वायु की तरह मुक्त हों महिलाएं

By: Mar 6th, 2024 12:05 am

महिलाओं की सुरक्षा के लिए सरकारों ने सराहनीय कदम उठाए हैं, परंतु और कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है। महिला दिवस 2024 का थीम है, ‘इंस्पायर इंक्लूजन’। जब हम दूसरों को महिलाओं के समावेशन को समझने और महत्व देने के लिए प्रेरित करते हैं तो हम एक बेहतर दुनिया का निर्माण करते हैं, जब महिलाओं को स्वयं शामिल होने के लिए प्रेरित करते हैं तो अपनापन है…

पितृसत्ता, पूंजीवाद और उपभोक्तावाद महिलाओं के शोषण को जिम्मेदार हैं। ये सब मिलकर महिलाओं के उत्पीडऩ को बढ़ा रहे हैं और उनके जीवन को दूभर कर रहे हैं। महिलाएं इन्हीं से टकराने के लिए अब आगे बढ़ रही हैं। महिलाओं के प्रति मानवीय दृष्टिकोण यह होना चाहिए कि एक तो महिलाओं के अस्तित्व को स्वीकार करना तथा वह भी अच्छाई-बुराई के साथ। उन पर हावी होना, हमदर्दी करना और दया बरसाना छोड़ देना चाहिए। उन्हें अच्छाई और बुराई के साथ विकसित होते देखना और असली महिला को जगह देनी होगी। महिलाओं को वायु की तरह मुक्त रहने देना चाहिए। उन पर कोई पाबंदी नहीं होनी चाहिए, वे भी पुरुषों की तरह मुक्त घूमें। दोनों के लिए एक धर्म, भाव और कार्य एक जैसे हों। इससे पुरुष के अभाव में महिला स्वयं उसका स्थान अधिकृत कर लेगी। इसके लिए शिक्षा परमावश्यक है। शिक्षा से सब कमियों को दूर किया जा सकता है, और तभी ये देवियां अपना दिव्य रूप पहचानेंगी तथा दुनिया भी उनकी शक्ति को जानेगी। महिलाओं का शोषण पूरे विश्व में ही था। इसलिए 15000 महिलाओं ने शोषण से टकराने के लिए 1909 में न्यूयॉर्क में प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन कम काम के घंटे, बेहतर मुआवजा और वोट देने का अवसर के लिए था। 1910 में एक साल के बाद कोपनहेगन में कार्यस्थल पर महिलाओं के लिए एक विश्वव्यापी सम्मेलन आयोजित किया गया।

यह बैठक महिला दिवस के वार्षिक उत्सव के विचार के लिए उत्प्रेरक थी। वर्ष 1911 में डेनमार्क, स्विटजरलैंड, ऑस्ट्रिया, जर्मनी ने प्रथम अतंरराष्ट्रीय महिला दिवस सेलिब्रेट किया था। 8 मार्च 1975 को महिला दिवस को आधिकारिक तौर पर मान्यता दी गई, वह भी तब, जब यूनाइटेड नेशन ने इसे वार्षिक तौर पर एक स्पैशल थीम के तहत मनाना शुरू किया। पहली बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का थीम था ‘सेलिब्रेटिंग दि पास्ट, प्लानिंग फार दि फ्यूचर’। उसके बाद, हर साल 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस एक नए थीम के साथ मनाया जाता है और इस थीम के अनुसार महिलाओं का सशक्तिकरण किया जाता है। आठ मार्च का दिन महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक उपलब्धियों के जश्न मनाने का अंतरराष्ट्रीय स्तर का दिवस होता है। यह लैंगिक समानता की दिशा में हुई प्रगति का आकलन करने और शेष चुनौतियों के समाधान के लिए आगे की कार्रवाई का आह्वान करता है। भारत में महिलाओं की स्थिति का आकलन करने के लिए कुछ संकेतक हैं, जैसे- कार्य का रूप एवं सीमा, राजनीतिक भागीदारी, शिक्षा का स्तर, स्वास्थ्य की स्थिति, निर्णयकारी निकाओं में प्रतिनिधित्व, संपत्ति तक पहुंच आदि। इन कारकों तक महिलाओं की एक समान पहुंच नहीं रही है और यह उनके पिछड़ेपन का कारण है। महिलाओं की आज की स्थिति को, पहले के दौर में जो स्थिति थी, उससे तुलना करें तो आज महिलाओं की सफलता का अंदाजा लगाया जा सकता है। इसका श्रेय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाए जाने वाले महिला दिवस तथा भिन्न-भिन्न देशों की सरकारों की सकारात्मक सोच, जो महिलाओं के प्रति है, को दिया जाता है।

