आर्थिकी के श्वेत-स्याह पत्र की तस्वीर

भारत के द्वारा वर्ष 2023 में की गई जी-20 की सफल अध्यक्षता से नए आर्थिक लाभों की ऐसी अभूतपूर्व संभावनाएं मिली हैं जिससे इस वर्ष 2024 में भारत से निर्यात, भारत में विदेशी निवेश, भारत में विदेशी पर्यटन और भारत के डिजिटल विकास का नया क्षितिज सामने आते हुए दिखाई देगा। ग्लोबल सप्लाई चेन में सुदृढ़ता और विश्वसनीयता के मद्देनजर भारत की अहमियत बढ़ेगी…

इस समय पूरे देश ही नहीं, पूरी दुनिया में भारतीय अर्थव्यवस्था में रुचि रखने वाले लोग हाल ही में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के द्वारा लोकसभा में मोदी सरकार के कार्यकाल में अर्थव्यवस्था को रफ्तार दिए जाने और संप्रग सरकार के आर्थिक कुप्रबंधन पर पेश किए गए श्वेतपत्र तथा कांग्रेस के द्वारा प्रेस कान्फ्रेंस के माध्यम से मोदी सरकार के 10 वर्षों की विफलताओं पर प्रस्तुत किए गए स्याह पत्र पर विचार मंथन करते हुए दिखाई दे रहे हंै। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि जहां मोदी सरकार आर्थिक विकास व स्वरोजगार के विभिन्न मापदंडों पर तेजी से आगे बढ़ी है, वहीं प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने में मोदी सरकार अभी यथोचित सफलता से दूर है। वर्ष 2013-14 में भारत की अर्थव्यवस्था मुश्किल के दौर में थी। वह समय संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के दूसरे कार्यकाल का अंतिम वर्ष था। यदि हम संप्रग सरकार के उस समय के आर्थिक परिदृश्य को देखें तो पाते हैं कि भारत के राजकोषीय घाटे, मुद्रास्फीति तथा चालू खाते के घाटे में तेज इजाफा हुआ था। स्थिति यह थी कि वर्ष 2012-13 में चालू खाते का घाटा सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के 5 फीसदी के करीब था। वृद्धि को गति प्रदान करने के मद्देनजर ऐसी परियोजनाओं को ऋण देने को कहा गया जो उपयुक्त नहीं थीं। परिणामस्वरूप फंसे हुए कर्ज में तेज वृद्धि हुई। उस समय तत्कालीन सरकार भ्रष्टाचार तथा कई घोटालों के आरोपों में घिर गई। सर्वोच्च न्यायालय ने 2012 में 122 दूरसंचार लाइसेंस निरस्त कर दिए। इससे उस दौर के राजनीतिक तथा आर्थिक परिदृश्य का अंदाजा लगाया जा सकता है।

इतना ही नहीं, कई घोटालों और समस्याओं से घिरी संप्रग सरकार समय पर जरूरी निर्णय नहीं ले सकी। भारत लगभग मुद्रा संकट के कगार पर पहुंच गया था। दूसरी ओर वर्ष 2014 में सत्ता में आने के बाद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार (एनडीए) ने आर्थिक स्थिरता को मजबूत करने को प्राथमिकता दी। राजकोषीय स्थिति को मजबूत बनाने के लिए नीतिगत प्रतिबद्धता का मजबूत संदेश दिया। साथ ही ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) के जरिए शक्ति संतुलन को लेनदारों के पक्ष में कर दिया। इससे ऋण संस्कृति में सुधार हुआ है और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में उल्लेखनीय पूंजी डालने से दोहरी बैलेंस शीट के घाटे को दूर करने में मदद मिली है। निश्चित रूप से एनडीए सरकार ने ऐसे कई तरह के सुधारों को अंजाम दिया जिनसे कारोबारी सुगमता बढ़ाई जा सके। रिजर्व बैंक ने मुद्रा और विदेशी मुद्रा भंडार के प्रबंधन को लेकर वृहद आर्थिक स्थिरता को मजबूत बनाने के उपाय किए। लगातार कर सुधारों से भारत को अपने कर-जीडीपी अनुपात में सुधार करने में मदद मिली है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने से उद्योग-कारोबार को लाभ हुआ है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि देश की अर्थव्यवस्था को तेजी से आगे बढ़ाने में बुनियादी ढांचे के निर्माण में आई क्रांति अहम भूमिका निभा रही है। पिछले 9 साल में आधुनिक बुनियादी ढांचे के निर्माण पर 34 लाख करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। उद्योग-कारोबार को आसान बनाने के लिए 1500 पुराने कानूनों और 40 हजार अनावश्यक अनुपालन को समाप्त किए जाने की अहम भूमिका है। इस समय भारत को एक वैश्विक डिजाइन और विनिर्माण केंद्र में बदलने के लिए मेक इन इंडिया 2.0, मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों के लिए तकनीकी समाधान को बढ़ावा देने के लिए उद्योग 4.0, स्टार्टअप संस्कृति को उत्प्रेरित करने के लिए स्टार्टअप इंडिया, मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी अवसंरचना परियोजना के लिए पीएम गति शक्ति और उद्योगों को डिजिटल तकनीकी शक्ति प्रदान करने के लिए डिजिटल इंडिया जैसी सफल पहलों से भारत चतुर्थ औद्योगिक क्रांति की दिशा में आगे बढ़ रहा है।

