लॉजिस्टिक लागत घटने का परिदृश्य
हम उम्मीद करें कि अब लॉजिस्टिक लागत में लक्ष्य के अनुरूप कमी करके इस समय वैश्विक व्यापार में भारत का जो हिस्सा दो फीसदी से भी कम है, उसे वर्ष 2030 तक बढ़ाकर करीब तीन गुना करने के साथ-साथ निर्यात मूल्य का आकार भी बढ़ाकर 2000 अरब डॉलर किए जाने के चुनौतीपूर्ण लक्ष्य को भी मुठ्ठी में लिया जा सकेगा। इससे देश 2047 तक विकसित देश बनने की डगर पर आगे बढ़ते हुए दिखाई देगा…
इन दिनों राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत में लॉजिस्टिक लागत घटने से संबंधित जो अध्ययन रिपोर्टें प्रकाशित हो रही हैं, उनके आधार पर भारत में वर्ष 2024 में विनिर्माण, कारोबार, निर्यात और रोजगार के मौके बढ़ाने में घटती हुई लॉजिस्टिक लागत की अहम भूमिका होगी। हाल ही में उद्योग व आंतरिक व्यापार संवद्र्धन विभाग (डीपीआईआईटी) ने ‘भारत में लॉजिस्टिक्स लागत : आकलन और दीर्घावधि फ्रेमवर्क’ रिपोर्ट 2023 को जारी करते हुए कहा कि वित्त वर्ष 2021-22 में भारत की लॉजिस्टिक्स लागत सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 7.8 से 8.9 प्रतिशत के बीच रही है। इस ल़ॉजिस्टिक लागत में यातायात लागत, वेयर हाउसिंग और भंडारण लागत, सहायक सहायता सेवाओं की लागत, पैकेजिंग की लागत, बीमा लागत और अन्य संचालन लागतें शामिल की गई हैं। नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकानॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) द्वारा विश्व बैंक के निर्धारित मापदंडों पर तैयार की गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में जमीनी स्तर पर बुनियादी ढांचे, डिजिटलीकरण, अंतरराष्ट्रीय शिपमेंट तथा यातायात के साधनों में बड़े निवेश और आधुनिकीकरण जैसे अहम कारणों से लॉजिस्टिक लागत में बड़़ी कमी आई है। उल्लेखनीय है कि विश्व बैंक के लॉजिस्टिक प्रदर्शन सूचकांक रिपोर्ट 2023 के तहत भी भारत 6 पायदान की छलांग के साथ 139 देशों की सूची में 38वें स्थान पर पहुंच गया है। भारत 2018 में इस सूचकांक में 44वें तथा 2014 में 54वें स्थान पर था। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में जिस रणनीतिक रूप से पीएम गति शक्ति योजना 2021 और राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (एनएलपी) 2022 का कार्यान्वयन शुरू किया गया है, उससे भारत में लॉजिस्टिक लागत में कमी का परिदृश्य लगातार उभरकर दिखाई देने लगा है।
ज्ञातव्य है कि सामान्यत: वस्तु के उत्पादन में कच्चे माल की लागत पहले क्रम पर और मजदूरी की लागत दूसरे क्रम पर होती है। फिर लॉजिस्टिक लागत का क्रम आता है। उत्पादों एवं वस्तुओं को उत्पादित स्थान से गंतव्य स्थान तक पहुंचाने तक लगने वाले परिवहन, भंडारण व अन्य खर्च को लॉजिस्टिक खर्च कहा जाता है। जहां डीपीआईआईटी के द्वारा हाल ही में प्रस्तुत रिपोर्ट में लॉजिस्टिक लागत नौ फीसदी से भी कम रहने की बात कही गई है, वहीं लॉजिस्टिक से जुड़े कई संगठनों की अध्ययन रिपोर्टों में भारत में लॉजिस्टिक की लागत जीडीपी के 10 फीसदी से अधिक होने के अनुमान भी प्रस्तुत किए जा रहे हैं। वस्तुत: कोई एक वर्ष पहले 17 सितंबर 2022 को लांच हुई राष्ट्रीय लॉजिस्टिक पॉलिसी का लक्ष्य पांच साल में देश में लॉजिस्टिक लागत को घटाकर 8 फीसदी करना है। साथ ही इसका लक्ष्य 2030 तक कम लॉजिस्टिक खर्च वाले दुनिया के टॉप 25 देशों की सूची में देश को भी कम लॉजिस्टिक लागत वाले देश के रूप में स्थान दिला पाना भी है। इसका लक्ष्य माल परिवहन की लागत घटाकर सभी प्रकार के उद्योग-कारोबार को बढ़ावा देना और वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाना भी है। चूंकि वर्तमान में लॉजिस्टिक्स का ज्यादातर काम सडक़ों के जरिए होता है, अतएव अब इस नीति के तहत रेल ट्रांसपोर्ट के साथ-साथ शिपिंग और एयर ट्रांसपोर्ट पर जोर दिया जा रहा है। लगभग 50 प्रतिशत कार्गो को रेलवे के जरिए भेजे जाने का लक्ष्य आगे बढ़ाया जा रहा है और सडक़ों पर ट्रैफिक को कम किया जा रहा है। देश में बुनियादी ढांचे का तेजी से निर्माण होने लगा है। साथ ही लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में ड्रोन का भी इस्तेमाल शुरू हुआ है। नि:संदेह नई लॉजिस्टिक नीति और करीब 100 लाख करोड़ रुपए की महत्त्वाकांक्षी पीएम गतिशक्ति योजना एक सिक्के के दो पहलू की तरह ही हैं।
