बेतुकी सुरक्षा परिषद
दुनिया की सबसे बड़ी आबादी, 142 करोड़ से अधिक, वाला देश भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी, वीटोधारक सदस्य नहीं है, यह बहुत बेतुकी बात है। ऐसी टिप्पणी कई देशों के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और राजनयिक कर चुके हैं, लेकिन इस बार दुनिया के सबसे अमीर उद्योगपति एलन मस्क ने यह टिप्पणी की है, तो उसे गंभीरता से लिया गया है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया इस पर महत्वपूर्ण टिप्पणियां कर रहा है और भारत की दावेदारी का पक्षधर है। एलन मस्क का सुरक्षा परिषद से कोई प्रत्यक्ष सरोकार नहीं है, लेकिन मस्क मौजूदा दुनिया के एक बेहद प्रभावशाली नागरिक हैं। संयुक्त राष्ट्र के गठन के करीब 80 साल बाद मस्क भी चिंतन कर रहे हैं कि विश्व के यथार्थ के संदर्भ में सुरक्षा परिषद सरीखी संस्थाओं का क्या योगदान और प्रासंगिकता है? भारत सिर्फ सबसे अधिक आबादी वाला देश नहीं है, बल्कि विश्व के औसतन 5 लोगों में एक भारतीय है, भारत की अर्थव्यवस्था विश्व में तीसरे स्थान की तरफ बढ़ रही है और वह शीघ्र ही 5 ट्रिलियन डॉलर का राष्ट्र होगा, भारत उत्पादन और निर्माण में सबसे बड़ा बाजार है, क्या ऐसे देश को नजरअंदाज किया जा सकता है? संयुक्त राष्ट्र के गठन के बाद सुरक्षा परिषद को जब भी बनाया गया होगा, तभी से अमरीका, चीन, रूस, ब्रिटेन और फ्रांस ही उसके स्थायी और वीटोधारक सदस्य-देश हैं और पांचों ही आपस में गिट्टियां खेलते रहते हैं। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा था कि वे पांच स्वयंभू चौधरी हैं, जो एक साथ बैठ कर पूरी दुनिया के फैसले लेते रहते हैं। रूस की ‘अवैधता’ पर तो सवाल किए जाते रहे हैं।
दरअसल सोवियत संघ स्थायी सदस्य था। उसके विघटन के बाद रूस को सदस्यता स्थानांतरित कर दी गई, क्योंकि रूस सोवियत संघ का सबसे बड़ा देश था। सुरक्षा परिषद का यह कैसा संविधान और नियम है? बहरहाल पांच में से तीन की आर्थिक, व्यापारिक, संगठनात्मक ताकत से ज्यादा भारत आज के बहुध्रुवीय विश्व में प्रभावशाली है। संयुक्त राष्ट्र अथवा सुरक्षा परिषद रूस-यूक्रेन और इजरायल-हमास युद्धों में हस्तक्षेप कर शांति-स्थापना में नाकाम रही है। इजरायल-हमास युद्ध एक स्थायी समाधान, युद्धविराम की स्थिति तक पहुंचने वाला था, लेकिन अमरीका ने ‘वीटो’ के जरिए उस प्रस्ताव को ही खारिज करवा दिया। चीन भारतीय हितों के लिए अवरोधक बना रहा है और ‘वीटो’ के जरिए पाकिस्तान के घोषित आतंकियों और आतंकी संगठनों को बचाता रहा है। चीन अमरीका-विरोधी और रूस-समर्थक है, लिहाजा यूक्रेन युद्ध को विराम देने वाले प्रस्ताव नाकाम होते रहे हैं। चीन ही भारत की स्थायी सदस्यता का विरोध करता रहा है।
भारत ने जी-20 देशों के शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता की थी। भारत हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र के ‘क्वाड’ संगठन का सदस्य है, जिसमें अमरीका, जापान, ऑस्टे्रलिया भी शामिल हैं। करीब 80 साल के बाद संयुक्त राष्ट्र के ढांचे और कार्यप्रणाली में सुधार और बदलाव किए जाने चाहिए, यह प्रस्ताव 2015 में संयुक्त राष्ट्र की ही 193 सदस्यीय आम सभा में पारित किया जा चुका है, लेकिन फिर भी यथास्थिति ही है। भारत ने अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री काल में इस सदस्यता के लिए कई अंतरराष्ट्रीय कोशिशें कीं। ये प्रयास डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी जारी रहे। गौरतलब है कि जब 2008 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन भारत आए थे, तब उन्होंने साझा प्रेस ब्रीफिंग में कहा था कि यदि भारत सुरक्षा परिषद की मेज पर नहीं है, तो दुनिया की बहुत सी समस्याएं कभी नहीं सुलझेंगी। अब प्रधानमंत्री मोदी ने यह मुद्दा विश्व के कई मंचों पर उठाया है और कई राष्ट्राध्यक्षों से इसकी वकालत कराई है। न तो संयुक्त राष्ट्र के ढांचे में सुधारों की शुरुआत हो पा रही है और न ही सुरक्षा परिषद खुलासा कर रही है कि आखिर कारण क्या हैं?
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