सफला एकादशी व्रत : सभी कार्यों में दिलाता है सफलता

By: Jan 6th, 2024 12:30 am

सफला एकादशी पौष मास में कृष्ण पक्ष एकादशी को कहा जाता है। इस दिन भगवान अच्युत (विष्णु) की पूजा की जाती है…

व्रत और विधि

इस व्रत को करने वाले को चाहिए कि प्रात: स्नान करके भगवान की आरती कर भोग लगाए। इस दिन अगरबत्ती, नारियल, सुपारी, आंवला, अनार तथा लौंग आदि से श्री नारायण जी का विधिवत पूजन करना चाहिए। इस दिन दीपदान व रात्रि जागरण का बड़ा महत्त्व है। इस व्रत को करने से सभी कार्यों में सफलता मिलती है। इसीलिए इसका नाम सफला एकादशी है।

कथा

प्राचीनकाल में चम्पावती नगर में राजा महिष्मत राज्य करता था। उसके चार पुत्र थे। सबसे छोटा पुत्र लुम्पक बहुत दुष्ट और पापी था। वह पिता के धन को कुकर्मों में नष्ट करता था और अनाप-शनाप खर्च करता था। राजा ने उसे कई बार समझाया, किंतु वह नहीं माना। दु:खी होकर राजा ने उसे राज्य से निकाल दिया। जंगलों में भटकते हुए भी उसने अपनी आदतें नहीं छोड़ीं और जंगल में जानवरों को मारकर उनका मांस भक्षण करने लगा। एक बार लूटमार के दौरान उसे तीन दिन तक भूखा रहना पड़ा। भूख से दु:खी होकर उसने एक साधु की कुटिया में डाका डाला। उस दिन सफला एकादशी होने के कारण उसे कुटिया में कुछ भी खाने को नहीं मिला और वह महात्मा की नजरों से भी न बच सका। महात्मा ने अपने तप से सब कुछ जान लिया। इसके बावजूद महात्मा ने उसे वस्त्रादि दिए तथा सद्भावना से सत्कार किया। महात्मा के इस व्यवहार से लुम्पक की बुद्धि में परिवर्तन आ गया। वह सोचने लगा, ‘यह कितना अच्छा मनुष्य है।

मैं तो इसके यहां चोरी करने आया था, पर इसने मेरा सत्कार किया। मैं भी तो मनुष्य हूं।’ यह सोचकर उसे अपनी भूल का अहसास हो गया। वह क्षमा याचना करता हुआ उस साधु के चरणों में गिर पड़ा तथा स्वयं ही उन्हें सब कुछ सच-सच बता दिया। साधु के आदेश से लुम्पक वहीं रहने लगा। अब वह साधु द्वारा लाई भिक्षा से जीवन यापन करता। धीरे-धीरे उसके चरित्र के सारे दोष दूर हो गए। वह महात्मा की आज्ञा से एकादशी का व्रत करने लगा। जब वह बिल्कुल बदल गया तो महात्मा ने उसके सामने अपना असली रूप प्रकट किया। महात्मा के वेश में स्वयं महाराज महिष्मत थे। पुत्र को सद्गुणों से युक्त देखकर वह उसे राजमहल ले आए और सारा राजकाज उसे सौंप दिया। प्रजा उसके चरित्र में परिवर्तन देखकर चकित रह गई। लुम्पक आजीवन सफला एकादशी का व्रत तथा प्रचार करता रहा।

एकादशी व्रत का महत्त्व

हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एकादशी तिथि भगवान विष्णु से जुड़ी हुई है। दरअसल मान्यता है कि एकादशी तिथि भगवान विष्णु को बेहद प्रिय है। यही वजह है कि एकादशी का व्रत सभी व्रतों में खास और प्रभावशाली होता है। वहीं पौराणिक मान्यता के अनुसार, एकादशी व्रत करने वाला व्यक्ति कभी संकटों से नहीं घिरता है, क्योंकि इस व्रत की महिमा स्वयं श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताई थी। एकादशी व्रत के प्रभाव से जातक को मोक्ष मिलता है और सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं। दरिद्रता दूर होती है, अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता, शत्रुओं का नाश होता है, धन, ऐश्वर्य, कीर्ति, पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता रहता है।


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