मनोरोगी बनाती अंतरंग संबंधों की बदलती परिभाषा

By: Jan 6th, 2024 12:15 am

जे.पी. शर्मा, मनोवैज्ञानिक
नीलकंठ, मेन बाजार ऊना मो. 9816168952

पहले समाज में मनोरोगी मरीजों की संख्या बहुत कम होती थी। केवल अपरिहार्य कारणों मस्तिष्क पर लगी चोट एवं अन्य ऐसे ही कारणों से प्रभावित चंद मनोरोगी ही चिकित्साधीन देखे जाते थे, जिसके विपरीत वर्तमान में साधारण से लेकर गंभीर मनोरोगी मरीजों की संख्या में असाधारण बढ़ोतरी हुई है। जिसके मुख्य कारण है अंतरंग संबंधों की बदलती परिभाषा, संवेदनशीलता एवं मानसिकता जिसने व्यक्ति को सामुहिक तथाकथित सभ्य समाज के अपनो से अलग कर एकाकी जीवन जीने को बाध्य कर दिया है। जहां उसे खुशियों में शरीक करने व गमगीन हालतों में उदासी बांटने को कोई दिखाई नहीं देता, पूरा जीवन असहाय अवस्था में जीते-जीते अंतत: असमय दुनिया को अलविदा कहना जैसे उसकी नियति बन गई है। इन बदली परिस्थितियों को समझने हेतु पहले के समाज व जीवनशैली का आज की जीवनशैली एंव सामाजिक ढांचे के साथ गहन तुलनात्मक अध्ययन आवश्यक है ताकि कारण स्पष्ट हो सके। जिनको दूर करके ही इस बढ़ती आपदा से बचाव के प्रयत्न किए जा सकते हैं।

विडंबना यह है कि आज का समाज तथाकथित प्रगतिशील व विकसित कहा जा रहा है, परंतु परिणाम स्वरूप इनसान को तनाव, निराशा, कुंठा व अवसाद ही हासिल हुआ है, जिसका सामना करने की बजाय पलायन प्रवृत्ति ही बढ़ रही है, जिससे मनोरोग पैदा हो रहे हैं। बेशक विज्ञान, स्पेसविज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, एवं अन्य विधाओं के पाठ्यक्रमों में प्रगति हुई है, परंतु इनसान के भौतिक सुख सुविधाओं से ज्यादा उसके मानसिक तनाव में बढ़ोतरी हुई है। बाहरी हंसी के आवरण के मुखौटे में छिपी व्यथा, चिंता, असहजता का भी स्पष्ट एहसास व आभास होता है। अब विभिन्न रिश्तों के बदलते अंतर की व्याख्या से स्पष्ट करने का प्रयास करते हैं। सर्वप्रथम देखा जा सकता है कि बड़े बुजुर्गों के स्नेह व आशीर्वाद से अगली पीढ़ी वंचित होती जा रही है, क्योंकि अपनी संतान ही बच्चों के समक्ष बुजुर्गों का अपमान, दुगर्ति कर उन्हें जबरन वृद्धाश्रमों में धकेल देते हैं, बुजुर्गों द्वारा कठिनाई व परिश्रम से पालने के एहसास को नजरअंदाज कर उन्हें अनुभवी सम्मानजनक सियाने की बजाय मात्र बोझ ही समझा जाने लगा है, पोते-पोतियों को बहानों-बहानों से उनसे दूर करने का भरसक प्रयत्न कर मानसिक यंत्रणा पहुंचाई जा रही है। फलस्वरूप माता पिता असमय मृत्यु को प्राप्त होने से पहले असहनीय नारकीय वेदना से गुजरते हैं। सहजता पूर्वक जीवन व्यतीत करना किसी शारीरिक व मनोरोग को पास भी नहीं भटकने देता। अत: यही जीवन शैली अपनाएं।


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