उपराष्ट्रपति की मिमिक्री

By: Dec 22nd, 2023 12:05 am

संसद परिसर में ही उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के सार्वजनिक अपमान पर देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को कहना पड़ा कि यह ‘अशोभनीय आचरण’ है। राष्ट्रपति व्यथित हुईं। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी पीड़ा साझा की कि वह 20 साल से ऐसा ही अपमानजनक व्यवहार झेल रहे हैं। लोकसभा स्पीकर ओम बिरला उपराष्ट्रपति से मुलाकात करने गए और सांसदों के आपत्तिजनक व्यवहार पर गहरी चिंता जताई। उपराष्ट्रपति के अपमान पर देश भर से क्या प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं, वे सुर्खियां बनी हैं। भारत की ‘संवैधानिक त्रिमूर्ति’ को संसद परिसर में ही क्षोभ जताना पड़ा है। यह लोकतंत्र और संविधान का भी अपमान है। संसद परिसर किसी विदूषक, कॉमेडियन, जोकर या नकलची का मंच नहीं है। बेशक संसद के दोनों सदनों से 143 विपक्षी सांसदों को निलंबित किया गया है। सांसद संसद के प्रवेश-द्वार पर बैठे हैं। वे संसद भवन से विजय चौक या राष्ट्रपति भवन तक मार्च निकाल सकते थे अथवा जंतर-मंतर पर मॉक संसद का आयोजन कर अपना विरोध जता सकते थे, लेकिन तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने उपराष्ट्रपति धनखड़ के हाव-भाव और भंगिमाओं की नकल कर उनका मजाक उड़ाया। क्या सांसद के नाते यही संस्कार और आचार-संहिता सीखी है उन्होंने? कल्याण भी विदूषक या जोकर नहीं हैं, जो नकल करने की कला पर निलंबित सांसदों को हंसा रहे थे। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी उस ‘मिमिक्री’ का वीडियो बना रहे थे। क्या उन्हें ‘संवैधानिक चेहरे’ की खिल्ली उड़ाने में सुख मिलता है? यह देश का भी अपमान है। राहुल गांधी भी उपराष्ट्रपति के अपमान में शामिल दिखे। चूंकि मोदी सरकार अडाणी समूह, बेरोजगारी, महंगाई सरीखे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर सरोकार नहीं जता रही है, तो इसके मायने ये नहीं हो सकते कि राज्यसभा के सभापति को सरेआम बेइज्जत करें।

आखिर इस मजाक और अपमान के तर्क क्या हैं? उपराष्ट्रपति देश का दूसरा सर्वोच्च संवैधानिक पद है। जगदीप धनखड़ निर्वाचित होकर पदासीन हुए हैं। कल्याण बनर्जी कुछ भी सफाई दें, लेकिन राज्यसभा के सभापति के प्रति उनका आक्रोश, उनकी खीझ और नफरत ही अभिव्यक्त हुई हैं। संसद परिसर में यह व्यवहार अक्षम्य है। संभव है कि राज्यसभा के निलंबित सांसद, सभापति के फैसले से, असहमत और असंतुष्ट हों! ज्यादातर सांसद लोकसभा से निलंबित किए गए हैं। हमने ऐसी कार्रवाई का विश्लेषण किया था और इन्हें ‘कठोरतम कर्रवाई’ करार दिया था। ऐसी कार्रवाई की जाएंगी, तो संसद विपक्ष-मुक्त होने लगेगी। यह भी संवैधानिक स्थिति नहीं है, लेकिन इन पीठासीन अध्यक्षों के फैसलों के बदले में संवैधानिक चेहरों का अपमान भी बिल्कुल अस्वीकार्य है। हमें याद नहीं आता कि ऐसा सार्वजनिक अपमान संसद परिसर में पहले कभी किया गया हो! बहरहाल अब इस अपमान की सार्वजनिक प्रतिक्रियाएं आने लगी हैं। जाट समाज की खाप के प्रधान जगदीप सेहरावत ने कहा है कि यह उपराष्ट्रपति ही नहीं, देश के किसानों का भी अपमान है। खाप ने माफी मांगने का आग्रह किया है। अन्यथा किसान और जाट मिलकर तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ प्रदर्शन करेंगे। सर्वोच्च अदालत के अधिवक्ता विनीत जिंदल ने विवादास्पद सांसदों के खिलाफ लोकसभा और राज्यसभा की आचार समितियों में शिकायत दर्ज कराई है। उन्होंने कल्याण, राहुल और अन्य सांसदों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की है। यह संसद में जातीयता का मुद्दा नहीं है, लेकिन उपराष्ट्रपति के पद और सदन के संरक्षक की गरिमा को कैसे गिराया जा सकता है? यदि भाजपा ने जाट और किसान अपमान का भी मुद्दा बना लिया, तो गौरतलब है कि देश भर में 9 करोड़ से अधिक, करीब 6.5 फीसदी आबादी, जाट हैं। हरियाणा में उनकी आबादी 27 फीसदी के करीब है, जबकि पंजाब में 25 फीसदी, राजस्थान में 14 फीसदी, दिल्ली-पश्चिमी उप्र में 10-10 फीसदी के करीब आबादी है। जाटों ने दिल्ली में महापंचायत भी बुलाई है। यह महत्त्वपूर्ण राजनीतिक और चुनावी मुद्दा बन सकता है। दरअसल संसद के भीतर संवैधानिक और राजनीतिक टकराव के समीकरण गहराते जा रहे हैं।


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