित होकर लागू नहीं हो पाई।

जनजातीय क्षेत्रों, सब-काडर, हार्ड एरिया, निचले क्षेत्रों, ऊपरी क्षेत्रों तथा शहरी क्षेत्रों की परिभाषावली में उलझी यह ट्रांसफर पॉलिसी अब भी तकनीकी शब्दावली के मकडज़ाल में फंसी हुई है। अस्पष्ट तथा अघोषित ट्रांसफर पॉलिसी के चक्कर में अध्यापकों के स्थानांतरण का फैसला न्यायालय में होता है जहां मोटी धनराशि वकीलों को देनी पड़ती है। प्रभावशाली व्यक्ति हमेशा अपने राजनीतिक, प्रशासनिक प्रभाव का प्रयोग करता रहता है, आम व्यक्ति की नियमानुसार सुनवाई भी नहीं होती। सबसे बड़ी बात यह है कि राजनेताओं, प्रशासनिक अधिकारियों तथा समृद्ध एवं सम्पन्न व्यक्ति की अर्धांगिनी, बेटी, बेटा या नजदीकी मित्र रिश्तेदार राजधानी या जिला मुख्यालय छोड़ कर किसी भी दुर्गम क्षेत्र में कैसे जा सकते हैं। फिर अनेक प्रकार के सच्चे-झूठे प्रमाणपत्र, मेडिकल प्रमाणपत्र भी तो प्रस्तुत किए जाने की सुविधा उपलब्ध है, जिसे सत्यापित किए बिना मनमर्जी के प्रभावशाली व्यक्ति कहीं भी नौकरी कर सकता है। अगर ऐसा न हो तो भी राजनीतिक तथा सचिवालय स्तर पर कोई न कोई हल निकल जाता है या फिर न्यायालय में भी वकीलों के दांवपेंच इस दिशा में कारगर साबित होते हैं। समस्या यह है कि निश्चित नियमावली एवं स्थानांतरण पॉलिसी के अभाव या उसे लागू करने की मंशा न होने से लोगों को बेवजह निदेशालय, सचिवालय तथा न्यायालय के चक्कर लगा कर परेशान होना पड़ता है, जिससे बहुत सा धन तथा समय नष्ट होने के साथ मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ता है। यह जगजाहिर सत्य है कि आज तक अनेकों अध्यापक अपना राजनीतिक तथा प्रशासनिक प्रभाव न होने के कारण जनजातीय क्षेत्रों में ही सेवानिवृत्त हो चुके हैं। वर्तमान शिक्षा में व्यवस्था परिवर्तन के उद्देश्य से शिक्षकों को तीस किलोमीटर से बाहर स्थानांतरित करने की चर्चा चल रही है। आशा है कि बिना भेदभाव तथा पक्षपात से यह नीति प्रदेश में लागू होगी। अब प्रदेश के स्कूलों में पाठशाला प्रबंधन समिति तथा पाठशाला प्रशासन विद्यार्थियों की वर्दी अपनी पसन्द से चयनित करने के लिए स्वतन्त्र होगा। सरकार का यह निर्णय जहां स्वागत योग्य तथा फैसले लेने के लिए संस्थागत स्वायत्तता को बढ़ावा देता है वहीं पर संस्थान स्तर पर अपनी-अपनी इच्छा, पसन्द तथा मनमर्जी से सरकारी स्कूलों की वर्दी से अपनी पहचान की अवधारणा समाप्त हो सकती है। सरकारी पाठशालाओं के विद्यार्थियों की अपनी पहचान होती है जिस पर पुनर्विचार किया जा सकता है। इसी तरह विभाग में वार्षिक केलैंडर में स्पोट्र्स डेज कम करने तथा टीचर ट्रेनिंग प्रोग्राम छुट्टियों में आयोजित कर शैक्षिक कार्य दिवस बढ़ाने का विचार भी सराहनीय कदम होगा। इस बात पर भी विचार किया जा सकता है कि प्राथमिक तथा अंडर-14 खेलकूद तथा सांस्कृतिक प्रतियोगिताएं क्लस्टर तथा खण्ड स्तर तक ही आयोजित होनी चाहिए।

छोटे बच्चे अल्पावस्था में इतने सक्षम नहीं होते कि वे खेलकूद प्रतियोगिताओं के दौरान स्व-प्रबन्धन कर सकें। खेलकूद प्रतियोगिताओं में कई बार अध्यापकों तथा प्रबंधकों की ओर से लापरवाही की शिकायतें मीडिया तथा समाचारपत्रों में देखी गई हैं। कुछ दिन पहले विभाग ने पांच सौ मीटर के दायरे में सभी वरिष्ठ, उच्च, माध्यमिक तथा प्राथमिक पाठशालाओं को एक ही प्रधानाचार्य के अधीन कार्य करने, संसाधनों के उपयोग तथा अध्यापकों की कमी के कारण उच्च शिक्षा प्राप्त शिक्षकों की सेवाओं का लाभ लेने का विचार बनाया है, जिसका प्राथमिक स्तर के अध्यापकों द्वारा विरोध शुरू हो चुका है। इस नवीन योजना के अनुसार आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित सभी पाठशालाओं की गतिविधियां एक ही स्थान पर आयोजित होने, टाईम टेबल को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए प्रारम्भ में कुछ परेशानियां अवश्य होंगी, लेकिन इससे संसाधनों का दुरुपयोग रुकेगा तथा उनका अधिक इस्तेमाल होगा। सरकार का यह निर्णय संस्थागत प्रशासन, अध्यापकों की कमी तथा शैक्षिक वातावरण की स्थापना तथा शिक्षा की गुणवत्ता के उद्देश्यों के लिए लाभप्रद रहेगा। इससे मानवीय तथा भौतिक संसाधनों को प्रभावी ढंग से उपयोग में लाया जा सकता है। लोकतंत्र में व्यक्तियों तथा संगठनों को अपने अधिकारों पर आवाज बुलंद करने तथा अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता रहती है, परन्तु प्रदेश के शिक्षा विभाग में अप्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक दलों द्वारा समर्थित, गैर राजनीतिक शिक्षक संगठन तथा अराजपत्रित कर्मचारी, अनेकों संगठन अध्यापकों तथा कर्मचारियों के हितों के लिए आवाज उठाते हैं। अध्यापकों तथा कर्मचारी संगठनों के साथ शिक्षा प्रशासन को बातचीत कर विलय करवा कर इनकी संख्या कम करने का प्रयास करना चाहिए। प्रदेश में शिक्षा की नीतियों तथा गुणवत्ता के लिए सरकार की ओर से गम्भीर प्रयास किए जा रहे हैं। आवश्यकता है कि होने वाले परिवर्तन व्यावहारिक हों, भेदभाव एवं पक्षपात रहित होकर प्रभावी ढंग से लागू हों, लोकतांत्रिक प्रक्रिया से लिए गए निर्णय सामूहिक तथा राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुरूप हों।

प्रो. सुरेश शर्मा

शिक्षाविद


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