संगीतमय पर्यटन के लिए

By: Jan 2nd, 2024 12:05 am

वहां पंजाबी गीत-संगीत का तडक़ा, निजी तौर पर डा. सतिंद्र सरताज का कार्यक्रम और हिमाचली प्रशंसकों के उत्साह की स्वर लहरियों में पर्यटन की सारी संभावनाएं क्षमता में बदल रही थीं। धर्मशाला के त्रिगर्त ऑडिटोरियम में अगर वर्षांत पर्यटन को संगीत की महफिल ने लूट लिया, तो यह जश्न भाषा-संस्कृति व पर्यटन विभाग की अमानत भी तो हो सकता था या हमें वर्ष के अलग-अलग महोत्सवों में सैलानियों के कार्यक्रम जोड़ लेने चाहिएं। पर्यटक अपने कार्यक्रम बनाते हुए अगर पहले मौसम, बर्फ, साहसिक खेल तलाश रहा था, तो अब रोमांच, मनोरंजन, महफिल और देशी फूड का जायका खोज रहा है। उसके लिए अब हर मौसम और हिमाचल का हर भाग डेस्टिनेशन हो सकता है, बशर्ते वहां रोमांच, महफिल और भरपूर मनोरंजन हो। धर्मशाला का ऑडिटोरियम एक कलाकार के कंसर्ट से अगर डेस्टिनेशन बन सकता है, तो यह खूबी हर शहर, हर पर्यटक और धार्मिक स्थल में तराशी जा सकती है। कुछ ही दिनों में लोहड़ी और मकर संक्रांति पर्व की तैयारियों में तत्तापानी और गरली-परागपुर को कुछ हटकर महफिल, परंपरा और रोमांच की बस्ती के रूप में विज्ञापित किया जा सकता है। गरली-परागपुर के पारंपरिक लोहड़ी उत्सव के प्रांगण में महफिल सजाई जाए तो धरोहर गांव की परिपाटी में पर्यटन गांव की शिनाख्त हो जाएगी। इसी तरह तत्तापानी का खिचड़ी उत्सव मकर संक्रांति के आलम में लोक कला उत्सव में बदल सकता है।

कांगड़ा-बैजनाथ की घृत मंडल परंपरा के उत्सव को नव वर्ष के आगमन की तहरीर में बदल सकते हैं, जहां मंदिर प्रांगण में लोक संगीत से भजन-भेंट की परंपरा पुष्ट होगी तथा स्थानीय कलाकारों को प्रश्रय मिलेगा। अगर हिमाचली टिकट खरीदकर पंजाबी कलाकार का जादू सिर पर चढ़ा सकते हैं, तो इस काबिलीयत में हिमाचली कलाकार की मान्यता बढ़ाने के लिए कला, भाषा एवं संस्कृति विभाग तथा अकादमी को प्रयास करना चाहिए। मंडी के सांस्कृतिक महत्च में पराफार्मिंग आट्र्स सेंटर बनाने की आवश्यकता है, तो प्रदेश के प्रमुख आधा दर्जन मंदिरों के आश्रय-प्रश्रय में सुविधा संपन्न कला केंद्र विकसित करने होंगे, जहां अत्याधुनिक सभागारों के निर्माण से हर दिन लोक गीत-संगीत व शास्त्रीय संगीत की महफिलें सजाई जा सकती हैं। इससे पहले मंदिर आय की फिजूलखर्ची रोककर इसे ऐसी अधोसंरचना में लगाना होगा, जहां पर्यटन आर्थिकी का सृजन हो सके। मंदिरों में हिमाचल आने वाले करीब अस्सी फीसदी सैलानी अब आस्था में भी मनोरंजन की गलियां और महफिल की परिक्रमा करना चाहते हैं। ऐसे में धार्मिक नगरियों का विस्तार और विकास टीसीपी के तहत कुछ इस प्रकार हो कि आठ से दस किलोमीटर के दायरे तक के क्षेत्र में पर्यटकों की जरूरतें और उनके रुकने के कारण परवान चढ़ सकें। हिमाचल के सूचना एवं जन संपर्क, भाषा एवं संस्कृति तथा पर्यटन विभागों को समाहित करके एक ही विभाग बना दें, तो लोक कला एवं संस्कृति के उत्थान के साथ-साथ पर्यटन, गतिविधियों का वार्षिक कैलेंडर भी स्थायी रूप से विविध आकर्षणों के साथ-साथ समारोहों, उत्सवों, गीत-संगीत सम्मेलनों के अलावा वार्षिक मेलों में पर्यटकों को आमंत्रित कर पाएंगे। प्रदेश के हर शहर को इस दृष्टि से ऐसे मनोरंजन पैदा करने होंगे तथा साल में एक बार सिटी फेस्टिवल, फूड मेले, व्यापारिक मेले तथा लोक संस्कृति पर आधारित कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए।

प्रदेश में पर्यटन की बदलती प्रवृत्ति को देखते हुए अगर सुजानपुर के मैदान पर पतंग उत्सव, मसरूर व कांगड़ा किला परिसर में संस्कृति-संगीत उत्सव, शिमला के माल व धर्मशाला के राज्य स्तरीय शहीद स्मारक में लाइट एंड शो कार्यक्रम आयोजित किए जाएं तो पर्यटकों की यात्रा के पड़ाव बढ़ेंगे। मंडी में व्यास आरती को एक अधोसंरचना के साथ मुकम्मल किया जा सकता है, तो नादौन व भोटा के बीच साइंस सिटी की स्थापना से ज्ञान से जुड़ा पर्यटन तथा छात्र गतिविधियों का मक्का स्थापित किया जा सकता है। इसी के साथ गरली-परागपुर के धरोहर मूल्य को आसानी से फिल्म सिटी में बदल कर स्थानीय कलाकारों को रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे। अंत में धर्मशाला में पंजाबी गीत-संगीत की सफलता से समाज की क्षमता टटोली जा सकती है। इसी क्षमता को हिमाचली कलाकार से जोडऩे की मेहनत कला, भाषा एवं संस्कृति विभाग को करनी होगी।


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