आवश्यक है यूनिफॉर्म ड्रेस कोड

वर्दी पहनकर सभी को अपने व्यवसाय पर गौरवान्वित महसूस करना चाहिए…

वर्दी या यूनिफॉर्म एक प्रकार की वह पोशाक है जिसे किसी पाठशाला के विद्यार्थियों या किसी संगठन के सदस्यों, कर्मियों या श्रमिकों द्वारा उस संस्थान या संगठन की गतिविधियों में भाग लेते हुए पहनी जाती है। वर्दी को आम तौर पर सशस्त्र बलों, अर्धसैनिक संगठनों जैसे पुलिस, आपातकालीन सेवाओं, सुरक्षा गार्डों, कुछ कार्यस्थलों और स्कूलों के विद्यार्थियों, श्रमिकों तथा जेलों में कैदियों द्वारा पहनी जाती है। किसी संस्था के सदस्यों द्वारा उस संस्था का कार्य करते हुए पहने जाने वाला मानक वस्त्र वर्दी या यूनिफॉर्म कहलाता है। कोई भी परिधान सुन्दर, आकर्षक, सरल, भडक़ाऊ, फैंसी तथा अवसर एवं मौसम अनुरूप हो सकता है, लेकिन जब हम यूनिफॉर्म या वर्दी की बात करते हैं तो यह किसी विशेष संस्थान या संगठन से संबंधित होता है। यह भी आवश्यक है कि यूनिफॉर्म चुस्त-दुरुस्त, स्मार्ट, गरिमापूर्ण तथा संस्थान या संगठन को परिभाषित करती हो। वर्दी एक पहचान होती है जिसमें किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं दिखता। यूनिफॉर्म पहना हुआ व्यक्ति एक संस्था या संगठन को परिभाषित एवं प्रतिबिंबित करता है। यूनिफॉर्म किसी भी व्यक्ति की पहचान तथा शान होती है। डाक्टर, वकील, सैनिक, पुलिस, छात्र, कर्मचारी तथा श्रमिक उनकी वर्दी से पहचाने जाते हैं। वे अपनी वर्दी पर गर्व महसूस करते हैं। भारतवर्ष में भी सशस्त्र बलों, अर्धसैनिक संगठनों, पुलिस बलों तथा सुरक्षा गार्डों के लिए वर्दी या यूनिफॉर्म की अनिवार्यता को लागू किया गया है। इसी तरह सरकारी तथा निजी विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा व्यावसायिक संस्थाओं में भी यूनिफॉर्म पहनी जाती है।

यह व्यक्ति तथा संगठन को पहचान दिलाते हुए उनमें आत्मविश्वास तथा जिम्मेदारी की भावना पैदा करती है। कर्नाटक सरकार ने पांच फरवरी 2022 को कर्नाटक शिक्षा अधिनियम -1983 की धारा 133 (2) को लागू करते हुए आदेश जारी किया कि सभी को एक समान शैली के कपड़े अनिवार्य रूप से पहनने होंगे। इस प्रकार मध्य प्रदेश सरकार ने भी बड़ा फैसला लेते हुए प्रदेश में शासकीय कर्मचारियों को यूनिफॉर्म पहनना अनिवार्य कर दिया है। कुछ समय पहले बिहार सरकार ने भी शिक्षा विभाग में कार्यरत अध्यापकों तथा कर्मचारियों को टी-शर्ट, जीन्स जैसे कैज़ुअल कपड़े पहन कर कार्यालय में आने पर इसे संस्कृति के विरुद्ध बता कर आपत्ति जताई है। सन् 1917 में हिमाचल प्रदेश के माननीय उच्च न्यायालय ने तथा अभी कुछ समय पहले भी प्रदेश के प्रधान सचिव सामान्य प्रशासन ने भी प्रदेश हाईकोर्ट, विभिन्न अदालतों, राज्य सचिवालय तथा कार्यस्थलों पर टी-शर्ट, जीन्स, कैज़ुअल कपड़े में न आने का सर्कुलर जारी किया था जिसमें चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को वर्दी में आने के सख्त निर्देश देते हुए उल्लंघनकर्ताओं पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की बात की गई थी। विचारणीय है कि जब अमर्यादित, अशिष्ट तथा असभ्य परिधान पहनने की समाज में कहीं भी अनुमति नहीं है तो शिक्षण संस्थाओं के संचालन में तो यह मामला गम्भीर हो जाता है। हिमाचल प्रदेश के शिक्षा विभाग में जहां शिक्षा की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए भौतिक संसाधनों के निर्माण तथा अध्यापकों की संख्या पर ध्यान देते हुए बहुत से परिवर्तन हो रहे हैं, वहीं पर संस्थानों में कार्यरत अध्यापकों तथा विद्यार्थियों की वर्दी से पहचान तथा गरिमापूर्ण बनाने पर भी कार्य किया जा रहा है। शिक्षा सचिवालय तथा शिक्षा निदेशालय स्तर पर मूलभूत परिवर्तन किए जा रहे हैं। क्लस्टर स्तर पर विभिन्न पाठशालाओं के प्रशासन तथा विभिन्न गतिविधियों पर सामंजस्य, नियन्त्रण, मानवीय तथा भौतिक संसाधनों के अधिक प्रयोग पर भी बल दिया जा रहा है।

