हरियाणा के नए ‘नायब’

By: Mar 14th, 2024 12:05 am

पार्टी आलाकमान का ऐसा एकाधिकार भी किसी लोकतंत्र का हिस्सा होता है, हमें याद नहीं है, लेकिन देश की सबसे बड़ी और सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी की इच्छा और एकाधिकार से ही संचालित होती है। प्रधानमंत्री की अचानक इच्छा हुई, तो हरियाणा के उस मुख्यमंत्री को, कुछ ही घंटों में, बदल दिया गया, जिसे जनादेश हासिल था। यह जनादेश अक्तूबर, 2024 के अंत तक का था। 2019 का विधानसभा चुनाव जिसके नेतृत्व में लड़ा गया और 41 विधायक जीत कर आए। यही नहीं, जो शख्स प्रधानमंत्री का 40 साल पुराना दोस्त रहा हो और एक दिन पहले ही सार्वजनिक मंच से प्रधानमंत्री ने उनके अभूतपूर्व विकास-कार्यों की प्रशंसा की हो! मोटर साइकिल पर बिताए उन दिनों को याद किया हो, जब वे संगठन के लिए सक्रिय थे! सिर्फ रात ही बीती थी, क्योंकि सुबह तो मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को पद से इस्तीफा देना था! अंतरंग दोस्ती एकदम सूख गई और एक राज्य का मुख्यमंत्री ‘पराजित योद्धा’ मान लिया गया। मुख्यमंत्री का नया दायित्व लोकसभा सांसद एवं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नायब सिंह सैनी को सौंप दिया गया। यकीनन प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा नेतृत्व को ‘फीडबैक’ मिला होगा कि मुख्यमंत्री खट्टर के कारण जातीय समीकरण बिगड़ रहे हैं। जनता का एक बड़ा हिस्सा उनसे नाराज हो सकता है। चूंकि वह 2014 से ही निरंतर मुख्यमंत्री बने रहे हैं, लिहाजा सत्ता-विरोधी लहर भी स्वाभाविक है।

चुनाव से ऐन पहले ही मुख्यमंत्री बदलने का औचित्य मोदी ही बता सकते हैं, यदि उनकी इच्छा हो! प्रधानमंत्री की बुनियादी चिंता लोकसभा चुनाव है। यदि हरियाणा में जनादेश आधा-अधूरा रहा, तो 370 लोकसभा सीट का लक्ष्य पूरा कैसे होगा? क्या हरियाणा के नए ‘नायब’ प्रधानमंत्री के लक्ष्य को 100 फीसदी परवान चढ़ा सकेंगे? आपको कुछ ऐतिहासिक याद दिला दें कि जब नरेंद्र मोदी हरियाणा के प्रभारी थे, तो खट्टर सह-प्रभारी होते थे। उस दौर में भाजपा के 4-5 विधायक ही जीत पाते थे। देवीलाल सरीखे नेताओं के साथ गठबंधन होते रहते, तो 17-18 विधायक जीत पाते थे और सरकार में भी भागीदारी हो पाती थी। अटल-आडवाणी की भाजपा तक यही ताकत हुआ करती थी। दरअसल हरियाणा का जातीय समीकरण कभी भी भाजपा-समर्थक नहीं रहा। जाट आबादी का वर्चस्व ऐसा रहा कि 33 सालों तक जाट मुख्यमंत्री ने ही शासन किया। इस बार संकट यह महसूस किया गया कि यदि देवीलाल के प्रपौत्र दुष्यंत चौटाला की जजपा के साथ गठबंधन बरकरार रहता, तो करीब 22 फीसदी जाट वोट कांग्रेस की ओर धु्रवीकृत हो सकते थे, लिहाजा सबसे पहले जजपा के साथ गठबंधन तोडऩे के अवसर बनाए गए। जाट तो 2014 से ही खट्टर-विरोधी रहे हैं। यहां तक कि पार्टी के अधिकांश विधायक ही उनके खिलाफ थे और पार्टी नेतृत्व के सामने विरोध जताते रहते थे, लेकिन तब तक प्रधानमंत्री की इच्छा खट्टर के पक्ष में थी और पार्टी ने लोकसभा की सभी 10 सीटें भी 2019 में जीती थीं। प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्रीय स्तर पर ओबीसी वोट बैंक को लामबंद करते रहे हैं और उसमें उन्हें सफलता भी मिली है। पिछले आम चुनाव में ओबीसी के 45 फीसदी वोट भाजपा के पक्ष में आए, जो सर्वाधिक हैं।

हरियाणा के नए मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को राज्य की 30 फीसदी ओबीसी आबादी का चेहरा चित्रित किया जा रहा है, जबकि सैनी समुदाय की आबादी तो मात्र 2.9 फीसदी ही है। गैर-जाट, पिछड़े, दलित, पंजाबी, ब्राह्मण आदि अब भाजपा के 70 फीसदी से अधिक जनाधार हैं। यदि सरकार-विरोधी लहर मुख्यमंत्री खट्टर के कारण महसूस की जा रही है, तो उन्हीं की कैबिनेट के पांच चेहरों को दोबारा मंत्री क्यों बना दिया गया? क्या सत्ता-विरोधी लहर मुख्यमंत्री के खिलाफ हो सकती है, लेकिन मंत्रियों के कारण नहीं? यह तो अजीब राजनीतिक शास्त्र है। प्रधानमंत्री ने गुजरात, त्रिपुरा, उत्तराखंड, कर्नाटक आदि राज्यों के मुख्यमंत्री बदले, लेकिन चुनाव का प्रारब्ध फिलहाल प्रधानमंत्री के पक्ष में रहा है, लिहाजा वह भाजपा के लिए कोई भी रणनीति बनाएं अथवा एकाधिकार से पार्टी को संचालित करें, इस पर कोई क्या कह सकता है? हम तो अपने दौर की राजनीति का विश्लेषण कर रहे हैं और लोकतंत्र के मायने साफ तौर पर समझते हैं। बहरहाल, हरियाणा अब नए नेतृत्व में विकास करेगा और उन्नति का नया अध्याय लिखेगा, ऐसी कामना करते हैं।


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