गीता रहस्य

By: Feb 17th, 2024 12:14 am

स्वामी रामस्वरूप
इसी स्थिति का वर्णन महाभारत काल में व्यास मुनि जी अर्जुन के द्वारा भगवद्गीता में उच्चारण करा रहे हैं। हमें सदा ईश्वर से डरकर रहना चाहिए। वह डर क्या है? कि यदि हम ईश्वर के न्याय से नहीं डरेंगे तो चारों वेद कहते हैं जैसा कि सामवेद मंत्र 446 में कहा कि परमेश्वर ‘वृत्रहंतमाय’ है अर्थात वह परमेश्वर पापियों का नाश करने वाला है…

गतांक से आगे…
जिन्हें अर्जुन ने श्रीकृष्ण महाराज के शरीर में प्रकट निराकार ब्रह्म के अंदर दिव्य आंखों द्वारा देखा था। अर्जुन श£ोक 11/21 में कह रहा है कि यह सभी देवता भयभीत होकर एवं हाथ जोडक़र आपका गुणगान कर रहे हैं। आज भी यदि हम संपूर्ण सृष्टि में दृष्टि दौड़ाएं, तो यही सत्य सामने आता है कि ईश्वर के न्याय से डरने वाले ऋषि- मुनि वनों में, एकांत में, संन्यासी वानप्रस्थी स्थान-स्थान पर धार्मिक स्थलों में गृहस्थी मंदिरों-मंदिरों, गुरुद्वारों, गिरजाघरों, तीर्थों आदि में ईश्वर से डरकर हाथ जोड़ मस्तिष्क टेके परमेश्वर की विभिन्न प्रकार से पूजा-आरती, नाम, सिमरन, यज्ञ आदि कर रहे हैं। इसी स्थिति का वर्णन महाभारत काल में व्यास मुनि जी अर्जुन के द्वारा भगवद्गीता में उच्चारण करा रहे हैं। हमें सदा ईश्वर से डरकर रहना चाहिए। वह डर क्या है?

कि यदि हम ईश्वर के न्याय से नहीं डरेंगे, तो चारों वेद कहते हैं जैसा कि सामवेद मंत्र 446 में कहा कि परमेश्वर ‘वृत्रहंतमाय’ है अर्थात वह परमेश्वर पापियों का नाश करने वाला है। ऋग्वेद मंत्र 8/61/18 में परमेश्वर को ‘प्रभंगी’ अर्थात दुष्टों का मर्दन करने वाला कहा है और पापियों के लिए ‘वज्रम’ वज्र धारण करने वाला अर्थात न्याय के द्वारा दंड देने वाला और उन्हें रूलाने वाला कहा है। इसलिए मंत्रों का भाव है कि हे मनुष्यों! आप सब पापों से डरो, नहीं तो ईश्वर का न्याय तुम्हें दंड देगा। अत: श्लोक 11/21 में कहा कि पापों से बचने के लिए उस परमेश्वर के गुणों का, वेद मंत्रों से ज्ञान करो। पुन: कहा कि पाप कर्मों से सदा के लिए पृथक हुए महर्षिगण एवं सिद्ध पुरुषों के गण निर्भय होकर आपकी वेद मंत्रों से स्तुति करते हैं। -क्रमश:


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