अब राज्य शिक्षा विभाग ने सत्र 2024-2025 से पाठशालाओं की प्रबन्धन समितियों तथा प्रशासन को अपनी पसन्द की वर्दी चुनने का अधिकार भी दे दिया है। लड़कियों के लिए सलवार, कमीज, शर्ट, स्कर्ट के साथ पैंट आदि चयन करने का अधिकार भी स्कूलों को दे दिया गया है। हालांकि प्रदेश के सभी जिलों में सभी निजी तथा सरकारी स्कूलों में वर्दी चयन का अधिकार देने से सरकारी स्कूलों के छात्र-छात्राओं की विशिष्ट पहचान अब समाप्त हो सकती है। प्रदेश में सभी सरकारी पाठशालाओं के छात्र-छात्राओं की यूनिफॉर्म एक जैसी हो, इस पर पुनर्विचार अभी भी हो सकता है। सरकारी स्कूलों में नए शैक्षणिक सत्र 2024-2025 से विद्यार्थी बालों में जैल, हाथों में नेल पॉलिश, मेहंदी, शरीर पर टैटू, लम्बे या अव्यवस्थित बाल, खुली या तंग पैंट या सलवार पहन कर नहीं आ सकेंगे। सरकार का यह फैसला जहां सराहनीय है वहीं पर पाठशाला मुखियाओं तथा शिक्षकों को भी विद्यार्थियों की जांच व नियन्त्रण आदि अधिकारों में स्वायत्तता तथा शक्तियां दी जाने की आवश्यकता है, अन्यथा पिछले वर्ष जिला ऊना के एक स्कूल प्रधानाचार्या द्वारा छात्र को बाल कटवाने के आदेश के बदले चांटा मारे जाने जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति की भी संभावना है। इसी प्रकार अब हिमाचल प्रदेश में सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के लिए भी नया ड्रैस कोड लागू करने पर भी चर्चा चल रही है। इसके लिए प्रदेश शिक्षा सचिव ने स्वैच्छिक ड्रैस कोड लागू करने के लिए उच्च शिक्षा निदेशक से प्रस्ताव मांगा है। इस बारे प्रदेश की कई पाठशालाओं के प्रधानाचार्यों ने अपने स्तर पर ही पहल भी कर दी है। आने वाले समय में शिक्षकों के लिए फॉर्मल ड्रेस और शिक्षिकाओं के लिए साड़ी या सूट-सलवार का ड्रेस कोड तय होने की संभावना है। गौरतलब है कि देश के अनेक राज्यों में शिक्षकों के लिए भी ड्रेस कोड लागू है। इससे स्कूलों में फैशनेबल कपड़ों पर रोक लगेगी तथा शिक्षक भी गरिमापूर्ण परिधान में स्कूलों में आएंगे।

यह परिवर्तन विद्यार्थियों के लिए भी उदाहरणीय होगा। हालांकि इस बारे शिक्षकों तथा विभिन्न शिक्षक संगठनों की अपनी-अपनी राय है। कुछ शिक्षक संगठन इसे प्रदेश के सभी विभागों के कर्मचारियों में लागू करने की राय रखते हैं। वर्दी, यूनिफॉर्म तथा ड्रेस कोड लागू होने से जहां छात्रों तथा शिक्षकों की विशिष्ट पहचान होगी, वहीं पर वे अनुशासन, जिम्मेदारी के साथ सभी चुस्त-दुरुस्त, आकर्षक तथा गरिमापूर्ण महसूस करेंगे। व्यावसायिकता की दृष्टि से भी यह विचार स्वागत योग्य है। आवश्यकता है कि इस बारे कोई भी अन्तिम फैसला सभी को विश्वास में लेकर तथा सभी की सहमति से हो। वर्दी पहनकर अपने व्यवसाय पर गौरवान्वित महसूस करना चाहिए। विद्यार्थियों तथा शिक्षकों का वर्दी में आना पाठशाला के शैक्षिक वातावरण को और अधिक सार्थक, प्रेरक, शिष्ट, एकरूप, आकर्षक, गौरवपूर्ण तथा गरिमापूर्ण बनाएगा, ऐसी आशा है।

प्रो. सुरेश शर्मा

शिक्षाविद


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