आधुनिक समाज को बच्चों के रिश्ते डरा रहे हैं

By: Mar 16th, 2024 12:16 am

जे.पी. शर्मा, मनोवैज्ञानिक
नीलकंठ, मेन बाजार ऊना मो. 9816168952

प्रसिद्ध गजल सम्राट स्वर्गीय जगजीत सिंह की मशहूर गजल के बोल थे जो इस प्रकार है:- ‘‘ ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो, भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी। मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन, वो कागज की किश्ती वो बारिश का पानी’’।
जिसमें बच्चों की अवस्था की मासूमियत का महिमा मंडन किया गया है। बच्चों की किलकारियां, घुटनों के बल चलते, लडख़ड़ाते कदमों से चलने का प्रयत्न करते, बाप को घोड़ी बना पीठ पर सवारी करते, तोतली भाषा में बातें करते, धीरे-धीरे बड़े होकर माता-पिता की अंगुली पकड़ सुरक्षित भावना से जाकर दुकानों से खिलौने व वस्तुओं को लेने की जिद करते बच्चों के मनमोहक अंदाज को निहारना इतना सुखद व स्वर्गीय आनंदमय आभास कराता है कि इसके आगे सभी आनंद फीके पड़ जाते हैं। माता-पिता भविष्य की सुखद कल्पनाओं में खो जाते हैं। यह सोचकर ही उनका मन अभिभूत हो जाता है कि एक दिन यही बच्चे बड़े होकर उनका सहारा बनेगें। परंतु जब वही बच्चे बड़े होकर अपने मां, बाप, गुरुजनों एवं बड़ों का अपमान करने लगे, सहारा बनने की बजाय तनाव पैदा करने लगे, तो अभिभावकों को यूं महसूस होने लगता है कि जैसे उनका भविष्य अंधकारमय होता जा रहा है। जैसे उनकी आर्जित कमाई कोई चौराहे पर लूटकर उन्हें असहाय छोड़ गया हो। वे लूटे पिटे ठगे से खाली हाथ रह गए हैं। ये आधुनिक समाज की घिनौनी देन है कि बच्चों के रिश्ते डरा रहे हैं। पूर्व समाज में बड़ों का तीखी तेवर वाली नजर से देखना ही बच्चों में भय पैदा कर देता था।

वे तत्काल क्षमा याचना कर बड़ों के समक्ष नतमस्तक हो जाते थे। इसके विपरीत आज के बच्चों की व्यवहार शैली में उदंडता,उपेक्षापूर्ण व्यवहार सरीखे बगावती तेवर पनपने लगें है। निस्संदेह इसमें आधुनिक समाज के लालन पालन के तौर तरीके जिम्मेदार हैं। मनोवैज्ञानिक नजरिये से इसका विश्लेषण करें तो अभिभावक भी कुछ हद तक इसके जिम्मेदार हैं। संयुक्त परिवारों का टूट कर एकाकी परिवारों में तबदील हो जाना, जहां परिवार के बड़े बुजुर्गों के अनुभवों का सुरक्षाचक्र, अनुशासन चक्र, सांस्कृतिक स्वीकृतियों एवं निषेधाज्ञाओं का पारंपरिक प्रभाव नहीं होता। आज पिता ही नहीं माता का भी धनोपार्जन के लिए व्यस्त हो जाना व बच्चों को अकेला, असहाय, उनके हाल पे छोड़ देना या नौकरों के हाथ में सौंप देना, समय पर उनके खान-पान की जरूरतें पूरी न कर पाना, चोट लगने पर ममत्व एवं अपनत्व न दे पाना ही बच्चों में उपेक्षा, असंवेदनशीलता, बगावती नजरिया, रिश्तों के प्रति नाराजगी के भाव उत्पन्न करता है, जो उनके व्यवहार शैली में नकारात्मक हठधर्मी पैदा कर देता है। जिसकी प्रतिक्रिया स्वरूप वे बड़ों की उपेक्षा, अवज्ञा, गैरजरूरी हठधर्मी सरीखे अवगुण पाल लेते हैं, जो एक तरह से मन में छुपी अपने प्रति की गई अवहेलना का ही आक्रोशित प्रकटीकरण से प्रतिशोध लेना होता है जिसके फलस्वरूप स्वत: ही रिश्तों के सम्मान भाव सिमटते व बिखरते जा रहे हैं।


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