अव्यवस्था समाधान के बगैर टिकाऊ विकास नहीं

By: Jan 3rd, 2024 12:06 am

जब तक अव्यवस्थाओं का समाधान नहीं होता, तब तक टिकाऊ विकास संभव नहीं…

भारत सरकार इस लक्ष्य को लेकर चल रही है कि भारत विश्व की तीन बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में होगा तथा जो रोडमैप अगले 25 वर्षों (2047 तक) का बनाया है, इसमें भारत पांच ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था तथा 10 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था होगी। इसको पूरा करना शायद भारत के लिए मुश्किल नहीं होगा, अगर परिस्थितियां अनुकूल रही। भारत ने 2023-24 वित्त वर्ष में विकास दर का लक्ष्य 7 प्रतिशत रखा है। भारत की अर्थव्यवस्था जो कोरोना काल में संकुचित थी, उसमें फिर से उछाल आया है, परंतु ग्लोबल अर्थव्यवस्थाएं अभी भी विपरीत परिस्थितियों में हैं। भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था का 2026 में, सकल घरेलू उत्पादन का 20 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी जो वर्तमान में 11 प्रतिशत है। डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के तहत 2015 से हमारी अर्थव्यवस्थाएं गुणवत्ता तथा मात्रात्मक दोनों तरह से रूपांतरित हुई हैं। पहले हम तकनीकी ज्ञान के उपभोक्ता थे, परंतु अब हम उपकरणों के उत्पादक हैं तथा बहुत से उत्पादों को अब भारत आयात की जगह निर्यात करता है।

आर्थिक विकास की ओर तीव्र गति से उन्मुख हो रही भारतीय अर्थव्यवस्था में इस समय सामाजिक असंतुलन जैसी स्थिति है। सामाजिक संस्थाएं अपने उद्देश्यों को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं। सामाजिक संस्थाओं द्वारा बनाए गए मूल्यों एवं मानदंडों के हिसाब से समाज नहीं चल रहा और यह अपने हिसाब से चलने लगा है, जिससे सामाजिक असंतुलन की स्थिति पैदा हो गई है तथा सामाजिक बुराइयां समाज में फैल गई हैं। इसका प्रभाव आर्थिक विकास पर भी पड़ रहा है जिससे विकास लंबी अवधि का आनंद नहीं ले पता। अगर समय पर सामाजिक बुराइयों का समाधान नहीं किया गया तो ये अपनी जड़ें समाज में पक्का कर लेंगी। भारत में बहुत-सी सामाजिक बुराइयां हैं, जैसे जनसंख्या में बढ़ोतरी, निर्धनता, बेरोजगारी, असमानता, अशिक्षा, गरीबी, आतंकवाद, घुसपैठ, बाल श्रमिक, श्रमिक असंतोष, छात्र असंतोष, भ्रष्टाचार, नशाखोरी, जानलेवा बीमारियां, दहेज प्रथा, बाल विवाह, भ्रूण बालिका हत्या, विवाह विच्छेद की समस्या, बाल अपराध, मद्यपान, जातिवाद, अस्पृश्यता, काला धन, वेश्यावृत्ति, मानसिक रोग, प्रदूषण, लिंग भेद, क्षेत्रवाद व महिलाओं के खिलाफ हिंसा आदि। परंतु डिजिटल धोखा, साइबर क्राइम, भ्रष्टाचार, काला धन, बेरोजगारी, बलात्कार, दवाइयों तथा खानपान की चीजों में मिलावट, हिंसा, नशाखोरी तथा आतंकवाद आदि ने वर्तमान समय में समाज में अपनी जड़ें पक्की कर ली हैं और इन पर ध्यान देने की अत्यंत आवश्यकता है, नहीं तो आर्थिक विकास लंबे समय तक नहीं टिक पाएगा। जैसे कि काले धन की समस्या है, जो उदारीकरण के बाद एक गंभीर समस्या बन गई है तथा एक समानांतर अर्थव्यवस्था के रूप में काम कर रही है। काले धन को आमतौर पर धनी व्यक्तियों द्वारा रखी गई बड़ी रकम को संदर्भित करता है। यह आमतौर पर करों का भुगतान न करने से, अवैध कार्य, तस्करी, यौन अपराध, गबन, भ्रष्टाचार, अवैध कानून, मादक पदार्थों की तस्करी, गैर कानूनी गतिविधियां, खातों का हेरफेर, आभूषणों में लेनदेन, भूमि और अचल संपत्ति के लेन-देन, टैक्स हेवन आदि से उत्पन्न होता है।

