जनसंख्या : समस्या अथवा वरदान

By: Dec 7th, 2023 12:05 am

ऐसे में बढ़ती आबादी का बड़ा हिस्सा बेरोजगार, अर्धशिक्षित अथवा अशिक्षित तथा साधनहीन होगा। इस स्थिति को न बदला गया तो बढ़ती आबादी सचमुच अभिशाप बन जाएगी। स्थिति को बदलने के लिए सबसे पहले कस्बों और गांवों में इन्फ्रास्ट्रक्चर के तेज विकास के लिए काम करना होगा, उनके लिए स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवानी होंगी तथा उन्हें रोजगारपरक उद्यमिता की शिक्षा देनी होगी। कंज्यूमर गुड्स कंपनियों को आज ग्रामीण भारत में बड़ा बाजार नजर आ रहा है। इस बाजार को बढ़ाने के लिए यहां इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास में योगदान उनके अपने हित में है। विभिन्न सरकारें भी इस ओर ध्यान दें तो समाज में असमानता नहीं होगी तथा सामाजिक विघटन का खतरा नहीं रहेगा। हमारी अधिकांश आबादी कामकाजी होगी तो गरीबी मिटेगी, देश समृद्ध होगा और उसके कारण भी इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास होगा। हमें गरीबी और विकास के बीच चुनाव करना है…

जनसंख्या के लिहाज से भारतवर्ष विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है। आबादी के आकार की बात करें तो हमारा देश अमरीका, इंडोनेशिया, ब्राजील, पाकिस्तान, बांग्लादेश और जापान की सम्मिलित आबादी के बराबर है और पिछले 10 वर्षों में हमारे देश की जनसंख्या में एक पूरे देश ब्राजील की जनसंख्या और जुड़ गई है। जनसंख्या बढऩे का मतलब है कि हमें ज्यादा लोगों के शिक्षा के साधन, रोजगार, खाना और रहने के लिए मकान चाहिएं। हमारे देश में बहुत सी समस्याएं हैं, जनसंख्या की समस्या उनमें से बहुतों का मूल है, पर यह भी सच है कि ज्यादा आबादी के कारण आज हम लाभ की स्थिति में भी हैं। भारतवर्ष में 15 वर्ष से 59 वर्ष के लोगों की वृद्धि का अनुपात आबादी की वृद्धि के अनुपात से अधिक है और यह स्थिति 2030 तक बने रहने की उम्मीद है। यह वह आबादी है जो काम में लगी है अथवा काम में लगाई जा सकती है। ऐसी जनसंख्या वाला भारत एकमात्र विकासशील देश है। आज हमारे सामने सवाल यह है कि जनसंख्या के इस वर्ग को काम में लगाकर हम इसे अपने लिए वरदान बना लेंगे या फिर राजनेताओं की थोथी बयानबाजी और अपनी खुद की लापरवाही, अकर्मण्यता तथा अज्ञान के कारण बढ़ती आबादी को अपने लिए अभिशाप बना लेंगे तथा वर्तमान से भी ज्यादा गरीबी तथा साधनहीनता की स्थिति में पहुंच जाएंगे। हमारे सामने यह एक बड़ी चुनौती है, और यही एक बड़ा अवसर भी है।

