आर्थिक केंद्र भी है राम मंदिर

आज आवश्यकता इस बात की है कि धार्मिक एवं तीर्थ पर्यटन की संभावनाओं के अनुरूप इन क्षेत्रों का विकास करते हुए देश के विकास में इनके योगदान को बढ़ाया जाए। इसके लिए मंदिरों का जीर्णोद्धार, सस्ते और महंगे सभी प्रकार के होटलों का निर्माण, इन्फ्रास्ट्रक्चर और नागरिक सुविधाओं का विस्तार और इन केन्द्रों में पर्यटन सूचना केन्द्रों की स्थापना और इन तक पहुंचने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों के साथ उनका जुड़ाव आदि कुछ ऐसे कार्य हैं, जिसके द्वारा इन तीर्थ स्थलों के माध्यम से आर्थिकी पुष्ट हो सकती है…

बाईस जनवरी 2024 को अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा हो गई है। देश भर में एक उत्साह का वातावरण अभी भी है। हर व्यक्ति प्राण-प्रतिष्ठा के अवसर पर अयोध्या में जाना चाहता था। यह समझते हुए कि सभी का एक ही समय में अयोध्या में होना संभव नहीं, आने वाले कुछ महीनों में करोड़ों लोग अयोध्या में रामलला के दर्शन करने की योजना बना रहे हैं। अयोध्या में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा तो बन ही रहा है, दर्शनार्थियों की सुविधा हेतु होटल और अन्य प्रकार के इंफ्रास्ट्रक्चर का भी निर्माण तेजी से हो रहा है। इससे न केवल शहर में और इसके आसपास पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि यह शहर एक क्षेत्रीय विकास केंद्र में बदल जाएगा, जिससे बेहतर कनेक्टिविटी के कारण व्यापक क्षेत्र में व्यापार और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। वैश्विक मानकों का एक मेगा पर्यटक शहर, जो प्रतिदिन लाखों पर्यटकों को आकर्षित करेगा, पड़ोसी जिलों की अर्थव्यवस्था में भी क्रांति का स्रोत बन सकता है। अयोध्या के लोग इस बात को लेकर उत्साहित हैं कि पर्यटन का विकास अयोध्या के आर्थिक विकास के नए रास्ते खोलेगा। राम मंदिर में रामलला की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद लगभग 3 लाख की दैनिक उपस्थिति की आवश्यकता को पूरा करने के लिए पवित्र शहर को उन्नत करने हेतु मास्टर प्लान 2031 के अनुसार अयोध्या का पुनर्विकास 85000 करोड़ रुपए से अधिक के निवेश के साथ 10 वर्षों में पूरा किया जाएगा। जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन चल रहा था, देश में कुछ लोग यह सुझाव दे रहे थे कि मंदिर के स्थान पर यदि अस्पताल या शिक्षण संस्थान खोल दिए जाएं तो लोगों को फायदा होगा।

कांग्रेस शासन के दौरान सरकार के काफी निकट और हाल ही में राहुल गांधी की अमरीका यात्रा में उनके साथ गए एक टेक्नोक्रेट सैम पित्रोदा ने कहा कि मंदिर रोजगार पैदा नहीं करते। स्वाभाविक तौर पर वर्तमान में मंदिरों के प्रति आग्रह के संदर्भ में उनकी यह टिप्पणी रही होगी। सैम पित्रोदा चाहे कुछ भी कहें, मंदिरों का अर्थशास्त्र भी समझने की आज बहुत जरूरत है। यह सही है कि कृषि, उद्योग और सेवाओं का अपना-अपना अर्थशास्त्र होता है, जिसके आधार पर हम देश के विकास की रूपरेखा तैयार करते हैं। लेकिन मंदिरों के विरुद्ध बोलने वाले लोग भूल जाते हैं कि धार्मिक सेवाओं और मंदिरों का भी अपना एक अर्थशास्त्र होता है। जहां मंदिर होते हैं, उसके आसपास विकास कार्य स्वत: ही हो जाते हैं, प्राचीन भारत में हर क्षेत्र को धन लाभ इन्हीं तीर्थस्थलों से होता था। हर मंदिर में आकर्षक शिल्पकला, भव्यता, अलौकिक विग्रहों के कारण यह आध्यात्मिक होने के साथ-साथ पर्यटन स्थल भी थे। यह व्यवस्था सम्पूर्ण भारत में थी। आज जब मंदिर निर्माण पूर्णता की ओर है और प्राण-प्रतिष्ठा का कार्यक्रम होने जा रहा है, तो हमें यह समझने की जरूरत है कि मंदिर, धार्मिक एवं आध्यात्मिक पर्यटन हमारे देश और और जनता के लिए कितने लाभकारी हो सकते हैं। मंदिरों से भी भारी रोजगार सृजन होता है। मंदिरों के आसपास असंख्य लोग अपना जीवनयापन करते हैं और मंदिरों में भी आधुनिकीकरण एवं इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के माध्यम से न केवल उन सेवाओं के स्तर को बढ़ाया जा सकता है, बल्कि जीडीपी में भी उनके योगदान में वृद्धि की जा सकती है। इसलिए अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों की ही भांति मंदिर अर्थव्यवस्था के बारे में भी चिंतन और विचार करना जरूरी है। 20 लाख से भी अधिक मंदिरों वाले भारत देश में 4 करोड़ लोग पर्यटन और यात्रा के उद्योग से सीधे जुड़े हुए हैं।

