मोहे ब्रज बिसरत नाहीं…

By: Mar 8th, 2024 12:05 am

मथुरा कन्हैया लाल (श्रीकृष्ण) आ तो गए, लेकिन उनका मन होली के आते ही व्याकुल हो उठा। राधा तथा अन्य गोपियों की याद उन्हें सताने लगी। उद्धव से बोले- ‘उद्धव, मोहे ब्रज बिसरत नाहीं’। उद्धव बोले- ‘भगवन् आपने ही मथुरा आने की जल्दबाजी की। अभी आप कह रहे हैं कि आप ब्रज को भुला नहीं पा रहे हैं। ब्रज को भुलाना संभव भी नहीं है। आपने वहां वर्षों रास रचाया है। गोपियों की दही-मक्खन की मटकियां फोड़ी हैं और होली पर खूब गुलाल-अबीर उड़ाया है। मैंने तो आपसे कहा भी था कि मथुरा होली के बाद चलेंगे, लेकिन आपने मेरी कहां मानी और मुझे भी ले आए। बोलो अब क्या करें।’ कन्हैया लाल बोले- ‘करना तो क्या है, जिस तरह मैं आज यहां बेचैन हूं, उसी तरह वहां गोपियां आकुल होंगी। क्या हम रंग वाले दिन वहां जा सकते हैं।’ उद्धव ने कहा- ‘जा तो क्यों नहीं सकते। होली खेलकर दूसरे दिन अपने ‘पुष्पक’ से मथुरा लौट आएंगे। बरसाने की होली तो मैं भी कैसे भुला सकता हूं।’ ‘लेकिन, गोपियों को पुन: अकेला छोड़ूंगा तो उन्हें मेरी याद फिर से तरोताजा नहीं होगी?’ ‘होगी क्यों नहीं, अभी वे आपको कौनसा भुला पायी हैं। मैं उन्हें समझाने गया था, तो उन्होंने मुझसे कहा था- ‘हमारे हरि हारिल की लकरी।’ उद्धव ने कहा तो कन्हैया लाल बोले- ‘मैं कुछ समझा नहीं ऊधो।’ ‘महाराज, उनका कहना है कि जैसे हारिल पक्षी अपनी चोंच में हमेशा पतला तिनका दबाए रहता है, वैसे ही हमारी जिह्वा पर तो सदैव श्रीकृष्ण का नाम रहता है।’

उद्धव बोले। कन्हैया लाल बोले- ‘फिर तो उद्धव हमारा वहां होली खेलने जाना कम खतरनाक नहीं है। गोपियों की यह दशा तो मुझसे देखी नहीं जाएगी।’ ‘फिर आप होली किसके साथ खेलेंगे।’ उद्धव ने प्रतिप्रश्न किया तो कन्हैया लाल सिंहासन पर बैठ गए, पल भर को निमग्न हो गए। उद्धव ने फिर कहा- ‘भगवन्, क्या सोचने लगे। असली होली का आनंद तो गोपियों के साथ ही है। इसलिए मेरी मानो तो गोकुल चलें। हालांकि गोपियों के चेहरों के रंग फीके पड़ गए हैं। उनमें उल्लास और उमंग नहीं बचा है। परंतु हो सकता है आपकी रंग भरी पिचकारियां देखकर उनका मन फिर से प्रफुल्लित हो उठे।’ कन्हैया लाल पसोपेश में पड़ गए। हौले से उद्धव से बोले- ‘मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा उद्धव। मैं होली खेलना भी चाहता हूं तथा गोपियों को भुला देना भी चाहता हूं। लेकिन दोनों ही बातें असंभव हो गई हैं। मैं क्या करूं, मुझे रास्ता बताओ। गोकुल जाना ठीक रहेगा?’ उद्धव भाव विह्वल हो गए, बोले- ‘भगवन्, आप मथुरा में ही बने रहिए। गोकुल जाना ठीक नहीं है। गोपियां आपको मथुरा आने नहीं देंगी। आप कहें तो मैं एक बार पुन: जाकर उनसे होली भी खेल आऊं और उन्हें समझा भी आऊं?’ कन्हैया लाल के नेत्र भर आए, बोले- ‘हां उद्धव, यही ठीक रहेगा। गोपियों के पास जाना अब ठीक नहीं है। सुनो थोड़ा गुलाल मेरा भी लेते जाना और उनके माथे पर लगा देना। मैं इस बार होली नहीं खेल पाऊंगा?’ उद्धव भी उदास हो गए और गुलाल की पोटली लेकर गोकुल के लिए रवाना हो गए। कन्हैया लाल मथुरा में रंज लेकर गुमसुम सोते रहे। गोकुल न जा पाने का दु:ख उन्हें कम नहीं था।

पूरन सरमा

स्वतंत्र लेखक


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