गति शक्ति योजना का मुख्य लक्ष्य देश में एकीकृत रूप से बुनियादी ढांचे का विकास करना है। वस्तुत: देश में सडक़, रेल, जलमार्ग आदि के इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े 16 मंत्रालयों और विभागों के बीच पीएम गतिशक्ति योजना के तहत सहकार व समन्वय बनाने का काम तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है। गतिशक्ति योजना के तहत पिछले दो वर्षों में विभिन्न विभागों की अवसंरचना विकास से जुड़ी गतिविधियों को एक केंद्रीकृत डिजिटल पोर्टल के तहत लाए जाने का काम हुआ है। साथ ही अब रेलवे, सडक़, बंदरगाह, जलमार्ग, हवाई अड्डे, सार्वजनिक परिवहन और लॉजिस्टिक्स इन्फ्रास्ट्रक्चर के रूप में चिन्हित किए गए सात इंजनों के तहत भारतमाला (राजमार्ग), सागरमाला (तटीय नौवहन), उड़ान (वायु सेवाओं), भारत नेट (दूरसंचार सेवाओं), रेलवे विस्तार और अंतर्देशीय जलमार्ग विस्तार जैसी महत्त्वपूर्ण योजनाओं को समन्वित रूप से आगे बढ़ाया जा रहा है। वस्तुत: इस समय केंद्र सरकार सडक़ और रेल मार्ग, दोनों में सुधार पर ध्यान दे रही है। देश के प्रमुख शहरों और औद्योगिक एवं कारोबारी केंद्रों के बीच की दूरी कम करने के लिए एक तरफ डेडिकेटेड फ्रेट कोरिडोर के जरिए रेल मार्ग से माल ढुलाई को तेज करने की कवायद कर रही है, दूसरी तरफ देश के लगभग हर हिस्से में ग्रीनफील्ड हाईवे प्रोजेक्ट चल रहे हैं। इसके साथ ही राजमार्गों पर आधारित इंडस्ट्रियल कोरिडोर भी बनाए जा रहे हैं। यह बात भी उभरकर दिखाई दे रही है कि देश में बुनियादी ढांचे के तहत सडक़ों, रेलवे, बिजली और हवाई अड्डों के अलावा बंदरगाह से संबंधित सडक़ और रेल कनेक्टिविटी में भी निजी निवेश का प्रवाह अहम भूमिका निभा रहा है। यात्रा के आधार पर भारत का लगभग 90 फीसदी से अधिक विदेश व्यापार समुद्री मार्ग से होता है। देश में नवीनतम बंदरगाह नीति के तहत बंदरगाह ‘लैंडलॉर्ड मॉडल’ की शुरुआत के साथ सरकार के स्वामित्व वाले प्रमुख बंदरगाह की परिचालन जिम्मेदारियां निजी क्षेत्र को सौंपने की रणनीति के कारण बंदरगाह विकास और संचालन में घरेलू और विदेशी निजी क्षेत्र की भागीदारी तेजी से बढ़ी है।
ऐसे में दुनिया भर में शिपिंग और लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में भारतीय बंदरगाहों की सराहना हो रही है और कहा जा रहा है कि भारत विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के बीच जहाजों पर से माल उतारने और लादने की बेहतर नीति का प्रदर्शन कर रहा है। इससे कई निर्यात आधारित उद्योगों की प्रतिस्पर्धी क्षमता बढ़ रही है। हम उम्मीद करें कि केंद्रीय उद्योग व आंतरिक व्यापार संवद्र्धन विभाग के द्वारा वर्ष 2021-22 में देश में लॉजिस्टिक लागत जीडीपी के 7.8 से 8.9 फीसदी रहने और अन्य कई अध्ययनों में इसे 10 फीसदी के आसपास रहने की रिपोर्टों के परिवेश में अब देश में राष्ट्रीय लॉजिस्टिक नीति तथा पीएम गतिशक्ति योजना के और तेजी से कारगर क्रियान्वयन से आगामी नए वर्ष 2024 में भारत में लॉजिस्टिक लागत में और कमी आएगी। ऐसे में भारत की वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा क्षमता बढ़ेगी। इससे भारत की उद्योग-कारोबार और निर्यात क्षेत्र की तस्वीर संवारी जा सकेगी। साथ ही महंगाई में कमी, रोजगार में वृद्धि और विकास के नए अध्याय भी लिखे जा सकेंगे। हम उम्मीद करें कि अब लॉजिस्टिक लागत में लक्ष्य के अनुरूप कमी करके इस समय वैश्विक व्यापार में भारत का जो हिस्सा दो फीसदी से भी कम है, उसे वर्ष 2030 तक बढ़ाकर करीब तीन गुना करने के साथ-साथ निर्यात मूल्य का आकार भी बढ़ाकर 2000 अरब डॉलर किए जाने के चुनौतीपूर्ण लक्ष्य को भी मुठ्ठी में लिया जा सकेगा। इससे देश 2047 तक विकसित देश बनने की डगर पर आगे बढ़ते हुए दिखाई देगा। इस तरह भविष्य के लिए अच्छे संकेत हैं।
डा. जयंती लाल भंडारी
विख्यात अर्थशास्त्री
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