किसानों को प्राकृतिक खेती पर प्रशिक्षण, खेती का महत्त्व समझने-अपनाने की आवश्यकता पर जोर
निजी संवाददाता — यमुनानगर
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय कृषि विज्ञान केंद्र, यमुनानगर द्वारा प्राकृतिक खेती पर दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम चार व पांच मार्च 2024 का आयोजन केंद्र के सभागार में किया गया, जिसमें विभिन्न गांवों के 40 किसानों ने भाग लिया। इस दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में डा. एनके गोयल फैकल्टी एडवाइजर, डा. अनिल कुमार को-ऑर्डिनेटर, डा. किरण खोखर मृदा वैज्ञानिक, आरआरएस उचानी, इंजिनियर कपिल द्वारा व्याख्यान दिए गए। इस प्रशिक्षण के कोर्स कोऑर्डिनेटर डा. विशाल गोयल मृदा वैज्ञानिक रहे, जिन्होंने व्यावहारिक रूप से प्राकृतिक खेती में बीजामृत, जीवामृत के प्रयोग एवं महत्व के बारे में बताया कि प्रशिक्षित होने के बाद इसे अवश्य अपनाएं।
डा. अनिल द्वारा रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों से होने वाले दुष्प्रभाव के बारे में जानकारी देते हुए प्राकृतिक खेती को समझने एवं अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया। डा. किरण खोखर ने बताया की केवल रासायनिक उर्वरकों से अधिक समय तक मृदा स्वास्थ्य बनाकर नहीं रखा जा सकता, जिसके लिए जैविक विकल्पों की आवश्यकता है। प्राकृतिक खेती को रासायनिक मुक्त और पशुधन आधारित खेती के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसमें सूक्ष्म जीवाणु अहंम भूमिका निभाते हैं। प्राकृतिक खेती किसानों की आय बढ़ाने के साथ-साथ अन्य फायदे देती है जैसे कि मिट्टी की उर्वरता बनाये रखना, पर्यावरणीय स्वास्थ्य की बहाली और ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करना। प्राकृतिक खेती प्राकृतिक या पारिस्थितिक प्रक्रियाओं पर आधारित होती है, जो खेतों में या उसके आसपास मौजूद होती हैं।
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