कोई इस दादू को समझाए प्लीज!

By: Mar 6th, 2024 12:05 am

कल रात कोई मेरे सपने में आया। भद्रपुरुष नहीं, सिम्पल सा पुरुष। अंदर धंसी हुई आंखें। पिचका हुआ चेहरा। आते ही मुझे जगाते उस पुरुष ने कहा, ‘जागो मोहन प्यारे!’ पर मोहन प्यारे जागे तो कहां से जागे! सारा दिन तो इधर उधर पेट के चक्कर में मारा मारा फिरता रहता है सबके आश्वासनों की पोटली पेट पर उठाए। मैं काली भेड़ें बेच कर सोया, फिर भी नहीं जागा तो उस पुरुष ने फिर मुझे जगाने की कुचेष्टा की, ‘उठो माई डियर पोते!’ अबके मैं गुस्साया! हद है यार! मान न मान, मैं तेरा दादा महान! यहां तो वे भी दादा के मरने के बाद अपने दादा को नहीं पहचानते जिन्होंने जीते जी अपने दादा को देखा हो तो मैंने तो अपने दादा को उनके जिंदा जी देखा ही नहीं, तो कैसे मान जाऊं कि वे मेरे दादा हैं। मेरे लाख न जागने के बाद भी आखिर उन्होंने मुझे उठाकर ही छोड़ा, ‘सॉरी! मुझे इस वक्त तुम्हें जगाना पड़ा’, मुझे जगाने के बाद उन्होंने मेरे सिर पर हाथ फेरते कहा। ‘मेरे दादा?’ मैंने उनकी आंखें मलते पूछा तो वे बोले, ‘हां पोते! तुम्हारा दादा।’ ‘पर मैंने तो अपने दादा का फोटो तक नहीं देखा तो कैसे मान लूं तुम मेरे दादा हो?’ ‘फोटो तो तुमने असली भगवान का भी नहीं देखा।

फिर जिस तरह उसे भगवान मानते हो, उसी तरह’, कह वे मंद मंद बदतमीज हंसी में मुस्कुराए तो जान गया, मेरे ही दादा हैं। मेरे जैसे ही छुपे बदतमीज। मैंने फिर औपचारिकता करते हुए उनके पांव छुए तो वे गदगद हुए। असली का दादा ही ऐसा होने पर खुश हो सकता है। उनके आने का कारण पूछा तो वे बोले, ‘सरकार से कहो राजधानी में मेरे बुत के लिए भी जगह दे।’ ‘मतलब दादू! अखबार स्वर्ग में भी पहुंच रहे हैं?’ ‘हां तो! ऑनलाइन वाले। स्वर्ग में जंबू द्वीप की पल पल की खबर जानने को उत्सुकता वाले नहीं रहते क्या? मर गए, तो क्या हुआ। मरने के बाद भी जितनी चिंता हमें अपने देस की रहती है उतनी तो तुम जिंदों को भी क्या ही रहती होगी? जब देखो देस को ठेंगा बताते अपनी गोटियां फिट करने में जुटे हुए’, तुम धन्य हो मीडिया वालो! इस देश की जनता को तो जनता को, मरने के बाद स्वर्गलोकियों को भी ताजा जानकारियों से अपडेट रखते हो। ‘क्या तुम पागल हो गए हो दादू? अब मजे से स्वर्ग में हो। वहां मौज करो। जो देस छोड़ दिया वो छोड़ दिया। अब मरने के बाद यहां बुत लगवा कर क्या करोगे? दूसरे तुमने मेरे चार चाचों को पैदा करने के सिवाय और ऐसा क्या बकवास किया है जो यहां अपने को अपना बुत लगवाने का हकदार समझते हो?’ ‘बीस साल तक देश को आजाद करवाने के लिए लड़ा हूं।’

‘वो तो बहुत लड़े हैं। सब लड़ रहे हैं।’ ‘देखो! बात इधर उधर मत घुमाओ! अपने दादा का अंश हो तो सरकार से तुरंत मांग करो कि वह तुम्हारे दादा के बुत के लिए तुरंत जगह मुहैया करवाए वर्ना…’ अरे यार! ये दादा पहली बार अपने पोते को मिले और पहली बार ही अपने पोते को मरवाने का पूरा इंतजाम कर लिया। अब दादा को कौन समझाए कि मेरे मांगने से दादा यहां कुछ नहीं मिलता। कितने समय से एरियर की मांग कर रहा हूं। पर मिला क्या! मिला तो ऊंट के मुंह में धनिया। आखिर मैंने दादा को असंतुष्टों की तरह धमकी देते समझाने की कुचेष्टा करते प्यार से कहा, ‘देखो दादा! यहां पहले ही बुत को लेकर बहुत हंगामा हो रहा है। पल पल जनता पर संकट गहराता जा रहा है। ऐसे में तुम तो इस वक्त प्लीज!’ ‘कैसे पोते हो यार तुम? लानत है तुम पर। इसी दिन के लिए मेरे बेटे ने तुम्हें पैदा किया था कि तुम अपने दादा को एक दिन… धरती पर किस काम का वह पोता जो अपने दादू के लिए सरकार से एक अदद बुत की मांग न कर सके। अरे! पूरी राजधानी थोड़े ही मांग रहा हूं सरकार से। बस, दो गज जमीन। दादू खुश तो सरकार खुश!’ ‘दादू! मुझसे कहो तो मैं तुम्हारे हर श्राद्ध पर आगे से दो के बदले दस पंडितों के पांव धुलवा दूंगा। मुझसे कहो तो मैं तुम्हारे श्राद्ध पर आगे से दो किलो दूध के बदले पांच किलो दूध की खीर बना दूंगा। मुझसे कहो तो मैं तुम्हारे श्राद्ध पर आगे से पंडितों को दक्षिणा में पचास के बदले पांच सौ भी दे दूंगा, पर, दादू प्लीज!’ मैंने दादू के घुटने पकड़ लिए। पर दादू अपनी जिद पर अड़े हैं। न मुझे चैन से सोने दे रहे हैं न…। मेरे दादू को कोई तो समझाओ प्लीज! तुम तो कम से कम इस वक्त घी में आग न डालो!

अशोक गौतम

ashokgautam001@Ugmail.com


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