फ्रेंच पोलिटिकल साइंटिस्ट क्रिस्टोफर जै्रफरेलो दक्षिण-पश्चिम एशिया मामलों के विशेषज्ञ हैं और भारत-पाकिस्तान पर उनकी खास पकड़ है। उनकी संपादित पुस्तक ‘इंडिया सिंस 1950 : सोसाइटी, पॉलिटिक्स, इकोनोमी एंड कल्चर’ में भारत का राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विश्लेषण किया गया है। इसी पुस्तक के अध्याय ‘इंडिया 2025’ के अनुसार भारतवर्ष उभरती अर्थव्यवस्थाओं में सर्वाधिक संभावनाओं वाला देश है। यहां न सिर्फ राजनीतिक स्थिरता है, बल्कि यहां लोकतंत्र के साथ बाजार आधारित अर्थव्यवस्था भी है। हालांकि भारत की विकास दर यदा-कदा ही दोहरे अंक तक पहुंच सकी है, लेकिन पिछले दस वर्षों से यह 7-8 प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है। जीडीपी के लिहाज से 2025 तक हमारा देश अमरीका और चीन के बाद तीसरा सबसे बड़ा देश बन जाएगा। बचत और निवेश की अच्छी दर का भी भारत को लाभ मिलेगा और सन 2030 तक देश की उत्पादकता भी बढ़ती रहने के संकेत हैं। विद्वानों का मानना है कि उत्पादकता बढऩे के पांच मुख्य कारण हैं। एक, अर्थव्यवस्था में कृषि की जगह उद्योग और सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी में बढ़ोत्तरी, दो विश्व अर्थव्यवस्था में भारतीय कंपनियों की बढ़ती हिस्सेदारी, तीन बैंकिंग सेक्टर का आधुनिकीकरण, चार आईटी टूल्स का बढ़ता इस्तेमाल और पांच, संचार व परिवहन के साधनों का विकास। क्या भारतीय अर्थव्यवस्था इसी रफ्तार से आगे बढ़ सकती है? अगर हां, तो आने वाले वर्षों में इसके क्या सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिणाम होंगे? एक चुनौती तो स्पष्ट रूप से बढ़ती असमानता है। यह असमानता सिर्फ सामाजिक स्तर पर नहीं, बल्कि भौगोलिक स्तर पर भी है। ग्रामीण भारत आगे नहीं बढ़ रहा है। इससे ग्रामवासियों में शहरी मध्यवर्ग के मुकाबले गहरी हताशा पैठ सकती है और यह असंतोष माओवादियों अथवा ऐसे ही अन्य संगठनों के पक्ष में जा सकता है। हमारी चुनौती यह है कि आबादी को हम बोझ न बनने दें, बल्कि उसे परिसंपत्ति में परिवर्तित कर दें। माना जाता है कि भारत की आबादी इक्कीसवीं सदी के मध्य तक चीन को पार कर डेढ़ अरब हो जाएगी। साल 2025 तक कामकाजी वर्ग की आबादी में 25 करोड़ लोगों का इजाफा होगा। इसका अर्थ है कि भारत अन्य देशों के मुकाबले में युवा रहेगा और शायद वेतन भी कम रखने की स्थिति में होगा। इस वर्ग को परिसंपत्ति बनाने के लिए हमें शिक्षा सुविधाओं का तेज विकास करना होगा और नए रोजगार पैदा करने होंगे। हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि शिक्षा ऐसी हो जिससे कृषक वर्ग भी लाभान्वित हो सके। आबादी में हर साल एक करोड़ सत्तर लाख लोगों के जुडऩे का मतलब है कि खाद्य सुरक्षा में आत्मनिर्भर बनने के लिए हमें कृषि उत्पादन में सालाना 4 से 4.5 प्रतिशत तक की वृद्धि सुनिश्चित करनी होगी। उड़ीसा, गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक में पिछले दस वर्षों में कृषि उत्पादन गिरा है। राष्ट्रीय स्तर पर गेहूं और चावल का उत्पादन स्थिर हो गया है। इससे प्रति व्यक्ति अनाज और दालों की उपलब्धता घटी है। इस स्थिति को बदलने की आवश्यकता है। कमजोर इन्फ्रास्ट्रक्चर एक अहम अड़चन है। सडक़ों और रेलों के आधुनिकीकरण की आवश्यकता है। ऊर्जा की स्थिति और भी संकटपूर्ण है। कोयले और तेल की बढ़ती खपत का संकट अलग से है।

परिणामस्वरूप बिजली की कटौती जारी रहने की आशंका है। ऐसे में बढ़ती आबादी का बड़ा हिस्सा बेरोजगार, अर्धशिक्षित अथवा अशिक्षित तथा साधनहीन होगा। इस स्थिति को न बदला गया तो बढ़ती आबादी सचमुच अभिशाप बन जाएगी। स्थिति को बदलने के लिए सबसे पहले कस्बों और गांवों में इन्फ्रास्ट्रक्चर के तेज विकास के लिए काम करना होगा, उनके लिए स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवानी होंगी तथा उन्हें रोजगारपरक उद्यमिता की शिक्षा देनी होगी। कंज्यूमर गुड्स कंपनियों को आज ग्रामीण भारत में बड़ा बाजार नजर आ रहा है। इस बाजार को बढ़ाने के लिए यहां इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास में योगदान उनके अपने हित में है। विभिन्न सरकारें भी इस ओर ध्यान दें तो समाज में असमानता नहीं होगी तथा सामाजिक विघटन का खतरा नहीं रहेगा। हमारी अधिकांश आबादी कामकाजी होगी तो गरीबी मिटेगी, देश समृद्ध होगा और उसके कारण भी इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास होगा। यह एक ऐसा सार्थक चक्र होगा जो देश को विकास की नई दिशा देगा और हमें विकसित देश बनने में मददगार साबित होगा। अगर हमने ऐसा न किया तो यह आबादी अभिशाप बन जाएगी, स्लम एरिया बढ़ेगा, चोरियां, हत्याएं और सभी तरह के अपराध बढ़ेंगे, गांवों का विकास नहीं होगा और शहरों का जीवन असुरक्षित हो जाएगा। हमें याद रखना चाहिए कि गरीबी और विकास के बीच चुनाव हमें करना है, परिणाम भी हम ही भुगतेंगे। बढ़ती जनसंख्या को रोकना होगा।

पीके खु्रराना

हैपीनेस गुरु, गिन्नीज विश्व रिकार्ड विजेता

ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com


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