यह रिपोर्ट की गई अर्थव्यवस्था के साथ एक समानांतर अर्थव्यवस्था है। इससे अर्थव्यवस्था के आंकड़े सही नहीं आते और गलत तस्वीर प्रस्तुत होती है। सरकार को राजस्व का नुकसान होता है। अमीर, अमीर और गरीब, गरीब होता है। काले धन ने सामाजिक तथा आर्थिक संतुलन को बिगाड़ दिया है। इसने मुद्रास्फीति, कृत्रिम कमी, उत्पादन, वितरण एवं उपभोग, रोजगार एवं बेरोजगारी, मांग और आपूर्ति को प्रभावित किया है। सामाजिक सिद्धांत के रूप में ईमानदारी, कड़ी मेहनत, अर्थव्यवस्था से सादगी लुप्त हो गई है। दूसरी बुराई है भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद, जो राजनीतिक क्षेत्र, प्रशासन, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक क्षेत्र में अपनी जड़ों को पक्का गड़ाए हुए है। एक और सामाजिक बुराई जिसने अपनी जड़ें समाज में पक्की कर ली हैं वह है मादक पदार्थों की तस्करी, जिसमें युवा और कई तरह के लोग भी संलिप्त हैं तथा इसका युवाओं द्वारा उपभोग न रोका गया तो देश की युवा शक्ति का अभाव सैन्य कार्यों तथा अन्य क्षेत्रों में सहन करना पड़ेगा तथा बहुत से परिवारों को यह सामाजिक तथा आर्थिक रूप से कमजोर कर देगा। बलात्कार की समस्या एवं औरतों के प्रति अपराधों ने तो इतना भयंकर रूप धारण कर लिया है कि पिता अपनी नाबालिग बेटियों से बलात्कार के दोष में दोषी पाए जा रहे हैं, स्कूल के शिक्षक नाबालिग लड़कियों से बलात्कार तथा छेड़छाड़ के दोषी पाए जा रहे हैं, ससुर अपनी बहुओं को बलात्कार का शिकार बना रहे हैं, रिक्शा चालक एवं वाहन चालक भी बलात्कार की घटनाएं आम तौर पर कर रहे हैं, राजनेता अपराध, हत्या, बलात्कार, तस्करी, भ्रष्टाचार और काला धन के मामलों में घिरे हैं। जुलाई 2022 में 5097 केस एमपी तथा एमएलए के खिलाफ पेंडिंग थे। बलात्कार करने के बाद साक्ष्यों को मिटाने के लिए हत्या कर दी जाती है। ज्यादातर औरतें अपनी पहचान वाले लोगों से ही बलात्कार की शिकार होती हैं, जिनमें ज्यादातर अपने रिश्तेदार ही हैं। कड़े कानूनों के बावजूद रेप की वारदातें दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं और औरतों का बाहर निकलना मुश्किल हो गया है।

अगर यही दशा रही तो कामकाजी महिलाओं का काम पर जाना मुश्किल हो जाएगा तथा आर्थिक विकास बाधित होगा। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार औरतों के साथ अपराध 2022 में चार प्रतिशत बढ़ा है 2021 की तुलना में। रेप 7.1 प्रतिशत, लज्जा भंग करने में 18.7 प्रतिशत, पति तथा रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता 31.4 प्रतिशत, अपहरण 19. 2 प्रतिशत बढ़े, जबकि दहेज के केस 13479 पंजीकृत हुए। औरतों के साथ अपराध में, जन्म से पूर्व लिंग निर्धारण, कन्या भ्रूण हत्या, बाल विवाह, जबरदस्ती विवाह, औरतों की तस्करी, सडक़ पर यौन उत्पीडऩ तथा काम के स्थान पर उत्पीडऩ, सम्मान के नाम पर किया गया अपराध, तेजाब हमला, रेप, दहेज उत्पीडऩ, घरेलू हिंसा आदि के केस पंजीकृत होते हैं। समाज की मानसिकता को बदलने की आवश्यकता है। जो कठिनाइयां एक औरत न्याय प्राप्त करने के लिए सहन करती है, उनको दूर करने की आवश्यकता है। अलग महिला थाने व न्यायायल होने चाहिएं। जब तक सामाजिक अव्यवस्थाओं का समाधान नहीं होता, तब तक टिकाऊ विकास संभव नहीं है। अत: सामाजिक समस्याओं का जल्द हल ढूंढना होगा।

सत्यपाल वशिष्ठ

स्वतंत्र लेखक


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