अध्यात्म और विज्ञान

By: Dec 9th, 2023 12:14 am

श्रीश्री रवि शंकर

जब आप संसार की किसी वस्तु को जानने की जिज्ञासा में यह प्रश्न करते हैं कि यह क्या है? तो दरअसल किसी चीज को इस दृष्टिकोण से जानने की उत्सुकता रखना आपको विज्ञान की ओर अग्रसर करता है। और यदि आप ये प्रश्न करते हैं कि मैं कौन हूं? तो यह दृष्टिकोण आपको आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर करता है। वस्तुनिष्ठ विश्लेषण विज्ञान है और आत्मनिष्ठ विश्लेषण अध्यात्म। क्या आप जानते हैं, ऐसा कहा गया है कि बुद्धिमता का पहला चिन्ह है कि कुछ भी न कहो, दूसरा चिन्ह है कि क्योंकि आप पहला चिन्ह खो चुके हो, तो जब तक पूछा न जाए तब तक कुछ भी न कहें। इस देश में लगभग सभी शास्त्र एक प्रश्न से शुरू होते हैं। दूसरे देशों के विपरीत यहां हमने हमेशा अनुसंधान की भावना को बढ़ावा दिया है। विज्ञान का मूल अनुसंधान की भावना है। पूर्व में हमेशा हमने आपको प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित किया है। हम यह कभी नहीं कहते कि प्रश्न मत पूछो, हम कहते हैं कि प्रश्न पूछो। मुझसे एक अध्यापक ने पूछा कि विज्ञान और आध्यात्मिकता में क्या भेद है? विज्ञान क्या है? विज्ञान माने, यह क्या है? का व्यवस्थित विश्लेषण ही विज्ञान है।

विश्लेषण और समझ! यह क्या है? यह विज्ञान है और मैं कौन हूं? यह आध्यात्मिकता है। वस्तुनिष्ठ विश्लेषण विज्ञान है और आत्मनिष्ठ विश्लेषण अध्यात्म है। पूरब में विज्ञान और अध्यात्म कभी भी एक दूसरे के विरोधाभासी नहीं रहे । यहां कभी किसी वैज्ञानिक को सताया नहीं गया। अब ध्यान करना है बहुत आसान। आज ही सीखें। पश्चिम में कहते हैं तुम पहले विश्वास करो, एक दिन तुम्हें अनुभव भी हो जाएगा। उसमें भी कुछ सत्य है। देखिए, जब आपके पास एक बीज होता है और आप वह बीज बोते हैं तब आप विश्वास करते हैं कि बीज अंकुरित होने जा रहा है और एक दिन वह अंकुरित भी होता है। पश्चिम में आप पहले विश्वास करते हैं और तब एक दिन आपको परिणाम मिलेगा। पूर्व में हम हमेशा कहते हैं कि पहले अनुभव करें और तब आप अपना विश्वास स्वयं सिद्ध कर सकते हैं।

यह एक कारण है कि विश्व के पूर्व में विज्ञान और आध्यात्मिकता कभी भी एक दूसरे को खंडित नहीं करते। हम हमेशा तत्त्व ज्ञान के विषय में बात करते हैं, तत्व ज्ञान माने सिद्धांतों का ज्ञान होना। प्रो. डोर (एक महान परमाणु वैज्ञानिक) ने जब हमारे आश्रम का दौरा किया तो उन्होंने बताया कि प्राचीन मिस्र के लोग केवल चार तत्वों का ही ज्ञान रखते थे। वे (पांचवें तत्त्व) आकाश तत्त्व से अनजान थे। मैंने उनसे कहा, भारत में तो हम युगों से, पृथ्वी तत्त्व के बारे में जानते हैं। हमने (महाभूतों की चर्चा के दौरान) हमेशा ‘पंच महाभूत’ कहा। इतना ही नहीं, हम हमेशा से समय को भी एक तत्त्व के रूप में ही मानते आए हैं। कुल मिलाकर 36 तत्त्व हैं। देश (स्थान, काल, समय) आदि सब तत्त्वों के रूप में ही गिने जाते हैं। यहां तक कि शिव जो चेतना की एक अवस्था है, को भी एक तत्व ही माना जाता है।

अब विज्ञान के लिए हानिकारक क्या है? पहला है, अवधारणा, और दूसरा है पूर्वाग्रह। यदि आप किसी प्रकार के पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं, तो हम आपको बताते हैं, आप खुद को वैज्ञानिक नहीं कह सकते, क्योंकि पूर्वाग्रह आपको ठीक प्रकार से वस्तुओं का अनुभव नहीं करने देगा। स्पष्ट धारणा के लिए आपके पास एक ऐसा मन होना चाहिए जो तनावमुक्त, स्वस्थ और जीवंत हो, एक ऐसी आत्मा जो उत्साह और रचनात्मकता से भरी हो और जिसमें दुनिया के किसी भी कोने से सीखने की तत्परता हो। किसी का भी विरोध करने के लिए आपको सबसे पहले उसका अध्ययन करने की आवश्यकता होती है और वही है विज्ञान। यदि आप किसी चीज का अच्छी तरह से अध्ययन करते हैं और उसके बाद उसे छोड़ते हैं, तब यह कहा जा सकता है कि आप वैज्ञानिक स्वभाव के हैं। यदि आप अपने ज्ञान के प्रति पूरी तरह से निश्चित हैं, तो फिर किसी के भी विचार सुनने से भयभीत नहीं होंगे।


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