गौरतलब है कि 7 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा में अपने संबोधन में कहा कि विगत 10 वर्षों में देश की अर्थव्यवस्था दुनिया की शीर्ष पांच अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो गई है। अब आगामी पांच वर्ष विकसित भारत की बुनियाद के होंगे। दुनिया भारत की युवाशक्ति का दम देखेगी। स्टार्टअप, पेटेंट और सेमीकंडक्टर सहित विभिन्न क्षेत्रों में आत्मनिर्भर भारत का परचम दुनिया में फहराते हुए दिखाई देगा। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों में भी एकमत से कहा जा रहा है कि भारत 2030 तक दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था और 2047 तक दुनिया का विकसित देश बनते हुए दिखाई दे सकता है। पिछले दिनों वित्त मंत्रालय की तरफ से भारतीय अर्थव्यवस्था पर जारी विस्तृत रिपोर्ट ‘द इंडियन इकोनॉमी रिव्यू’ में कहा गया है कि अगले तीन साल में ही भारतीय अर्थव्यवस्था पांच ट्रिलियन डॉलर की हो जाएगी और भारत आर्थिक आकार के लिहाज से अमेरिका व चीन के बाद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कोरोना महामारी और उसके ठीक बाद भू-राजनीतिक उथल-पुथल से जहां दुनिया की कई बड़ी अर्थव्यवस्थाएं दो प्रतिशत की विकास दर हासिल करने के लिए संघर्ष कर रही हैं, वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया को आश्चर्यचकित करते हुए आगामी वित्त वर्ष 2024-25 में भी सात प्रतिशत की विकास दर हासिल कर सकती है। रिपोर्ट में यह बात भी रेखांकित की गई है कि पिछले एक दशक में सरकार के साहसिक आर्थिक निर्णयों ने देश की आर्थिक बुनियाद को मजबूत बना दिया है। ऐसे में कृषि से लेकर मैन्यूफैक्चरिंग और डिजिटल सेवा की बदौलत सर्विस सेक्टर में मजबूती आई है।

इसमें कोई दो मत नहीं कि नरेंद्र मोदी सरकार की आर्थिक रणनीति से इस समय भारत के पास टिकाऊ विकास के अभूतपूर्व अवसर हैं। वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक मंचों पर भारत को विशेष अहमियत, अमेरिका और रूस दोनों महाशक्तियों के साथ भारत की मित्रता, तेजी से बढ़ते भारतीय बाजार के कारण दुनिया के अधिकांश देशों की भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) की ललक, प्रवासी भारतीयों के द्वारा वर्ष 2023 में 125 अरब डॉलर से अधिक धन भारत को भेजने के साथ नए आर्थिक तकनीकी विकास के लिए बढ़ते कदम, चीन के प्रति बढ़ती नकारात्मकता के मद्देनजर भारत नए वैश्विक आपूर्तिकर्ता देश के रूप में उभरकर सामने आया है। इसके साथ-साथ दुनिया में मजबूत लोकतंत्र और स्थिर सरकार के रूप में भारत की पहचान, भारत के शेयर बाजार का दुनिया में सबसे तेजी से बढऩा, भारत में दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी, देश में उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन, बड़े पैमाने पर पूंजीगत खर्च, गैर जरूरी आयात में कटौती और अर्थव्यवस्था के बाहरी झटकों से उबरने की क्षमता देश के टिकाऊ विकास की बुनियाद बन सकती हैं।

यह बात भी महत्वपूर्ण है कि भारत के द्वारा वर्ष 2023 में की गई जी-20 की सफल अध्यक्षता से नए आर्थिक लाभों की ऐसी अभूतपूर्व संभावनाएं मिली हैं जिससे इस वर्ष 2024 में भारत से निर्यात, भारत में विदेशी निवेश, भारत में विदेशी पर्यटन और भारत के डिजिटल विकास का नया क्षितिज सामने आते हुए दिखाई देगा। जी-20 से दुनिया में ग्लोबल सप्लाई चेन में सुदृढ़ता और विश्वसनीयता के मद्देनजर भारत की अहमियत बढ़ेगी। प्राकृतिक संपदा संपन्न अफ्रीकी संघ को जी-20 में शामिल कराकर भारत ने इन देशों से नए आर्थिक लाभों की उम्मीदों को बढ़ाया है। इससे अब भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) भी तेजी से बढ़ेगा। एनडीए का श्वेत पत्र अधिक प्रासंगिक, अधिक वास्तविक और अधिक विकासपरक है।

डा. जयंती लाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री


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