चिंतनीय है लोकतंत्र के मंदिर में सेंध

हालांकि इस तरह के विरोध के तरीके को जायज नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन आक्रोश तथा विरोध में मजबूर व्यक्ति इस तरह के कदम उठाने पर भी विवश हो जाता है। राजनीतिक दलों, सरकारों, नेताओं तथा सुरक्षा एजेंसियों को इस घटनाक्रम के अपराधियों तथा छुपे हुए सूत्रधारों से सख्ती से निपटना बहुत आवश्यक है, अन्यथा भविष्य में भी उनके हौसले बुलंद हो सकते हैं। राष्ट्रीय महत्त्व के स्थलों की सुरक्षा तथा उनकी गरिमा बनाए रखना अति आवश्यक है…

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर यानी भारतीय संसद भवन में 22 साल बाद फिर से घुसपैठ एवं सेंधमारी होना कोई सामान्य घटना नहीं है। तेरह दिसम्बर 2001 को लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों द्वारा इसी संसद भवन की पुरानी इमारत में घटित आतंकवादी हमले की बाईसवीं बरसी के दिन ही 22 वर्ष बाद सेंधमारी होना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण बात है। बाईस वर्ष पूर्व शीतकालीन सत्र में घटित आतंकी हमले में संसद भवन के गार्ड, दिल्ली पुलिस के जवानों सहित 14 लोग शहीद हो गए थे। इस हमले में 18 लोग घायल हो गए थे। ठीक 22 वर्ष बाद फिर से हमला तथा सेंधमारी तथा हमला करने की वारदात सुरक्षा के दृष्टिकोण से बहुत ही प्रश्नों को जन्म देती है। 13 दिसम्बर 2023 को भारतवर्ष के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े तथा कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्षा सोनिया गांधी ने इसी लोकसभा परिसर की रक्षा करते हुए सभी शहीदों को श्रद्धांजलि प्रकट करते पुष्पांजलि भेंट की, लेकिन कुछ ही घंटों बाद फिर से इसी परिसर में घुसपैठ तथा सेंधमारी होना आश्चर्यचकित करता है। संसद भवन की सुरक्षा कई स्तरों तथा कई एजेंसियों के जिम्मे होती है। इस भवन में तीन लेयर की सुरक्षा होती है। बाहरी सुरक्षा की जिम्मेदारी दिल्ली पुलिस के हवाले होती है। संसद परिसर की सुरक्षा सीआरपीएफ के पास रहती है। मुख्य भवन की जिम्मेदारी ज्वाइंट सिक्योरिटी सेक्रेटरी के पास होती है जो पूरे संसद परिसर की सुरक्षा को देखता है।

