स्थानांतरणों के मंतव्य

By: Feb 2nd, 2024 12:05 am

हिमाचल में ताबड़तोड़ तरीके से हो रहे स्थानांतरण के बीच एक गूंज यह कि प्रशासन का निजाम बदल रहा है, दूसरी ओर आगामी लोकसभा चुनाव से पूर्व सरकार ने सारी स्लेट को साफ करके, लोकतांत्रिक फर्ज को वरीयता दी है। धीरे-धीरे जिलों के प्रशासनिक, पुलिस अधिकारी तथा उपमंडल स्तर तक एसडीएम, डीएसपी, तहसीलदार तथा नायब तहसीलदारों की अदला बदली कर दी है। अधिकारियों की नई पांत बिछा कर सुक्खू सरकार ने दरअसल अपनी हुकूमत के पत्ते खोले हैं। एक साल की सरकार ने स्थानांतरणों की बड़ी इबारत लिखने से पूर्व संयम बरता और यह आभास नहीं होने दिया कि सत्ता बदलते सभी कुछ बदल गया। इस दौरान ट्रांसफर हुए जरूर, लेकिन आवश्यकता की परख में ही आदेश हुए। बहरहाल ट्रांसफर से प्रशासनिक हुलिया बदलने की खबर है और यह एक नया इम्तिहान भी है सरकार की नीतियों को सफल बनाने और सुशासन की कलम से नया लिखने का। दरअसल सरकार ने राज्य की व्यवस्था को अपने पैमानों और पहरों के तहत दुरुस्त करने का बीड़ा उठाया है, उम्मीद है यही संदेश विभागीय परतों के परिदृश्य में नए सजावट और नई लिखावट लाएगा। हालांकि ये तमाम स्थानांतरण एक तरह के विशेषााधिकार के तहत सरकार कर रही है, जबकि वर्षों बाद भी न इसकी नीति व नियमों में कुछ नया दर्ज हुआ या पारदर्शिता के साथ ‘ट्रांसफर आर्डर’ को विश्वसनीयता से देखा गया। ये तमाम बड़े साहबों के स्थानांतरण हैं, जिन्हें शहरी आवरण में समझा जा सकता है।

बड़े साहबों की कोठियां हर स्थानांतरण के बाद भी सहूलियतों के हिसाब से परिपूर्ण रहती हैं, जबकि कर्मचारियों के ट्रांसफर आर्डर कुछ भिन्नता के साथ, राजनीतिक मेलजोल की पारंपरिक रिवायत को निभाते हैं। ग्रामीण स्तर के कार्यालयों, स्कूल-चिकित्सालयों के रिक्त पदों और सार्वजनिक क्षेत्र के सेवा स्तर पर ट्रांसफर के मानदंड किसी मानक के बजाय एक ऐसी फेहरिस्त में सक्रिय हैं, जो दो कर्मचारियों, दो अध्यापकों, दो डाक्टरों या अन्य पदों पर दो कर्मचारियों-अधिकारियों की आपसी सहमति पर म्यूचुअल धरातल पर अदला-बदली खेलते रहते हैं। हिमाचल में स्थानांतरण के मापदंड साबित करते हैं कि सत्ता में किसी अधिकारी-कर्मचारी का फलक क्या है। अब तो सत्ता के बीच विशेषाधिकार प्राप्त कर्मचारी-अधिकारी भी प्रत्याशित तरीके से पदों पर देखे जाते हैं। इसलिए स्थानांतरण से गंतव्य नहीं, मंतव्य साबित होता है। हम जान सकते हैं कि फलां आईएएस या एचएएस अधिकारी ही क्यों किसी जिला की बागडोर संभाल रहा है। हम अनुमान लगा सकते हैं कि बटालियन में भेजा गया पुलिस अधिकारी क्यों पटरी नहीं बिछा पाया। यही वजह रही है कि पिछली सरकार में एक जिला पुलिस अधिकारी को मुख्यमंत्री के निजी सुरक्षा अधिकारी से उलझते देखकर जनता सहम गई थी। एक यह भी प्रमाण है कि सारे अधिकारी अब व्यवस्था में ‘अपनी-अपनी’ सरकार खोज रहे हैं।

प्रशासन के तत्व, राजनीतिक पहुंच के आगे शून्य हो सकते हैं, लेकिन वीआईपी कारवां जब चलता है तो यह सफर अब नेताओं को नायक और अधिकारियों के हुजूम को तलवे चाटता देखता है। होते हैं कभी कुछ कडक़ पुलिस अधिकारी जो अपराध को खींच लाते हैं बाहर या नशे के सौदागरों को जमीन पर सुला देते हैं, लेकिन अधिकांश कानून व्यवस्था को बदनाम नहीं करते। ऐसे भी एसएचओ स्तर के अधिकारी कामयाब हो जाते, जो जुर्म के पन्नों को खारिज करके सिर्फ ट्रैफिक चालान के पर्याय बन जाते हैं। हमारे सामने सफल प्रशासनिक अधिकारियों की कमी नहीं, लेकिन एक्शन के पदों पर स्थानांतरण आर्डर कदमताल करते रहते हैं। बहरहाल सुक्खू सरकार ने लगातार एक साल संयम से उन्हीं आला अधिकारियों को मौका दिया, जिन्हें पद पर जयराम सरकार छोड़ गई थी। परिवर्तन के लिए परिवर्तन के बजाय काम के अध्याय पूरे करने के लिए सरकारी मशीनरी सक्षम हो तो ऐसे स्थानांतरणों की व्यापकता में कुछ तो अंदाज बदलेगा। हर स्थानांतरण का एक संदेश होना चाहिए। कोई अध्यापक बदलता है, तो उसका पैगाम परीक्षा परिणाम को सफल बनाए। नए चिकित्सक के आगमन से स्वास्थ्य सेवा सुधरनी चाहिए। इसी ध्येय में लिपटे स्थानांतरण आदेश सभी विभागों की क्षमता, लक्ष्य प्राप्ति और कार्रवाइयों को सुदृढ़ करें, तो व्यवस्था परिवर्तन के मुहावरे गांव-गांव तक सफल होंगे। उम्मीद करनी चाहिए कि नए डीसी और एसपी अपने-अपने दायित्व की मिसाल में सरकार की प्राथमिकताओं, विकास की अर्हताओं और सुशासन के सरोकारों की अनुपम पेशकश बनेंगे।


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