जल है तो कल है…

By: Mar 20th, 2024 12:05 am

जलाशय, बावडिय़ां, कुएं, हैंड पंप तथा विभागीय आपूर्ति स्रोतों का रखरखाव जरूरी होने के साथ इनके इर्द-गिर्द पसरती गंदगी को रोकने के लिए समुदाय को ही चौकन्ना होना पड़ेगा। वैदिक संस्कृति में जल का महत्व आचमन से लेकर वृष्टि यज्ञ तक है। जल के बिना जीवन संभव नहीं है। हमारी संस्कृति में जल को देवता कहा गया है। धार्मिक अनुष्ठान, विवाह आदि मांगलिक कार्य जल पूजन से ही शुरू होते हैं। शुद्ध पेयजल महा औषधि बनकर शरीर को स्वस्थ रखता है। इस वर्ष 2024 का थीम ‘वॉटर फॉर पीस’ है। जल क्षेत्र में तेजी और तत्कालीनता के साथ-साथ शांति के लिए जल के महत्व को समझना इसलिए आवश्यक है क्योंकि धरती पर मौजूद हर प्राणी पानी पर निर्भर है। समाज में जागरूकता के लिए सामुदायिक आंदोलन हो…

बाईस मार्च विश्व जल दिवस, जल के लिए जागरूक करने का एक और दिन। एक और अवसर यह समझने के लिए कि पानी के बिना जीवन संभव नहीं। दुनिया की आधी जनसंख्या अभी भी पर्याप्त एवं अशुद्ध जल की समस्या से जूझ रही है। पानी की उपलब्धता और इसकी गुणवत्ता की ओर विश्व भर में जल प्रबंधन से संबंधित जल वैज्ञानिक, इंजीनियर, समाज सुधारक, प्रशासक एवं जल योद्धा इस विकट समस्या के समाधान के लिए प्रयत्नशील हैं। संयुक्त राष्ट्र की आम सभा ने 1992 में हर वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाने का संकल्प प्रत्येक जनमानस को पानी के लिए जागरूक करने के लिए लिया है। जल वैज्ञानिकों एवं विचारकों का मत है कि जल की उपलब्धता निरंतर कम हो रही है, और जल का उपयोग करने वाले निरंतर बढ़ रहे हैं। फलस्वरूप प्राणियों में जल संकट की स्थिति बन रही है। जल संसाधन के अनुचित प्रयोग से सारा संसार चिंतित है। अगर इसी तरह जल की बर्बादी का प्रचलन रहा तो जल की कमी के कारण न केवल अनाज बल्कि दूसरी वनस्पतियां भी प्रभावित हो जाएंगी। पानी से लबालब दिखने वाली पृथ्वी पर सचमुच में लगभग एक प्रतिशत से भी कम मृदु जल है, जो झीलों, तालाबों, नदियों एवं भूमिगत जल के रूप में उपलब्ध है। इसलिए पानी की बूंद-बूंद को बचाने के लिए सजग होना पड़ेगा। पानी की कमी न केवल भारत देश में हो रही है, बल्कि पूरे संसार में इसकी कमी से हाहाकार मचा हुआ है। अगर हम पानी की कमी की बात करें तो पानी का गंभीर संकट झेलने वाले प्रमुख देश अपने क्रम के अनुसार कतर, इजरायल, लेबनान, ईरान, लीबिया, कुवैत, सऊदी अरब, यूएई, बहरीन, भारत, पाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और ओमान हैं।