इसके बाद लोकसभा एवं राज्यसभा में अपने डायरेक्टर सिक्योरिटी सिस्टम होते हैं। संसद के भीतर की पूरी तरह से सुरक्षा वॉच एंड वार्ड की होती है, बाकी एजेंसियां उसे सहयोग करती हैं। संसद भवन में प्रवेश से पहले विजिटर को कई चरणों से गुजरना पड़ता है। इसके बावजूद संसद भवन में बाहरी लोगों का अप्रत्याशित हंगामा होना सुरक्षा की दृष्टि से प्रश्न तो खड़ा करता है। संसद भवन में सेंध, दर्शक दीर्घा में छलांग, अफरातफरी, पकड़ो-पकड़ो की आवाजें, स्मोक क्रैकर का धुआं, नारेबाजी, सांसदों द्वारा घुसपैठियों को पकडऩा तथा पीटना, डर एवं भय का अजीब सा प्रकरण था यह। अभी तो 22 वर्ष पूर्व घटित घटना के जख्म भरे नहीं हैं कि अब फिर वही पुनरावृत्ति। इस प्रकरण के विरोध तथा कार्रवाई पर हंगामा करने वाले 14 सांसदों को शेष शीतकालीन सत्र से निलंबित कर दिया गया। संसद के आठ कर्मचारी सस्पेंड कर दिए गए तथा चारों आरोपियों को दिल्ली पुलिस ने पटियाला हाउस कोर्ट पेश किया। कोर्ट ने आरोपियों को सात दिन के पुलिस रिमांड का आदेश दे दिया है। मामले की गहन जांच होगी। यह भी ध्यान देने तथा गहन जांच का विषय है कि घुसपैठियों ने तेरह दिसम्बर का ही दिन क्यों चुना? क्या इन चार व्यक्तियों के पीछे भी कोई साजिश या गिरोह है? क्या विरोध और आक्रोश दिखाने का कोई और तरीका नहीं हो सकता था? यहां पर यह विचारणीय है कि भारतवर्ष के इस महान संस्थान तथा लोकतंत्र के मंदिर में जब हमारे द्वारा चुना गया देश का शीर्ष नेतृत्व ही भारी सुरक्षा के बावजूद सुरक्षित नहीं है तो फिर आम जनमानस की सुरक्षा की क्या गारंटी है? लोकतंत्र का यह मंदिर कोई आम भवन या सामान्य ईमारत नहीं है। इस पर बार-बार हमला होना या घुसपैठ होना कोई सामान्य घटना नहीं है। इस घटनाक्रम के बाद हमारी सुरक्षा व्यवस्था भी अपनी जवाबदेही से नहीं बच सकती। लोकसभा के शून्यकाल की कार्यवाही चलते हुए बाहरी लोगों का घुसना, उछलना, कूदना, नारे लगाना, अफरातफरी मचाना तथा कैन स्प्रे से धुआं-धुआं करना कैसे विरोध का तरीका हो सकता है। यह एक शर्मनाक एवं निंदनीय घटना है, इसकी जितनी भी निंदा की जाए वह कम है।

देश की जनता द्वारा चुने हुए सांसदों को भी सदन में अपने आचरण, व्यवहार तथा विरोध के तरीके में सुधार करना होगा, वहीं पर सांसदों के निलंबन से भी समस्या का हल नहीं हो सकता। यह केवल नेताओं और राजनीतिक दलों की राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हो सकता है। निश्चित रूप से यह राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से एक संवेदनशील मुद्दा है। अगर कुछ अनिष्ट हो जाता तो कोई व्यक्ति विशेष या राजनीतिक दल नहीं सुरक्षित होता। इस प्रकरण को सभी राजनीतिक दलों तथा उनके नेताओं को गम्भीरता से लेते हुए संज्ञान लेना चाहिए अन्यथा कभी भी कोई और भी व्यक्ति अपनी मांग, आक्रोश तथा विरोध में किसी दिन संसद भवन की ओर चल पड़ेगा। इस मामले में राजनीति नहीं होनी चाहिए। राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर सभी दलों में एकजुटता होनी चाहिए।

संसद भवन में प्रवेश के लिए पास बनवाने की प्रक्रिया सरल नहीं होनी चाहिए। इसी के साथ ही विरोध कर्ताओं की यदि यह पीड़ा वाजिब थी तो उनकी बेरोजगारी की वेदना तथा आक्रोश भडक़ाती चिंगारी को रोकने के लिए भी सरकारों तथा व्यवस्थाओं को कारगर कदम उठाने होंगे। हालांकि इस तरह के विरोध के तरीके को जायज नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन आक्रोश तथा विरोध में मजबूर व्यक्ति इस तरह के कदम उठाने पर भी विवश हो जाता है। राजनीतिक दलों, सरकारों, नेताओं तथा सुरक्षा एजेंसियों को इस घटनाक्रम के अपराधियों तथा छुपे हुए सूत्रधारों से सख्ती से निपटना बहुत आवश्यक है, अन्यथा भविष्य में भी उनके हौसले बुलंद हो सकते हैं। राष्ट्रीय महत्त्व के स्थलों की सुरक्षा तथा उनकी गरिमा बनाए रखना अति आवश्यक है। राष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा में हुई यह चूक तथा पुनरावृत्ति अक्षम्य है। संसद की गरिमा बनाए रखने को उसकी कड़ी सुरक्षा होनी चाहिए।

प्रो. सुरेश शर्मा

शिक्षाविद


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