भारत का संविधान महिलाओं को लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना (अनुच्छेद 15) और विधि के समक्ष समान संरक्षण (अनुच्छेद 14) का मूल अधिकार देता है तथा संविधान राज्यों को महिलाओं के पक्ष में भेदभाव को खत्म करने के उपायों को करने के लिए भी शक्ति प्रदान करता है ताकि उनकी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक असमानता की स्थिति को कम किया जा सके। इन्हीं प्रावधानों तथा सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति के परिणामस्वरूप महिलाओं ने सामाजिक क्षेत्र, पर्यावरण, रक्षा, खेल, अंतरराष्ट्रीय संगठन, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, शिक्षा, शासन आदि क्षेत्रों में अभूतपूर्व उपलब्धियां प्राप्त की हैं। महिलाओं को आर्मी, एयर फोर्स और नेवी में परमानेंट कमिशन दिलवाने में माननीय उच्चतम न्यायालय ने अहम भूमिका निभाई है जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं ने सशस्त्र बलों में बुलंदियों को छुआ। कैण्शिवा चौहान ने दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र सियाचिन में अपनी सेवाएं दी, शिवांगी सिंह राफेल उड़ाने वाली पहली महिला पायलट बनी. भारतीय नौसेना की 6 महिला सदस्यों की टीम ने एक जहाज में 8 महीने रात-दिन लहरों से लडक़र सात समुंदर पार किए। महिला सशक्तिकरण के लिए भारत सरकार ने बहुत सी योजनाएं बनाई हैं, जिससे महिलाओं की स्थिति में काफी सुधार आया है। इसके अतिरिक्त शिक्षा के बेहतर अवसर, कौशल निर्माण या स्किलिंग, माइक्रो फाइनेंसिंग से महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है। भारत में महिलाओं से संबंधित चिंता के कुछ क्षेत्र हैं- पुरुष और महिला साक्षरता दर में अंतर (विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र, जनजातीय क्षेत्र तथा अल्पसंख्यक), अपहरण, यौन शोषण, परित्याग करना, तस्करी, जन्म पूर्व लिंग निर्धारण, कन्या भ्रूण हत्या, तेजाब हमला, दहेज उत्पीडऩ, लज्जा भंग, घरेलू हिंसा व कार्यस्थल पर यौन उत्पीडऩ आदि।

महिलाओं की सुरक्षा के लिए केन्द्र तथा राज्य सरकारों ने सराहनीय कदम उठाए हैं, परंतु और कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है क्योंकि महिलाओं के प्रति हिंसा के मामले दिन-प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2024 का थीम है, ‘इंस्पायर इंक्लूजन’। जब हम दूसरों को महिलाओं के समावेशन को समझने और महत्व देने के लिए प्रेरित करते हैं तो हम एक बेहतर दुनिया का निर्माण करते हैं, और जब महिलाओं को स्वयं शामिल होने के लिए प्रेरित करते हैं तो अपनेपन, प्रासंगिकता और सशक्तिकरण की भावना आती है। महिलाओं को आधी आबादी भी कहा जाता है। इसलिए बेहतर दुनिया के निर्माण के लिए हमें महिलाओं को पुरुषों के बराबर का दर्जा, सभी अधिकार, किसी भी क्षेत्र में उनसे भेदभाव न करना, नारी शक्ति को महत्त्व और हर क्षेत्र में लिंग के प्रति तटस्थ नीति को अपनाना होगा।

सत्यपाल वशिष्ठ

स्वतंत्र लेखक


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