पौष पूर्णिमा : तीर्थ में स्नान का विशेष लाभ

By: Jan 20th, 2024 12:30 am

पौष पूर्णिमा विक्रमी संवत के दसवें माह पौष के शुक्ल पक्ष की 15वीं तिथि है। ऐसी मान्यता है कि पौष मास के दौरान जो लोग पूरे महीने भगवान का ध्यान कर आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करते हैं, उसकी पूर्णता पौष पूर्णिमा के स्नान से हो जाती है। इस दिन काशी, प्रयाग और हरिद्वार में स्नान का विशेष महत्त्व होता है। जैन धर्मावलंबी इस दिन ‘शाकंभरी जयंती’ मनाते हैं तो वहीं, छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में रहने वाली जनजातियां पौष पूर्णिमा के दिन बड़े ही धूमधाम से ‘छेरता’ पर्व मनाती हैं…

महत्त्व

ज्योतिष तथा जानकारों का कहना है कि पौष महीने में सूर्य देव ग्यारह हजार रश्मियों के साथ तप करके सर्दी से राहत देते हैं। पौष के महीने में सूर्य देव की विशेष पूजा, उपासना से मनुष्य जीवन-मरण के चक्कर से मुक्ति पा सकता है। पौष पूर्णिमा के दिन गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियों में स्नान, दान और सूर्य को अघ्र्य देने का विशेष महत्त्व है। माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से तन, मन और आत्मा तीनों नए हो जाते हैं। इसीलिए इस दिन संगम के तट पर स्नान के लिए लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। पौष का महीना सूर्य देव का महीना माना जाता है। पूर्णिमा की तिथि चंद्रमा के अनुसार होती है। सूर्य-चन्द्रमा का यह अद्भुत संयोग केवल पौष पूर्णिमा को ही मिलता है। इस दिन सूर्य और चन्द्रमा दोनों की उपासना से पूरी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। ग्रहों की बाधा शांत होती है और मोक्ष का वरदान भी मिलता है।

पूजा और स्नान

पौष पूर्णिमा को सुबह स्नान के पहले संकल्प लेना चाहिए। पहले जल को सिर पर लगाकर प्रणाम करें, फिर स्नान करें। साफ कपड़े धारण करने के बाद सूर्य को अघ्र्य देना चाहिए। फिर मंत्र जाप करके कुछ दान अवश्य करना चाहिए। इस दिन व्रत रखना और भी अच्छा रहता है।

मंत्र जाप

पौष पूर्णिमा पर स्नान के बाद कुछ विशेष मंत्रों के जाप से कष्टों से मुक्ति पाई जा सकती है। इसके लिए निम्न मंत्रों का जाप किया जा सकता है :

ऊँ आदित्याय नम:
ऊँ सोम सोमाय नम:
ऊँ नमो नीलकंठाय
ऊँ नमो नारायणाय

पुराण उल्लेख

पुराणों के अनुसार पौष मास की पूर्णिमा से माघ मास की पूर्णिमा तक माघ मास में पवित्र नदी नर्मदा, गंगा, यमुना, सरस्वती, कावेरी सहित अन्य जीवनदायिनी नदियों में स्नान करने से मनुष्य को समस्त पापों से छुटकारा मिलता है और मोक्ष का मार्ग खुल जाता है। महाभारत के एक दृष्टांत में उल्लेख करते हुए बताया गया है कि माघ माह के दिनों में अनेक तीर्थों का समागम होता है। पद्मपुराण में बताया गया है कि अन्य मास में जप, तप और दान से भगवान विष्णु उतने प्रसन्न नहीं होते, जितने कि माघ मास में नदी तथा तीर्थस्थलों पर स्नान करने से होते हैं। यही वजह है कि प्राचीन पुराणों में भगवान नारायण को पाने का सुगम मार्ग माघ मास के पुण्य स्नान को बतलाया गया है। मत्स्य पुराण के एक कथन के अनुसार माघ मास की पूर्णिमा में जो व्यक्ति ब्राह्मण को ‘ब्रह्मावैवर्तपुराण’ का दान करता है, उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। सदियों से माघ माह की विशेषता को लेकर भारतवर्ष में नर्मदा, गंगा, यमुना, सरस्वती, कावेरी सहित कई पवित्र नदियों के तट पर माघ मेला भी लगता है।