भारत के कर्नाटक राज्य का बेंगलुरु शहर पिछले कुछ दिनों से पानी की भारी कमी का सामना कर रहा है। वल्र्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूआरआई) ने भारत के कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अत्यंत उच्च जल तनाव वाले क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया है। इनमें चंडीगढ़, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश और गुजरात शामिल हैं। रिसर्च के मुताबिक अगर जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक स्तर पर ध्यान नहीं दिया गया और उसे अनुकूल बनाने की तत्काल कोशिश नहीं की गई तो भारत के ही 30 से ज्यादा शहर भारी जल संकट का सामना करने को मजबूर होंगे। हमारे देश में 50 मिलीलीटर से भी अधिक वर्षा होती है। हमारे सामने बहुमूल्य वर्षा का जल बिना उपयोग किए बह जाता है और हम बूंद-बूंद को तरसते हैं। वर्षा के पानी को प्रयोग करने की तकनीक को विकसित करना आवश्यक है और इसे जल आंदोलन बनाने की आवश्यकता है। वर्षा जल संरक्षण में संग्रहण से न केवल अन्य स्रोतों पर दबाव कम हो सकता है, बल्कि इससे भूमिगत जल का स्तर एवं भंडारण भी बढ़ाया जा सकता है। भूजल में बढ़ोतरी करने हेतु वर्षा जल के दोहन के लिए पहल स्वरूप सरकार ने सभी सरकारी भवनों में वर्षा जल संग्रहण प्रणाली को कानूनी रूप से अनिवार्य कर दिया है। जल प्रबंधन का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू पेयजल की गुणवत्ता बनाए रखने का है। कोई भी जलापूर्ति योजना, जल स्रोत के जल का पूर्ण परीक्षण किए बिना प्रारंभ नहीं की जाती है और समय-समय पर स्रोतों के जल का परीक्षण किया जाता है, लेकिन जब तक जल स्रोतों के रखरखाव तथा निगरानी में जन सहयोग और पंचायत स्तर पर समुदाय का सहयोग प्राप्त नहीं होगा, तब तक जल की गुणवत्ता पूर्ण रूप से सुनिश्चित करना कठिन कार्य है। समुदाय जल गुणवत्ता के महत्व को समझें तथा जल स्रोतों के जल का स्वयं परीक्षण करें और यदि जल में प्रदूषण पाया जाता है तो उसके निदान के लिए प्रयास करें। प्रत्येक पेयजल स्त्रोत का स्वच्छता सर्वेक्षण के साथ इनका बैक्टीरिया एवं रासायनिक परीक्षण करना आवश्यक है।

जलाशय, बावडिय़ां, कुएं, हैंड पंप तथा विभागीय आपूर्ति स्रोतों का रखरखाव जरूरी होने के साथ इनके इर्द-गिर्द पसरती गंदगी को रोकने के लिए समुदाय को ही चौकन्ना होना पड़ेगा। वैदिक संस्कृति में जल का महत्व आचमन से लेकर वृष्टि यज्ञ तक है। जल के बिना जीवन संभव नहीं है। हमारी संस्कृति में जल को देवता कहा गया है। धार्मिक अनुष्ठान, विवाह आदि मांगलिक कार्य जल पूजन से ही शुरू होते हैं। शुद्ध पेयजल महा औषधि बनकर शरीर को स्वस्थ रखता है। इस वर्ष 2024 का थीम ‘वॉटर फॉर पीस’ है। जल क्षेत्र में तेजी और तत्कालीनता के साथ-साथ शांति के लिए जल के महत्व को समझना इसलिए आवश्यक है क्योंकि धरती पर मौजूद हर प्राणी पानी पर निर्भर है। जल के प्रति समाज को जागरूक करने के लिए सामुदायिक आंदोलन की जरूरत है। ताजा खबरें हैं कि इस बार भारत में ग्लोबल वार्मिंग के कारण बसंत का मौसम अपनी निर्धारित अवधि से पहले ही खत्म हो गया। यह ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतरों का परिणाम है। यह उन लोगों के लिए एक चेतावनी भी है जो जल को बर्बाद करने में लगे रहते हैं। आशंकाएं है कि इस बार भारत में गर्मियां जल्द आने से पेयजल का गंभीर संकट पैदा हो सकता है। इसलिए हर किसी को सतर्क होना चाहिए।

निखिल शर्मा

स्कूल प्रिंसीपल


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