ओम् ऐं ह्रीं क्लीं सोशल मीडियायै बीच्चे

By: Jan 3rd, 2024 12:06 am

बंधु! आज ज्ञान का सबसे सशक्त माध्यम कोई है तो बस ये सोशल मीडिया है। किताबें पुस्तकालयों की अलमारियों में पड़ी धूल फांक रही हैं। फेसबुक, व्हाट्सएप दिन रात बांच रही हैं। उन्हें कोई छूना तो दूर, देखना भी नहीं चाहता। गए वे दिन जब कहा जाता था कि गुरु बिन ज्ञान नहीं। गए वे दिन जब कहा जाता था- गुरुब्र्रह्मा, गुरुर्विष्णु:, गुरुर्देवो महेश्वर:! गुरुरेव परंब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नम:! आज तो यत्र तत्र सर्वत्र यही गूंज रहा है- फेसबुकब्र्रह्मा, व्हाट्सएपर्विष्णु:, इंस्टाग्रामर्देवो महेश्वर:! मैसेंजर परंब्रह्म, तस्मै श्री सोशल मीडिया नम:! आज सोशल मीडिया बिन ज्ञान नहीं। जो सोशल मीडिया पर नहीं, वह इस लोक में नहीं। आज गुरु का गुरु भी सोशल मीडिया के आगे नतमस्तक हुआ जा रहा है। सोशल मीडिया पर पढ़ कर अपने शिष्यों को पढ़ा रहा है। सोशल मीडिया के चरणों की धूल का अपने मस्तक पर तिलक लगा रहा है। क्लास में कुर्सी पर पसरा सोशल मीडिया के श्री चरणों में बैठा अमर ज्ञान पा रहा है। आज गुरु आत्मा का परमात्मा से साक्षात्कार नहीं करवाता, फेसबुक, व्हाट्सएप आत्मा का परमात्मा से साक्षात्कार करवा रहे हैं। गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय! बलिहारी सोशल मीडिया आपने, जिन गोविंद दियो बताय। जिस जिसने इस ज्ञान फेकटेक संस्थान की मेंबरशिप ली है वे सब ज्ञान के सागर में कमर में सोशल मीडिया रूपी टायर की ट्यूब बांधे मजे से भवसागर पार हो रहे हैं। वानप्रस्थी सोशल मीडिया के मंच पर घुटने पकड़े विराज पंद्रह मिनट में इरेक्शन बढ़ाने का बाबा जी से अचूक मंत्र पा रहा है तो अनपढ़ जागरूक नागरिक सोसाइटी को जोडऩे के लिए सोशल मीडिया पर अनाप शनाप तर्क दे सोसाइटी में डिफेक्शन करवा रहा है। बिन दिमाग वाले के पास भी सोशल मीडिया की अनुकंपा से ज्ञान की कोई कमी नहीं। सोशल मीडिया की पैदावार महापंडितों से बड़े बड़े पंडित शास्त्रार्थ करने से हिचकिचा रहे हैं। वे अपने से कुश्ती करने को उन्हें अपने सोशल मीडिया के अखाड़े में बुला रहे हैं। तो वे सिर पर पांव रख उधर भागे जा रहे हैं।

सोशल मीडिया कुश्ती का धींगामुश्ती का अंतहीन अखाड़ा है। जो बकना बको! जो लिखना लिखो। तर्क दो कुतर्क दो। भक्ति की अविरल धारा बहाओ या अंधभक्ति की। जो इस संस्थान के एक्टिस्विस्ट छात्र हैं उन्हें कोई किताब पढऩे गुनने की जरूरत नहीं। उन्हें किसी और स्कूल या विश्वविद्यालय में जाकर अपना कीमती समय बर्बाद करने की जरूरत नहीं। उन्हें किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से नकली डिग्री लेने की जरूरत नहीं। वे जन्मजात डिग्रीधारी हंै। वे अप्रत्यक्ष गृहस्थ होते भी प्रत्यक्ष परम ब्रह्मचारी हैं। इनकी उनकी तरह जबसे वे भी इस ओपन लुच्च अध्ययन संस्थान के आठ पहरी फेलो हुए हैं, उन्होंने अपने अकाट्य कुतर्कों से बड़ों बड़ों को नाकों चने चबवाने शुरू कर दिए हैं। जो मन में आता है सोशल मीडिया पर उछाल देते हैं। हर जायज विचार को भी गजब का उबाल देते हैं। प्राचीन इतिहास से लेकर आधुनिक इतिहास तक की उनकी फेकबुकिया मान्यताएं उनके फालोअर्स का निरंतर मार्ग दर्शन कर रही हैं। कल फिर उन्होंने अपने लंबे चौड़े फेसबुकिया शोधपत्र के माध्यम से फेसबुक के कपाल पर यह स्थापना की कि कल तक जो हम यह मानते रहे कि बंदर हमारे पूर्वज हैं, सरकार गलत है। वे इसे अपने फेसबुकिया शोध के माध्यम से सिरे से खारिज कर यह नई स्थापना करते हैं कि बंदर हमारे पूर्वज नहीं थे। असल में हम बंदरों के पूर्वज हैं। उन्होंने अपने ताजे शोध को ज्यों ही बिना किसी की परवाह किए फेसबुक पर डाला कि बड़े बड़े इतिहासकार उनके इतिहास विषयक नए शोध को पढ़ अस्पतालों में भर्ती होने लगे। फेसबुकिया जीव जगत में हाहाकार मच गया। फेसबुक के इस छोर से लेकर उस छोर तक एक नई बहस छिड़ गई। वैसे आज अपने में बुरी तरह व्यस्त चलने के बावजूद कोई हमसे किसी भी गैर जरूरी विषय पर कितनी ही बहस करवा ले। गैर जरूरी विषयों पर बहस करने को हमारे पास समय की कोई कमी नहीं। कमी है तो बस, अपनों के लिए समय की। कमी है तो बस अपनों के दु:ख दर्द में शामिल होने के समय की। जबसे उक्त फेसबुकिया इतिहासकार ने फेसबुक पर अपना यह शोध आलेख प्रस्तुत किया है, तबसे हर उम्र के बंदर बहुत घबराए हुए हैं।

अशोक गौतम

ashokgautam001@Ugmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App