तरक्की के लिए कट्टरता छोड़ रहे देश

By: Feb 17th, 2024 12:05 am

हिंदू मंदिर के लिए जमीन देकर यूएई ने अपना उदारवादी चेहरा पेश किया है, ताकि भविष्य की जरूरतों के लिहाज से विदेशी निवेश को आकर्षित किया जा सके। इससे पहले यूएई सामाजिक और आर्थिक सुधार लाने के लिए कई बदलाव कर चुका है…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस्लामिक देश संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की राजधानी अबू धाबी में भव्य हिंदू मंदिर का उद्घाटन करना बताता है कि खाड़ी देश अब कट्टर इस्लामिक कानूनों से निजात पाकर तरक्की के रास्ते पर चल रहे हैं। दरअसल खाड़ी देशों के पास राजस्व का एकमात्र स्त्रोत प्राकृतिक तेलों के भंडार हैं। आने वाले दशकों में ये भंडार समाप्त हो जाएंगे। इससे पहले इस्लामिक देश मजबूत आर्थिक आधार खड़ा करना चाहते हैं। इस्लामी कानून इसमें आड़े आ रहे थे। ऐसे में इन देशों ने शरीया कानूनों में ढील देना शुुरू कर दिया है। पर्यटन और औद्योगिक निवेश को आकर्षित करने के लिए खाड़ी देश अपनी नीतियों में लगातार बदलाव कर रहे हैं। यूएई में मंदिर बनना इस बदलाव का ऐतिहासिक उदाहरण है। खाड़ी देशों के लिए दूसरे देशों में मुसलमानों के साथ क्या हो रहा है, इससे अब ज्यादा सरोकार नहीं है। इन देशों की प्राथमिकता अपनी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करना है। यही वजह रही कि चाहे चीन के यूआन प्रांत में मस्जिदें ढहाने के मामले हों या इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध में फिलिस्तिनियों के मारे जाने का मुद्दा हो, खाड़ी के मुस्लिम देशों ने सीधे हस्तक्षेप नहीं किया। यहां तक कि चीन के खिलाफ कभी एक लाइन का बयान तक जारी नहीं किया गया। चीन के वीगर मुसलमानों के दमन की खबरें बाहर आती रही हैं और उनको जबरन निगरानी कैंपों में भी भेजा जाता रहा है।

चीन इन कैंपों को रिएजुकेशन कैंप बताता है। इन सभी मामलों में दुनिया के मानवाधिकार संगठनों से लेकर अमेरिका, ब्रिटेन और कई यूरोपीय देश खुलकर चीन की निंदा कर चुके हैं और करते रहे हैं, लेकिन कभी भी मुस्लिम देशों की ओर से इस पर कोई बयान नहीं आया। मुस्लिम देशों के संगठन ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक कॉपरेशन (ओआईसी) ने भी इस पर कभी कोई टिप्पणी नहीं की। यहां तक कि बीते साल मार्च में पाकिस्तान में हुई ओआईसी की बैठक में चीन के तत्कालीन विदेश मंत्री वांग यी विशेष अतिथि के रूप में पहुंचे थे। ओआईसी की बैठक के दौरान वांग यी ने वादा किया था कि बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) के तहत चीन मुस्लिम देशों में 400 अरब डॉलर निवेश करेगा। लोकतांत्रिक देश चीन में मानवाधिकार उल्लंघनों का मुद्दा उठाते रहे हैं। वहीं दूसरी ओर ओआईसी के सदस्य देश पाकिस्तान, यूएई, सऊदी अरब, कतर, ओमान, बहरीन, मिस्र और कुवैत चीन की तारीफ करते रहे हैं। दुनिया की कुल आबादी में से इस्लाम मानने वालों की आबादी 2 अरब है। इसमें से 85 फीसदी शिया और 15 फीसदी सुन्नी मुसलमान हैं। इस्लाम कोई 1400 साल पुराना धर्म है। इसमें मूर्ति पूजा की मनाही है। इस्लाम की पवित्र पुस्तक कुरान है। इसी के आधार पर कानून भी बनाए गए हैं, लेकिन समय के साथ इस्लाम को मानने वाले बदल भी रहे हैं। सऊदी अरब इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। सऊदी की अर्थव्यवस्था तेल पर निर्भर है। सऊदी 2030 तक अपनी इस अर्थव्यवस्था को बदलना चाहता है और पर्यटन पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है। दुनिया में जिस तरह से इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल बढ़ रहा है, उसे देखते हुए आने वाले दिनों में तरल ईंधन पर निर्भरता कम होगी, ऐसे में आय के दूसरे स्रोत खड़े करने के लिए उदारता बरतना आवश्यक हो गया है। इसीलिए इस्लामिक देशों में कट्टरता से मुक्ति के नए रास्ते खोजे जा रहे हैं। पर्यटन और दूसरे क्षेत्रों में निवेश को आमंत्रित करने के लिए बदलाव की शुरुआत अऊदी अरब से हुई है। प्रमुख इस्लामिक देश सऊदी अरब ने अपने देश में कट्टरता से मुक्ति की ओर बढ़ते हुए अपने देश में विदेशियों के लिए शराब की दुकान खोलने की इजाजत दी। सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस बिन सलमान ने देश की राजधानी रियाद में यह मंजूरी दी।

