सरकारी बसें कितनी आगे

By: Mar 21st, 2024 12:05 am

सही समय पर प्रशासनिक दखल के परिणाम किस तरह बेहतर हो सकते हैं, इसका एक उदाहरण एचआरटीसी के प्रबंध निदेशक रोहन चंद ठाकुर ने पेश किया है। वह डीटीसी के साथ एक अनुबंध करके न केवल दिल्ली जा रही सरकारी बसों के लिए उनके राजघाट परिसर में पार्क करने की व्यवस्था कर रहे हैं, बल्कि वहां ड्राइवर-कंडक्टरों के लिए विश्राम की उचित व्यवस्था भी कर रहे हैं। इस तरह एचआरटीसी सालाना अपने व्यय में करीब दो करोड़ की बचत करते हुए भविष्य के रास्ते खोज रही है। यह दीगर है कि सरकारी बसें भारी नुकसान की अर्थव्यवस्था के भंवर में फंसी हुई हैं और जनता की शिकायतों का एक पहाड़ इसके सामने खड़ा है, फिर भी वर्तमान सरकार के दौर में इलेक्ट्रिक बसों की दिशा में सरकार का फैसला इनकी खरीद के अंतिम दौर में है। करीब पांच सौ तेरह करोड़ से 327 बसें खरीद कर सरकार राज्य को ग्रीन एनर्जी के तहत भविष्य की संभावना से जोड़ रही है। इससे पहले शिमला व धर्मशाला की स्मार्ट सिटी परियोजनाओं के तहत इलेक्ट्रिक बसें चलाई जा रही हैं। बहरहाल सडक़ परिवहन के क्षेत्र में एचआरटीसी अपने आप में राज्य के सेवा क्षेत्र के अलावा पर्यटन का सेतु भी है। हाल के दिनों में इसकी चर्चा के क्षेत्र में विसंगतियां रही हैं, फिर भी एचआरटीसी हिमाचल राज्य का एक ब्रांड है, जो सीधे जनापेक्षाओं को संबोधित करता है। यह दीगर है कि एचआरटीसी की प्रबंधकीय क्षमता पर राजनीति हावी होकर ऐसे फैसले लेती रही है, जिससे सार्वजनिक परिवहन की वित्तीय स्थिति निरंतर घाटे के नीचे दबी रहती है।

अनावश्यक बस डिपो खोलकर राजनीति ने अपना कद भले ही ऊंचा कर लिया, लेकिन घाटे के सौदे में सरकारी बसें खुद पर शर्मिंदा हैं। बेशक अंतरराज्यीय बसों से एचआरटीसी की कमाई की रीढ़ दिखाई देती है, लेकिन राज्य स्तरीय व स्थानीय बस संचालन में अनावश्यक खर्चों को ढोती हुई बस सेवा कंगाल हो चुकी है। निजी बसों के मुकाबले सरकारी बसों की छवि, दक्षता, उपयोगिता व कमाई की औसत दर प्रदेश पर आर्थिक बोझ बढ़ा रही है। राज्य व स्थानीय रूट परमिट को देखते हुए परिवहन नीति में बदलाव से निजी निवेश को बढ़ावा मिलना चाहिए। एचआरटीसी अपने बस अड्डों के मार्फत आय का दायरा बढ़ा सकती है। बड़े शहरों, पर्यटक व धार्मिक स्थलों के बस स्थानक अपने आप में पर्यटन परिसर साबित हों, इस हिसाब से निजी निवेश के साथ पार्टनरशिप बढ़ानी होगी। एचआरटीसी के बस अड्डे कल के मॉल होने चाहिएं तथा इनके साथ महापार्किंग की अवधारणा में प्रयास करने होंगे। हिमाचल पथ परिवहन निगम अगर दिल्ली में डीटीसी के साथ मिलकर बचत कर रही है, तो ऐसे आदान-प्रदान हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड व जम्मू-कश्मीर राज्यों के परिवहन उपक्रमों के साथ भी होने चाहिएं। मसलन एचआरटीसी चंडीगढ़-दिल्ली के बीच बस ठहराव के साथ एक रिजॉर्ट विकसित कर सकती है, जबकि पंजाब के कई रूट्स में भी ऐसी संभावना को देखना चाहिए।

एचआरटीसी अगर पठानकोट से बस डिपो का संचालन कर सकती है, तो दिल्ली, चंडीगढ़ व हरिद्वार से क्यों नहीं। परिवहन की दृष्टि से एचआरटीसी को पर्यटन रूट के अलावा स्थानीय परिवहन को भी अलग से परिभाषित करना होगा। निश्चित रूप से एचआरटीसी ने कुछ धार्मिक स्थलों को हिमाचल से जोडक़र ऐसी पहल की है, लेकिन जयपुर, मसूरी, अमृतसर, कुरुक्षेत्र व जम्मू के साथ पर्यटन परिवहन की नई तस्वीर पेश करनी होगी। हिमाचल के भीतर साइट सीईंग के पैकेज अगर एचआरटीसी शुरू करे, तो धार्मिक पर्यटन से आगे नई मंजिलें तैयार होंगी। प्रदेश में परिवहन की एक परिपाटी में हम एचआरटीसी की भूमिका को देखते हैं, जबकि इसकी संपूर्णता में निजी क्षेत्र की क्षमता काफी आगे है। एचआरटीसी के दायरे में निजी क्षेत्र का निवेश अगर परिवहन के उद्देश्य व संगत से हो, तो घाटे के फेरे लाभ की स्थिति में आ सकते हैं। एचआरटीसी का बैनर उदारता व सहयोग के साथ मेहनत करे, तो जो उपयोगिता निजी वोल्वो बसें पेश कर रही हैं, उनसे कहीं आगे सरकारी उपक्रम भी खड़ा हो सकता है। एचआरटीसी पर्यटन रूट्स को सरकारी डाक बंगलों से जोडक़र पैकेज बना सकता है, ताकि पर्यटक प्रदेश के भीतर मंजिल दर मंजिल सरकारी बसों को अपने सारथी के रूप में देख सके व विश्राम भी कर सके।


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