भगवान शिव और विष्णु के अवतार हैं सुमुनाग सुमली और देव नगंलवाणी

By: Mar 15th, 2024 12:55 am

हल जोतते हुए मिला था देवता का मोहरा, आज भी दिखते हैं खरोंच के निशान

स्टाफ रिपोर्टर-मंडी
अंतराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव में सराज घाटी के देव सुमुनाग सुमली और नगंलवाणी हर वर्ष शिवरात्रि महोत्सव में शामिल होते हैं। इस वर्ष भी यह दोनों देवता अपने देवलुओं के साथ अंतराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव में पंहुचे हैं। देवता हर वर्ष देव नगंलवाणी के साथ छोटी काशी पंहुचते हैं। छोटी काशी पंहुचने पर दोनों ही देवताओं का भव्य स्वागत होता है। देवता सबसे पहले देव माधव राय से उनके मंदिर में मिलते हैं। उसके बाद राजा के बेहड़े में जाकर राजा से मुलाकात करते हैं। देव सुमुनाग सुमली और देव नगंलवाणी के बारें में कहा जाता है कि यह दानों देवता विष्णु और शिव का स्वरूप हैं। देव सुमुनाग सुमली को विष्णु भगवान और देव नगंलवाणी को शिव स्वरूप माना जाता है। देव सुमुनाग सुमली की उत्पति के पीछे की कहानी रोचक है। ऐसा माना जाता है कि देवता का मोहरा जमीन के नीचे से मिला है। यह मोहरा एक किसान को मिला है। किसान उस समय खेत में हल चला रहा था। हल चलाते चलाते यह मोहरा हल में फंस गया और बाहर निकल गया। आज भी देवता के मोहरे में हल की खरोंचें दिखाई देती हैं। उसके बाद वह किसान इस मोहरे को घर ले गया और अनाज के भंडार में रख दिया। जब सुबह उठकर उसने अनाज का भंडार देखा तो वह अनाज से पूरा भर गया था।

किसान ने यह बात गांव वालों को बताई। गांव वाले इस चमत्कार क ो देखकर हैरान हो गए और देव सुमुनाग सुमली का मंदिर बनाया गया। वर्तमान में सराज घाटी के सुमली में देवता का भव्य मंदिर है। वहीं देव नगंलवाणी का इतिहास भी देव सुमुनाग के साथ जोड़ा जाता है। दोनों देवता साथ ही शिवरात्रि महोत्सव मेें शिरकत करते हैं। नगंलवाणी देव को सुमुनाग का ही स्वरूप माना जाता है। परंतु देवता शिव भगवान का अवतार हैं। कहा जाता है कि देवता कश्मीर से आए थे और गवाले के साथ यह सराज पंहुचे। बताया जाता है कि उस गवाले की गाय ने दूध देना बंद कर दिया। जब गवाले ने इस बात का पता लगाना चाहा तो उसने पाया कि उसकी गाय रास्ते में ही दूध शिवलिंग पर अर्पित कर देती है। उसके बाद गवाला उस शिवलिंग की पूजा अर्चना करने लग गया और गवाले की सभी मनोकामनाएं भी पूरी होती गई। उसके बाद से देवता की प्रसिद्घि और बढऩे लगी। बाद में भक्तों ने देवता का रथ बना दिया और यह रथ राजाओं के शासनकाल से शिवरात्रि में
आता है।


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