किसान आंदोलन से सोनिया के राजस्थान तक

हालात देखकर इस बार चुनाव से पहले ही सोनिया गांधी भी उत्तर प्रदेश छोड़ गई। अमेठी चाहे छोड़ दी हो, लेकिन राहुल गांधी ने जिद नहीं छोड़ी। वे सरकार भी बनाएंगे और किसानों की सभी मांगें भी मान लेंगे। वैसे मांगें तो उन्होंने मान ही ली हैं। अब तो काम का दूसरा हिस्सा किसानों को पूरा करना है कि वे उनकी सरकार बना दें। किसान उस पर विचार करते, उससे पहले ही सोनिया गांधी उत्तर प्रदेश छोड़ कर राजस्थान चली गईं। राहुल गांधी की सरकार बनने में यह एक अपशकुन हो गया लगता है। लगता है जब तक सरकार नहीं बना लेते, तब तक न्याय यात्रा करते रहेंगे। कभी नहीं रुकेंगे। सरकार बनाने में एक दूसरी बाधा भी आ गई लगती है। बहुत दिनों से राहुल गांधी आशा लगाए बैठे थे कि आम आदमी पार्टी से मिल जाएंगे तो हमारे हिस्से पंजाब और दिल्ली की आधी-आधी सीटें तो आ ही जाएंगी। लेकिन इतने बड़े किसान आंदोलन के बीच में ही केजरीवाल की पार्टी ने कहा कि दिल्ली में कांग्रेस की औकात तो एक सीट की भी नहीं है, लेकिन फिर भी आपको एक सीट दे देंगे। जहां तक पंजाब का प्रश्न है, वहां सारी सीटें आम आदमी पार्टी को ही लडऩी हैं…

पंजाब में तथाकथित किसान आंदोलन पुन: शुरू हो गया है। उसके लिए जिन्होंने भी समय का चयन किया है, उनकी दाद देनी पड़ेगी। चुनाव सिर पर हैं, इसलिए दिल्ली को घेरने की योजना जरूरी थी। लेकिन किनको इस समय जरूरत थी, यह महत्वपूर्ण प्रश्न है। जाहिर है यह जरूरत कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को सबसे ज्यादा थी। पिछली बार जब पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी तो उस समय के मुख्यमंत्री ने बहुत ही चालाकी से आंदोलन को दिल्ली के दरवाजे पर धकेल दिया था। केवल धकेल ही नहीं दिया था बल्कि परोक्ष रूप से उसकी सब प्रकार से सहायता भी की थी। अंग्रेजी वाले जिसको लोजिस्टिकल फैसलिटीज कहते हैं, वे सभी मुहैया करवाई। आन्दोलन से कांग्रेस को कोई फायदा हुआ या नहीं, यह तो वही जानती होगी। लेकिन जो मुख्यमंत्री अति उत्साह में था उसका जरूर उत्साह भंग हो गया। अब मोहरे बदल गए हैं। पंजाब में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी गद्दी पर है। लेकिन उसके मुखिया अरविंद केजरीवाल अत्यंत संकट में हैं। ईडी ने उन्हें दिल्ली के शराब घोटाले के मामले में पांचवीं बार समन किया है। इस जांच में केजरीवाल के तीन साथी सत्येन्द्र जैन, मनीष सिसोदिया और संजय बाबू पिछले लम्बे अरसे से जेल में हैं। जमानत के लिए हाथ-पैर मारते रहते हैं, लेकिन नसीब नहीं होती। जरूर कोई पुख्ता सबूत रहे होंगे। अब शायद वही सबूत केजरीवाल की ओर झांक रहे होंगे। इसलिए ईडी उन्हें बार-बार बुला रही है, लेकिन वे उसके सामने जा नहीं रहे।

