स्पीकर का सवालिया फैसला

By: Jan 12th, 2024 12:05 am

महाराष्ट्र के विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने विधायकों को अयोग्य करार देने की याचिकाओं पर फैसला सुनाने में 18 माह से अधिक का वक्त लिया, फिर भी व्यवस्था सवालिया है। स्पीकर यह व्याख्या करते रहे कि ‘असली शिवसेना’ कौन-सी है? उसका नेता कौन है? पार्टी का कौन-सा संविधान मान्य है? उद्धव ठाकरे की शक्तियां क्या थीं? शिवसेना में पार्टी प्रमुख से ताकतवर राष्ट्रीय कार्यकारिणी है। शिवसेना पर फैसला तो चुनाव आयोग सुना चुका था। पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न ‘धनुष-बाण’ एकनाथ शिंदे की सेना को आवंटित किए जा चुके थे, लेकिन सर्वोच्च अदालत के सवाल कुछ और ही थे। चूंकि स्पीकर ने व्यवस्था दी है कि शिंदे गुट ही ‘असली शिवसेना’ है। शिंदे को विधायक दल के नेता पद से हटाने का अधिकार उद्धव ठाकरे को नहीं था। पार्टी प्रमुख की इच्छा और निर्णय राष्ट्रीय कार्यकारिणी के नहीं थे। स्पीकर ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व को ही संवैधानिक नहीं माना। शिवसेना संविधान में 2018 में जो संशोधन किए गए थे, उन्हें भी मान्यता नहीं दी, क्योंकि वह दस्तावेज चुनाव आयोग में उपलब्ध नहीं था। यहां महत्त्वपूर्ण सवाल उठता है कि 2019 के आम चुनाव और फिर विधानसभा चुनाव के लिए जो पार्टी प्रत्याशी पत्र जारी किए गए और जिन्हें चुनाव आयोग ने स्वीकार भी किया, उन पर किसके हस्ताक्षर थे? यहां उद्धव ठाकरे ‘संवैधानिक’ कैसे हो सकते हैं? संविधान पर चुनाव आयोग और स्पीकर को स्पष्टीकरण देने चाहिए, क्योंकि यह संविधान से जुड़ा मामला है। स्पीकर नार्वेकर ने अपनी व्यवस्था का आधार 1999 के शिवसेना संविधान को बनाया है, जिसमें तत्कालीन पक्ष प्रमुख बाल ठाकरे ने पार्टी प्रमुख के बजाय राष्ट्रीय कार्यकारिणी के वर्चस्व को स्थापित किया था।

सर्वोच्च अदालत की न्यायिक पीठ का भी मानना है कि विधायक दल से ज्यादा महत्त्वपूर्ण और ताकतवर पार्टी का संगठन होता है, क्योंकि वह ही मूल है। राजनीतिक शाखाएं कई हो सकती हैं। बहरहाल 2024 में 1999 का पार्टी संविधान पूर्णत: प्रासंगिक नहीं हो सकता, क्योंकि उसके बाद 2004, 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव हुए हैं। विधानसभा चुनाव भी हुए हैं। यदि संविधान में संशोधन नहीं किए गए और शिवसेना में संगठनात्मक चुनाव भी नहीं कराए गए, तो बहुत कुछ वैध नहीं था। बल्कि सवालिया ही था। प्रत्याशी पत्रों पर हस्ताक्षर के सवाल भी लगातार उठेंगे। स्पीकर के निर्णय के बाद कई कानूनी चुनौतियां सामने आएंगी। हालांकि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की सत्ता सुरक्षित और स्थिर है। स्पीकर ने किसी भी पक्ष के विधायकों को ‘अयोग्य’ करार नहीं दिया है, लेकिन शिंदे सेना को अभी जश्न मनाने से परहेज करना चाहिए, क्योंकि उद्धव ठाकरे ने साफ कहा है कि स्पीकर के फैसले को सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी जाएगी। चूंकि वह इस फैसले को लोकतंत्र, संविधान और 10वीं अनुसूची की हत्या मानते हैं, लिहाजा सर्वोच्च अदालत की समीक्षा चाहेंगे। स्पीकर के सामने एक और विवादास्पद मामला है कि उन्हें 31 जनवरी तक एनसीपी के विभाजन पर भी व्यवस्था देनी है। एनसीपी के 40 से अधिक विधायक सत्तारूढ़ एनडीए के घटक हैं। उपमुख्यमंत्री अजित पवार उनके नेता हैं। महाराष्ट्र का राजनीतिक घमासान अभी जारी रहेगा और लोकसभा चुनाव करीब तीन माह दूर ही हैं। इसी साल विधानसभा चुनाव भी होने हैं। शिंदे सेना की मुसीबतें समाप्त होती नहीं लगतीं। बल्कि गठबंधन के भीतर से ही मुसीबतें झांकती नजर आएंगी। भाजपा बहुत बड़ी पार्टी है। विकल्प के तौर पर उसके पास अजित पवार का गुट है, जो महाराष्ट्र में भिन्न इलाके भाजपा को दिखा सकता है। भाजपा उन इलाकों में अपेक्षाकृत कमजोर रही है। बहुत कुछ आम चुनाव से पहले ही स्पष्ट हो जाएगा। उद्धव ठाकरे मुंबई-ठाणे, मराठवाड़ा इलाकों में शिवसेना के परंपरागत जनाधार का आह्वान कर कुछ सहानुभूति बटोरना चाहेंगे।


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