हर तरफ कोकसर

By: Feb 10th, 2024 12:05 am

राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल की निगाह में अटल टनल के दोष कोकसर तक बिखर रहे हैं और इस चेतावनी का व्यावहारिक पक्ष समझना होगा। एक व्यक्ति की निजी चिंता को सूंघते हुए एनजीटी ने राज्य और केंद्र को कोकसर के उजड़ते मंजर पर नोटिस थमाया है। अटल टनल के दरवाजे पर कूड़े-कर्कट के ढेर और इसके निष्पादन की शर्तों पर आंख मूंदे बैठे प्रशासन को एनजीटी का आदेश आईना दिखा रहा है। दरअसल अटल टनल से गुजरता वाहनों का दरिया अनवरत प्रदूषण की शक्ति का प्रदर्शन बनकर कोकसर के परिवेश से भिड़ंत कर रहा है। कोकसर की अपनी क्षमता, अपने परिणाम और परिवेश की सीमाएं हैं, जिन्हें लांघ कर पर्यटन चिढ़ा रहा है। फर्क भी यही है कि हम पर्यटन के मुस्कराने और पर्यटन के चिढ़ाने का अंतर जाने। बेशक हिमाचल में पर्यटन का सबसे बड़ा चुंबक बनी अटल टनल मशहूर है और मशगूल है, लेकिन इन बहारों में गुम हो जाने की वजह भी है। एक नागरिक आकाश को जो नजर आया, वह प्रशासन क्यों भूल गया और यह महज कोकसर का मामला नहीं, हिमाचल के हर पर्यटक स्थल की व्यस्तता का आलम यह है कि वहां कूड़े के ढेरों से निकलती बदबू और जल निकासी की अव्यवस्था में परिवेश तीव्रता से अपना वस्त्रहनन होते चुपचाप देख रहा है। अगर ग्रीन ट्रिब्यूनल की चेतना में देखें तो हिमाचल में कितने ही कोकसर मिल जाएंगे, जहां पर्यटन के मार्फत परिदृश्य से मौसम व हवाओं की पवित्रता गायब है। ऐसे में कारणों के समाधान का पीछा करेंगे तो पर्यटन नीतियों और पर्यटन स्थलों के संचालन में कमी सामने आएगी। यह सामाजिक और प्रशासनिक दृष्टि से व्यवहार और नियमों की शब्दावली व शपथ अपनाने का अनुशासन है। विश्व भर में और केरल में भी कुछ ऐसे पर्यटक गांव हैं जहां समाज ने तय कर रखा है कि सैलानियों के आगमन के बावजूद परिवेश और पर्यावरण का वजूद अव्वल रहे। हम पर्यटन को रफ्तार मानने की गलती करते आए हैं, इसलिए हर पर्यटक स्थल का मूल्यांकन उसकी भीड़ से होता है।

आश्चर्य यह है कि अभी कुछ सालों में अस्तित्व में आए बीड़-बिलिंग जैसे पर्यटक स्थल को भी हमने भीड़ के नाखूनों के सुपुर्द कर दिया है। यह भीड़ वाहनों की कतार, खाद्य-पदार्थों की भरमार व रेस्तरां की व्यस्तता में कद से कहीं ज्यादा सैलानियों के आगमन के बजाय कूड़े-कर्कट का साम्राज्य बन रही है। गौर से देखें तो कोकसर की कार्बन कापी बिलिंग से शिकारी देवी या पराशर झील तक मिलेगी। रिवालसर झील में बहते बेड़े क्यों थम गए या मछलियों ने ‘बचाओ-बचाओ’ चीखना शुरू कर दिया, समझना होगा। पर्यटन बनाम कूड़े या पर्यटन बनाम वाहनों के बढ़ते प्रकोप को आज नहीं समझा, तो कल हर स्थान मय्यत बन कर दिखाई देगा। यह जरूरी नहीं कि अधिक संख्या में पर्यटक आएं, लेकिन यह अनिवार्य है कि आने वाले से हमारे पर्यावरण पर कम से कम दबाव हो। यही वजह है कि हमने इन्हीं कालमों में हिमाचल सरकार की उस घोषणा में गुण-दोष निकाला जो सैलानियों की वर्तमान दो करोड़ के करीब की शुमारी को आगे चलकर पांच करोड़ की संख्या तक पहुंचाने का इरादा रखती है। करीब सत्तर लाख की आबादी वाले प्रदेश को आखिर किस हद तक जाना होगा, यह व्यवस्था, प्रबंधन तथा तौर तरीकों पर ही निर्भर करेगा। हम फिलहाल दो करोड़ पर्यटकों के सैलाब में अटल टनल के पसीने छुड़ा रहे हैं। मनाली, मकलोडगंज, डलहौजी, कसौली व शिमला को टै्रफिक जाम में फंसा रहे हैं, तो पांच करोड़ की संख्या में हम कहां होंगे। पांच करोड़ पर्यटक आगमन के मायने यह भी हैं कि एक हिमाचली के दायरे में सात सैलानियों की घुसपैठ होगी।

अगर हम हर हिमाचली के वाहन को पार्किंग, उसके कूड़े के मुकम्मल निष्पादन व जल-विद्युत की चौबीस घंटे आपूर्ति नहीं कर पा रहे, तो कोकसर जैसा उत्पात हर गांव, कस्बे व शहर में मचेगा। ऐसे में हर पर्यटन संभावना के तहत पर्यटन स्थल की क्षमता का विस्तार व उसकी होल्डिंग कैप्सटी का मूल्यांकन होना चाहिए। इसके लिए हर पर्यटक गांव, स्थल, शहर या धार्मिक स्थल के प्रबंधन व संचालन के लिए एक खास आपरेटिंग सिस्टम तथा समिति, विकास बोर्ड या पर्यटन विकास प्राधिकरण का गठन करना होगा। हर पर्यटक व शहर से दस किलोमीटर पहले तमाम वाहन रोक कर आगे का सफर सार्वजनिक वाहनों से हो तथा यह पूरी तरह इलेक्ट्रिक हों या रज्जु मार्गों से परिवहन चलाया जाए।


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