धार्मिक और मंदिर पर्यटन उसका एक बड़ा हिस्सा हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की सरकार भी योजनाबद्ध रूप से इस मंदिर अर्थव्यवस्था को और अधिक पुष्ट करने का कार्य कर रही है। अयोध्या स्थित श्रीराम मंदिर, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के लिए महाकाल लोक, काशी विश्वेश्वर के लिए काशी कोरिडोर, केदारनाथ में मंदिर जीर्णोद्धार एवं शंकराचार्य स्थल, ओम्कारेश्वर में एकात्म धाम, कश्मीर में शारदा पीठ का जीर्णोद्धार, उत्तराखंड में कैलाश दर्शन का विकास उसी दिशा में कदम हैं। हम देखते हैं कि आज भी भारत में कई शहरों और कस्बों की एक बड़ी आबादी तो अपनी आजीविका के लिए सिर्फ मंदिरों एवं तीर्थ स्थानों पर ही निर्भर करती है। उत्तर प्रदेश में वाराणसी, मथुरा-वृंदावन, अयोध्या, कुशीनगर, उत्तराखंड में हरिद्वार, ऋषिकेश, केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री मंदिर प्रसिद्ध हैं। यदि हम देखें तो लगभग सभी राज्यों में एक या एक से अधिक बड़े धार्मिक केंद्र हैं। तमिलनाडु में मीनाक्षी मंदिर (मदुरै), रामेश्वरम मंदिर और कई अन्य मंदिर हैं। उड़ीसा में जगन्नाथ पुरी मंदिर, गुजरात में सोमनाथ और द्वारका, पंजाब में स्वर्ण मंदिर आस्था के प्रमुख केंद्र हैं। झारखंड के देवघर में बैद्यनाथ मंदिर और रांची में जगन्नाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं। मध्य प्रदेश में उज्जैन का महाकाल मंदिर और भारत के कई शहरों-कस्बों में कई मंदिर हैं, जो आस्था के केंद्र हैं।

पर्यटन : जिन शहरों में ऐसे मंदिर स्थित हैं, वहां बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं और सैलानियों का आना होता है। कई स्थान तो ऐसे हैं, जहां एक ही दिन में लाखों श्रद्धालु जुटते हैं। जम्मू के कटरा में स्थित अकेले वैष्णो देवी मंदिर में ही वर्ष 2022 के दौरान 36.4 लाख श्रद्धालुओं ने दर्शन किए। आंध्र प्रदेश में स्थित तिरुपति बालाजी मंदिर में वर्ष 2022 के दौरान 3 करोड़ श्रद्धालुओं ने दर्शन किए। इसी प्रकार से अलग-अलग मंदिरों में करोड़ों लोग हर साल दर्शन करने जाते हैं। यह स्वाभाविक धार्मिक पर्यटन हमारे कुल पर्यटन व्यवसाय का एक बड़ा भाग है, जिससे बड़ी मांग का सृजन होता है। अनुमान है कि भारत में धार्मिक पर्यटन का हिस्सा कुल घरेलू पर्यटन में 60 प्रतिशत है, जबकि 11 प्रतिशत विदेशी सैलानी धार्मिक उद्देश्य से आते हैं। गौरतलब है कि भारत की जीडीपी में पर्यटन का हिस्सा लगभग 7 प्रतिशत है और देश के कुल रोजगार में इसका हिस्सा 8 प्रतिशत है। यानी यह क्षेत्र 4 करोड़ लोगों को रोजगार देता है। ऐसे में कुल घरेलू पर्यटन में जहां धार्मिक पर्यटन का योगदान 60 प्रतिशत और अंतरराष्ट्रीय पर्यटन में 11 प्रतिशत होने के कारण मंदिरों के भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान के बारे में कोई संदेह नहीं हो सकता। भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय के अनुसार जहां पिछले वर्ष 2022 में 14.33 करोड़ भारतीय लोगों ने मंदिरों, तीर्थों में भ्रमण किया, वहीं 64.4 लाख विदेशी पर्यटकों ने भी इन स्थानों पर भ्रमण किया। वर्ष 2022 में 1.35 लाख करोड़ की आमदनी इन तीर्थ स्थानों पर हुई। यानी समझा जा सकता है कि जो लोग ऐसा कहते हैं कि मंदिरों से रोजगार निर्माण नहीं होता अथवा मंदिरों का भारतीय अर्थव्यवस्था में कोई योगदान नहीं है, उन्हें इन तथ्यों को जानना चाहिए। आज आवश्यकता इस बात की है कि धार्मिक एवं तीर्थ पर्यटन की संभावनाओं के अनुरूप इन क्षेत्रों का विकास करते हुए देश के विकास में इनके योगदान को बढ़ाया जाए। इस हेतु मंदिरों का जीर्णोद्धार, सस्ते और महंगे सभी प्रकार के होटलों का निर्माण, इन्फ्रास्ट्रक्चर और नागरिक सुविधाओं का विस्तार और इन केन्द्रों में पर्यटन सूचना केन्द्रों की स्थापना और इन तक पहुंचने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों के साथ उनका जुड़ाव आदि कुछ ऐसे कार्य हैं, जिसके द्वारा इन तीर्थ स्थलों एवं मंदिरों के माध्यम से अर्थव्यवस्था को पुष्ट किया जा सकता है।

डा. अश्वनी महाजन

कालेज प्रोफेसर


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