छिलकों की छाबड़ी : शव संवाद-26

By: Jan 15th, 2024 12:03 am

उसे बार-बार अपनी जन्मपत्री पर शक होता रहा है, लेकिन अम्मा है कि मानती नहीं। बचपन से इस जन्मपत्री के कारण उसे हमेशा झाड़ पर बैठना पड़ा। कई बार लुढक़ा, स्कूल में चमकने के चक्कर में परीक्षा परिणाम गोता खाते रहे, लेकिन अम्मा को कुल के पुरोहित पर खासा विश्वास रहा। खुद तो पता नहीं कितने पढ़े थे, लेकिन उसे हर तरह के पाठ्यक्रम में घुसाते रहे। वह इस जन्मपत्री के कारण कभी डाक्टरी, कभी इंजीनियरिंग और कभी प्रशासनिक अधिकारी बनने के सपने देखता रहा, लेकिन अम्मा के मरने के बाद वह ऐसा बुद्धिजीवी बन गया, जो दफ्तरों में घिसटता रहा। वैसे जन्म पत्री हर किसी को कुछ भी बनाने की वचनबद्धता प्रदान करती है, लेकिन आज तक इसने खुलकर किसी को बुद्धिजीवी होने का तमगा नहीं दिया। जबसे उसने जन्म पत्री पर विश्वास करना छोड़ दिया, उसकी बुद्धि चलने लगी और वह खुद को सामान्य मानने लगा, वरना जीवन का यह दस्तावेज हम लोगों को असामान्य बने रहने की आशा से भरा रखता है। बुद्धिजीवी अब देश की आशा में जन्म पत्री की भूमिका देखता है। उसने जन्म पत्री के दम पर पढ़े-लिखों तक को यह विश्वास करते देखा कि वे एक दिन एमएलए या मंत्री बन जाएंगे। उधर हर नेता बगल में जन्म पत्री छुपा कर प्रयास कर रहा है। हमारे एमएलए यूं तो मुख्यमंत्री से सीनियर हैं, लेकिन जन्म पत्री उन्हें मंत्री भी बनने नहीं दे रही। जिसे जन्म पत्री से पता लगा है कि मुफ्त में जमीन जायदाद का लाभ मिलेगा, आजकल अदालत में वकीलों को मोटी फीस दे रहा है। बुद्धिजीवी की समझ में आज तक यह नहीं आया कि जन्म पत्री पहले मरती है या पहले व्यक्ति मरता है, फिर लिखा हुआ भी मर जाता है। उसने ऐसी जन्म पत्री खोजनी शुरू की जो अपनी मौत का हवाला देती हो, लेकिन लगभग मरे हुए लोग भी यह मानने को तैयार नहीं थे कि उनके सामने उन्हीं की जन्म पत्री मर सकती है। थक-हार कर बुद्धिजीवी ने मरी हुई अम्मा का संदूक खोल मारा। वहां खानदान की कई जन्म पत्रियां थीं।

परिवार के कई सदस्यों के मरने के बावजूद जन्म पत्रियां एकदम ताजा थीं। किसी तरह बुद्धिजीवी ने अपनी जन्म पत्री निकाली तथा मन में तय किया कि वह इसकी इसी हालत में शव यात्रा निकालेगा। जन्म पत्री में अपना उल्लेख तो बुद्धिजीवी को समझ आ रहा था, लेकिन जन्म पत्री अपनी आयु के बारे में खामोश थी। बुद्धिजीवी ने सरकारी दफ्तरों में काम करते हुए सीख रखा था कि किस तरह जीवित फाइलों को मृत घोषित किया जाता है। सरकारी दफ्तरों के करंट मारते बिजली के मीटर मरे हुए घोषित हो जाते हैं। हर साल दफ्तर के कई हिस्से मार दिए जाते। नई सरकार के आते ही पुरानी सरकार के दौर का सब कुछ मरा हुआ मान लिया जाता है। ऐसे में बुद्धिजीवी को लगा कि उसके लिए जन्म पत्री को मरा हुआ साबित करना आसान है। उसने अपनी जन्म पत्री को कफन में ढांपकर उसे शव घोषित कर दिया। वह जन्म पत्री को कंधा दे रहा था ताकि समाज को पता चले कि खुद मरने से पहले किसी ने जन्म पत्री को मरा हुआ साबित किया है। शमशानघाट में मरे हुए लोगों की पहले ही जन्म पत्रियां गिरी हुई थीं। एक ज्योतिषी उन जन्म पत्रियों में अपना ज्ञान खोज रहा था। तभी उसकी निगाह बुद्धिजीवी पर पड़ी तो उसने जन्म पत्री छीन ली। छीना झपटी में जन्म पत्री टुकड़ों में फट चुकी थी। गलती से ज्योतिषी ने उसकी जगह नेता की जन्म पत्री पढक़र कहा कि प्राणी बिना कुछ किए देश का नाम करेगा। बुद्धिजीवी को पहली बार पता चला गया कि मरे हुए राजनेता की जन्म पत्री भी कभी जाया नहीं होती, बल्कि मर कर भी सियासत करती है। मरे हुए नेता की जन्म पत्री के कारण बुद्धिजीवी को देश का अहम किरदार माना गया, जबकि उसकी अपनी फटी हुई जन्म पत्री नेता के शव के साथ जल रही थी।                      -क्रमश:

निर्मल असो

स्वतंत्र लेखक


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