निर्णय सिंधु में कहा गया है कि माघ मास के दौरान मनुष्य को कम से कम एक बार पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। भले पूरे माह स्नान के योग न बन सकें, लेकिन एक दिन के स्नान से श्रद्धालु स्वर्ग लोक का उत्तराधिकारी बन सकता है। इस बात का उदाहरण इस श्लोक से मिलता है : ‘मासपर्यन्त स्नानासम्भवे तु त्रयहमेकाहं वा स्नायात्॥’ अर्थात ‘जो लोग लंबे समय तक स्वर्ग लोक का आनंद लेना चाहते हैं, उन्हें माघ मास में सूर्य के मकर राशि में स्थित होने पर तीर्थ स्नान अवश्य ही करना चाहिए।’ तीर्थ स्थान पर यह संकल्प लेना चाहिए : ‘स्वर्गलोक चिरवासो येषां मनसि वर्तते। यत्र काच्पि जलै जैस्तु स्नानव्यं मृगा भास्करे॥’ अर्थात ‘माघ स्नान का संकल्प शास्त्रों के अनुसार पौष पूर्णिमा को ले लेना चाहिए। लेकिन अगर उस समय यह संकल्प नहीं लिया गया हो तो माघ में तीर्थ स्नान के दौरान यह संकल्प करके, भगवान विष्णु का पूजन-अर्चन करना चाहिए। साथ ही संभव हो तो एक समय भोजन का व्रत भी करना चाहिए। जिस प्रकार माघ मास में तीर्थ स्नान का बहुत महत्त्व है, उसी प्रकार दान का भी विशेष महत्त्व है। इन माह में दान में तिल, गुड़ और कंबल या ऊनी वस्त्र दान देने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।

प्रयाग का महत्त्व

पौष पूर्णिमा से आरंभ होकर तीर्थराज प्रयाग में बहुत बड़े मेले का आयोजन होता है। इस मेले के अंतर्गत तीन बड़े स्नानों का विशेष महत्त्व बताया गया है। ये स्नान पौष पूर्णिमा, माघ अमावस्या और माघ पूर्णिमा के दिन आयोजित होते हैं। इन तीनों ही अवसरों पर नदियों में लाखों लोग आस्था की डुबकी लगाकर पुण्य अर्जित करते हैं। माघ मास में प्रयागराज में स्नान का महत्त्व बताते हुए महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है : ‘दशतीर्थ सहस्राणि, तिस्र: कोट्यस्तथापरा:, समागच्छन्ति माघ्यांए तु प्रयागे भरतर्षभ। माघमासं प्रयागे तुए नियत: संशयव्रत:, स्नात्वा तु भरतश्रेष्ठ, निर्मल: स्वर्गमाप्नुयात्।।’ अर्थात ‘माघ मास में प्रयागराज में तीन करोड़ दस हजार तीर्थों का समागम होता है। इसलिए इस महीने में प्रयाग में रहकर स्नान करने वाले को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। पौष पूर्णिमा के दिन व्रत रखने वाले को विशेष फल और पुण्य की प्राप्ति होती है।’ माना जाता है कि माघ मास में पवित्र नदियों में स्नान करने से एक विशेष ऊर्जा की प्राप्ति होती है। वहीं पुराणों में वर्णित है कि इस माह में पूजन-अर्चन व स्नान करने से नारायण को प्राप्त किया जा सकता है तथा स्वर्ग की प्राप्ति का मार्ग भी खुलता है।


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