यहां पिछले दिनों महिलाओं को कार चलाने, पुरुषों के साथ कार्यक्रमों में शामिल होने, सिनेमाघरों में जाने और संगीत के कार्यक्रमों में शामिल होने की छूट भी दी गई है। इस्लाम में पहले महिलाओं को यह आजादी नहीं थी। प्राकृतिक तेल स्त्रोतों के विकल्प के तौर पर सऊदी अरब अब पेरिस और लंदन की तरह पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए राजधानी रियाद में दुनिया के सबसे बड़े आधुनिक शहर को विकसित कर रहा है। इस प्रोजेक्ट के पूरे होने की उम्मीद 2030 तक जताई जा रही है। वहीं, इस प्रोजेक्ट की कुल लागत गैर-तेल जीडीपी के लिए 180 बिलियन सऊदी रियाल अर्थात 48.6 बिलियन डॉलर आने की उम्मीद है। इस परियोजना के अंतर्गत 19 वर्ग किमी के क्षेत्र को कवर किया जाएगा और इसमें एक संग्रहालय, एक प्रौद्योगिकी, डिजाइन विश्वविद्यालय, एक बहुउद्देश्यीय थिएटर और 80 से अधिक मनोरंजन और संस्कृति स्थल होंगे। इस्लामिक देश अब कबीलाई कानूनों को छोड़ कर अर्थव्यवस्था मजबूत करने की तरफ कैसे बदलाव कर रहे हैं, इसका उदाहरण कतर भी है। भारत ने कतर से कथित जासूसी के आरोप में अपने पूर्व नौसैनिकों को छुड़ाया है। नौसेना के आठ पूर्व कर्मियों को कतर ने पहले फांसी की सजा सुनाई थी। भारत की पहल पर इनकी फांसी की सजा को कारावास में तब्दील कर दिया गया। इसके बाद इनकी यह सजा भी माफ कर दी गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अबुधाबी में मंदिर का उद्घाटन करने के बाद कतर के दौरे पर गए। मोदी का वहां भव्य राजकीय सम्मान किया गया। कतर में यह बदलाव सोची-समझी रणनीति के तहत आया है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। भारत ने कतर को बहुत बड़ा कांट्रेक्ट दिया है। 2048 तक भारत कतर से गैस आयात करेगा। इसकी वैल्यू 78 बिलियन डालर है। यही वजह रही है कि कतर ने न सिर्फ पूर्व नौसैनिकों को रिहा कर दिया, बल्कि पीएम मोदी का शानदार स्वागत भी किया। भारत को इस करार से फायदा यह है कि देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए निर्बाध गैस मिलती रहेगी। सऊदी अरब की तरह यूएई भी इस्लामी कानूनो को पीछे छोड़ बदलती दुनिया के साथ कदम से कदम मिला कर चलने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण यूएई में हिंदू मंदिर का निर्माण है। यूएई की राजधानी अबू धाबी में पहला हिंदू मंदिर स्थापित किया गया है। लगभग 27 एकड़ में फैले स्वामीनारायण मंदिर परिसर के लिए यूएई सरकार ने इसके लिए जमीन दान की। माना जा रहा है कि इतने भव्य हिंदू धर्मस्थल का बनना यूएई और भारत के रिश्तों को और मजबूत करेगा। यूएई बाकी इस्लामिक देशों से अलग रहा है। यहां तक कि मिडल ईस्ट में राजनीतिक गुट माने जाते कई संगठनों को उसने अपने यहां बैन कर दिया ताकि देश कट्टरता से बचा रहे, लेकिन पूर्व में यूएई में इस्लामी कट्टरता बनी रही।

यूएई की कट्टरता की एक झलक इस बात से दिखती है कि वहां माइनोरिटी जमीन का मालिकाना हक नहीं पा सकती, खासकर धार्मिक कामों के लिए। यही वजह है कि अमीरात में ताकतवर पदों और आबादी के बाद भी अल्पसंख्यक अपनी मर्जी से धार्मिक स्थल नहीं बना सकते। वे ऐसा तभी कर सकते हैं, जब सरकार जमीन डोनेट करे या लीज पर दे। हिंदू मंदिर के लिए जमीन देकर यूएई ने अपना उदारवादी चेहरा पेश किया है, ताकि भविष्य की जरूरतों के लिहाज से विदेशी निवेश को आकर्षित किया जा सके। इससे पहले यूएई सामाजिक और आर्थिक सुधार लाने के लिए कई बदलाव कर चुका है। यूएई के नए कानून के तहत गैर-मुसलमानों को अबू धाबी में नागरिक कानून के तहत शादी, तलाक और संयुक्त बाल हिरासत प्राप्त करने की अनुमति दी जाएगी। अर्थात अबू धाबी में रहने वाले गैर मुस्लिमों अपने तरीके से शादी कर सकेंगे, तलाक ले सकेंगे और बच्चों की कस्टडी अपने हिसाब से प्राप्त कर सकेंगे। शरिया का कोई दखल नहीं होगा।

योगेंद्र योगी

स्वतंत्र लेखक


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