उनका कहना है कि उन्हें देश में अस्पताल और स्कूल खोलने हैं। इसलिए उनके पास समय कहां है। इसलिए पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार चाहती है कि पंजाब से ज्यादा से ज्यादा किसान जाकर दिल्ली को घेर लें। दिल्ली ही तो शराब को लेकर केजरीवाल के पीछे हाथ धोकर पड़ी हुई है। इसलिए आम आदमी पार्टी की सरकार को भी कुछ न कुछ करना पड़ेगा। पंजाब का मुख्यमंत्री दहाड़ रहा है। वह हरियाणा सरकार को कोस रहा है। पंजाब के किसानों को दिल्ली क्यों नहीं जाने दिया जा रहा? अब वह पंजाब की एयर स्पेस को लेकर भी सक्रिय है। पंजाब के आकाश में हरियाणा का ड्रोन क्यों? कल हो सकता है वह अपनी पुलिस को इसी काम में लगा दे कि पंजाब का ड्रोन हरियाणा के आकाश में दिखाई दे तो चुनिए गिरा लिया जाए। इससे सिद्ध हो जाएगा कि आम आदमी पार्टी की सरकार किसान के पक्ष में है। बाकी पंजाब के मुख्यमंत्री यह भी आगाह कर रहे हैं कि कल लोकसभा राष्ट्रगीत में से पंजाब को भी निकाल सकती है। आम आदमी पार्टी अब इस प्रकार के मुद्दों की तलाश में निकल पड़ी है। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार किसानों को ललकार रही है। दिल्ली जाने के रास्ते में जो बाधा हो, उसको हटाओ। इस काम में चोट वगैरह लग जाए तो सारा खर्चा सरकार उठाएगी। शायद केजरीवाल को लगता होगा कि शराब का जो मामला पीछा नहीं छोड़ रहा, शायद उसको दिल्ली जाने की जिद पर अड़े किसान ही छुड़ा दें । शेष बात रही किसानों की मांगों की। कोई भी मसला हो उसे बातचीत से ही सुलझाना चाहिए। जब सरकार बातचीत करना चाहती है तो सडक़ों पर निकल आना और रास्ते अवरुद्ध कर देना शायद उचित नहीं है। किसानों को सरकार से बातचीत करनी चाहिए। अलबत्ता राहुल गांधी ने अवश्य किसानों से वादा किया है कि जब 2024 में कांग्रेस की सरकार आएगी तो वे किसानों की सभी मांगें स्वीकार कर लेंगे। राहुल गांधी किसानों की इतनी भीड़ देख कर सरकार आने का गणित बिठा ही रहे थे, इसी बीच पता चला कि उनके माता जी, कभी कांग्रेस के गढ़ रहे उत्तर प्रदेश को त्याग कर राजस्थान चली गईं। वे वहां से संसद में आना चाहती हैं। यकीनन आ भी जाएंगी। उत्तर प्रदेश में लम्बे अरसे से मां-बेटा अमेठी और रायबरेली से लोकसभा का चुनाव लड़ा करते थे। जीत भी जाते थे। इन्हीं दो सीटों पर पंजे की छाप दिखाई देती थी। लेकिन पिछले चुनाव में राहुल गान्धी उत्तर प्रदेश छोड़ कर केरल चले गए। उन्हें पूरी आशा थी कि अमेठी वाले अब नहीं मानेंगे। इसलिए वे समय रहते केरल चले गए। अमेठी वालों ने सचमुच राहुल जी की आशा पर फूल चढ़ा दिए। वे वहां से हार गए।

हालात देखकर इस बार चुनाव से पहले ही सोनिया गांधी भी उत्तर प्रदेश छोड़ गई। अमेठी चाहे छोड़ दी हो, लेकिन राहुल गान्धी ने जिद नहीं छोड़ी। वे सरकार भी बनाएंगे और किसानों की सभी मांगें भी मान लेंगे। वैसे मांगें तो उन्होंने मान ही ली हैं। अब तो काम का दूसरा हिस्सा किसानों को पूरा करना है कि वे उनकी सरकार बना दें। किसान उस पर विचार करते, उससे पहले ही सोनिया गान्धी उत्तर प्रदेश छोड़ कर राजस्थान चली गईं। राहुल गान्धी की सरकार बनने में यह एक अपशकुन हो गया लगता है। लगता है जब तक सरकार नहीं बना लेते तब तक न्याय यात्रा करते रहेंगे। कभी नहीं रुकेंगे। सरकार बनाने में एक दूसरी बाधा भी आ गई लगती है। बहुत दिनों से राहुल गान्धी आशा लगाए बैठे थे कि आम आदमी पार्टी से मिल जाएंगे तो हमारे हिस्से पंजाब और दिल्ली की आधी-आधी सीटें तो आ ही जाएंगी। लेकिन इतने बड़े किसान आन्दोलन के बीच में ही केजरीवाल की पार्टी ने कहा कि दिल्ली में कांग्रेस की औकात तो एक सीट की भी नहीं है, लेकिन फिर भी आपको एक सीट दे देंगे। जहां तक पंजाब का प्रश्न है, वहां सारी सीटें आम आदमी पार्टी को ही लडऩी हैं। वहां शायद कांग्रेस की एक सीट की भी औकाात नहीं है। लेकिन राहुल गान्धी के सरकार बनाने के चुटकुलों की ओर ध्यान न भी दें, तब भी आखिर यह तो देखना परखना होगा ही कि किसान आन्दोलन के पीछे कौन है और कहां है? आखिर किसान सरकार से बातचीत क्यों नहीं करना चाहते? किसानों को सरकार से भिड़ा कर कौन अपने व्यक्तिगत हितों की साधना कर रहा है? सवाल यह भी है कि सत्ता में आने पर कांग्रेस किसानों से किए वादे कैसे निभाएगी, जबकि पहले किए गए सभी वादे उसने पूरे नहीं किए हैं।

कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

ईमेल:kuldeepagnihotri@gmail.com


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