केंद्रीय बजट से कितनी खुराक

By: Feb 3rd, 2024 12:05 am

चुनाव की रखवाली में आए केंद्र सरकार के अंतरिम बजट में यूं तो आत्म श£ाघा के कई दरवाजे खुले हैं, लेकिन चेतावनियों के बीच राज्यों के लिए अपना आर्थिक सम्मान हासिल करना कठिन है। खास तौर पर हिमाचल जैसे राज्यों के लिए आफत का यह कठिन दौर न तो केंद्रीय बजट को सूंघ पा रहा है और न ही इसके भीतर खुद को ढांप पा रहा है। ऐसे में सुक्खू सरकार की आर्थिक कसौटियों में प्रदेश के आगामी बजट सत्र का हर कदम परीक्षाओं से भरा है। करीब दो हफ्ते बाद हिमाचल अपने बजट के माध्यम से नए कर्ज को पुकार रहा होगा, तो कहीं केंद्रीय योजनाओं के बीच खुद को निहार रहा होगा। हालांकि सुक्खू सरकार की कुछ प्राथमिकताएं केंद्रीय बजट में संबोधित हुई हैं और इनके सदके सरकार अपने प्रथम वर्ष के आर्थिक हिसाब को दूसरे से मिलाकर नए शब्दों में अभिव्यक्त करना चाहेगी। कोई नहीं जानता कि इस बार देश के आर्थिक सर्वेक्षण का ऊंट किस करवट बैठा है, लेकिन हिमाचल को अपनी हैसियत की कडिय़ों में क्षेत्रवार ब्यौरे में इसे सिद्ध करना होगा। केंद्र ने इलेक्ट्रिक वाहनों के जरिए जिस परिवहन को दौड़ाया है, कमोबेश उसी की परिपाटी में सुक्खू सरकार के बजटीय सुर, ग्रीन एनर्जी के गीत सुना रहे हैं। प्रथम वर्ष में ही युवाओं के लिए स्टार्टअप योजना के तहत 680 करोड़ का प्रावधान करके सुक्खू सरकार चल रही है। ई-टैक्सी और ई-बसों की खरीद पर पचास फीसदी सब्सिडी की घोषणा ने करीब ढाई हजार युवाओं को आकर्षित किया है। सुक्खू सरकार आगे चलकर पेट्रोल-डीजल इंजन के बजाय इलेक्ट्रिक टैक्सियों के संचालन को अनुमति देना चाहती है। ऐसे में राष्ट्रीय-अभियान से हिमाचल अपने हिस्से की संभावना को भी पूरा कर दे, तो आत्मनिर्भरता के खाकों में कुछ तो नूर आएगा। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का बजट वैकल्पिक ऊर्जा के रास्ते से नागरिकों को छत के माध्यम से सौर ऊर्जा पैदा करने का आह्वान कर रहा है।

यहां भी हिमाचल ने इस प्रकार की योजनाओं की व्याख्या से सौर ऊर्जा के उत्पादन को सुनिश्चित किया और आगे चलकर यह रास्ता भी खुशामदीद कह सकता है। डेयरी उत्पादन में केंद्र की योजनाओं को अवतरित करने की कोशिश में हिमाचल ने पहले ही गारंटियों की मुद्रा धारण की है। बात सिर्फ गोबर खरीद की नहीं, बल्कि दूध खरीद में प्रति किलो छह रुपए बढ़ा कर राज्य सरकार इस क्षेत्र को प्रोत्साहित कर रही है, जबकि ढगवार में करीब डेढ़ सौ करोड़ की राशि से एक अति आधुनिक संयंत्र लगा कर खरीद और विपणन की श्रृंखला को विभिन्न दुग्ध उत्पादों के जरिए सशक्त करने के प्रयास में है। हिमाचल ने मोदी सरकार के बजट को विकास के हर पहलू, वित्तीय प्रोत्साहन के हर बिंदु, विषयों के हर अवसर और संभावनाओं के हर अक्स में सुना होगा, लेकिन पर्यटन और कनेक्टिविटी की दृष्टि के हर उल्लेख से पर्वतीय प्रदेश को अपनी वर्जनाएं तोडऩे का एहसास करने का अवसर मिलना चाहिए। केंद्र अपनी उड़ान योजना के तहत भारतीय विमानन क्षेत्र में जो उपलब्धियां अर्जित करना चाहता है, उनके ठीक सामने सुक्खू सरकार हर जिला मुख्यालय व प्रमुख शहरों में हेलिपोर्ट बनाने की प्रक्रिया को पहले ही आयाम तक पहुंचा चुकी है। सरकार ने चार हेलिपोर्ट को 13 करोड़ रुपए की धनराशि जारी कर दी है, जबकि अन्य की प्रक्रिया जारी है। देश की तीन कंपनियों ने कुछ हेलिपोर्ट के बीच कनेक्टिविटी जोड़ते हुए सेवाएं शुरू करने में रुचि दिखाई है।

हिमाचल सरकार ने आते ही कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार को राज्य परियोजना का दर्जा देकर इसे भू-अधिग्रहण के अंतिम दौर में पहुंचा दिया है, जबकि पर्यटन राजधानी के प्रारूप में कुछ नए सपने, नए संकल्प और नई आशाएं जाग्रत हुई हैं। धर्मशाला में विश्व स्तरीय कानवेंशन सेंटर के निर्माण से कान्फ्रेंस टूरिज्म के राष्ट्रीय उद्बोधन में हिमाचल अपने दस्तावेज पुख्ता कर पाएगा। हिमाचल की दृष्टि से केंद्रीय बजट एक एहसास, एक खुराक और एक आर्थिक आयाम है, जिसके तहत केंद्रीय योजनाओं की हिस्सेदारी में आगे का सफर कुछ हद तक जारी रह सकता है, वरना पहले वर्ष का अनुभव कई ऐसे कटु मोड़ पर खड़ा है, जहां बरसात के जख्म, एनपीएस की जमा पूंजी, जीएसटी का बचा हुआ भुगतान, ऋण उठाने की अनुमतियां और आत्मनिर्भर होने की कसौटियां केंद्र से अपना अधिकार मांग रही हैं। देखना यह है कि एक अंतरिम बजट से सुक्खू सरकार राज्य के पूर्ण बजट के लिए कितना कुछ निकाल पाती है, ताकि बजट की प्रासंगिकता में वित्तीय व्यवस्था पर भरोसा रहे।


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